इतिहासमध्यकालीन भारतसूफीमत

सूफीमत क्या था

प्रेम और उदारता सूफी व भक्ति आंदोलन के मूल भाव हैं। दोनों की रहस्यवादी भावना संयुक्त रूप से व्यक्ति और समाज की वर्ग, धर्म, धन, शक्ति और पद के अवरोधों से ऊपर उठाकर उनकी नैतिक उन्नति में योगदान देती है।

सूफीवाद इस्लाम के भीतर ही एक रहस्यवादी आंदोलन के रूप में ईरान से शुरू हुआ था, जिसमें शिया और सुन्नी सम्प्रदायों के मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया गया। सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के सफा शब्द से हुई है – जिसका अर्थ है पवित्रता  अर्थात् जो लोग आध्यात्मिक रूप से और आचार-विचार से पवित्र थे, वे सूफी कहलाए। 10 वी. शता. में मुताजिल अथवा तुर्क बुद्धवादी दर्शन का आधिपत्य समाप्त हुआ और पुरातनपंथी विचारधारा का जन्म हुआ जो कुरान और हदीस पर आधारित थी। इसी समय सूफी रहस्यवाद का जन्म हुआ। परंपरावादियों की रचना इस्लामी कानून की चार विचारधाराओं में बँट गई। इसमें से हनफी विचाधारा सबसे अधिक उदारवादी थी। इसे ही पूर्वी तुर्कों ने अपनाया और ये पूर्वी तुर्क ही कालांतर में भारत आये।

रहस्यवादियों का जन्म इस्लाम के अंतर्गत बहुत पहले हो गया था। यही बाद में सूफी कहलाए। महिला रहस्यवादी रबिया और मंसूर-बिन-हल्लाज जैसे प्रारंभिक सूचियों ने ईश्वर और व्यक्ति के बीच प्रेम संबंध पर बहुत अधिक बल दिया। किन्तु उनकी सर्वेश्वरवादी दृष्टि के कारण उनमें और परंपरावादी तत्वों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। इन परंपरावादियों ने अफवाहों के बल पर मंसूर को फांसी पर लटकवा दिया।

अल-गज्जाली ने रहस्यवाद और इस्लामी परंपरावाद के बीच मेल कराने का प्रयत्न किया। भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के पूर्व सूफी सिलसिले का आगमन हो चुका था। इस समय ( 12 वी. शता.) तक सूफी सम्प्रदाय बारह सिलसिले में विभाजित हो गया था।

सूफी विचारधारा में गुरू ( पीर ) और शिष्य ( मुराद ) के बीच संबंध का महत्त्व बहुत अधिक है। प्रत्येक पीर अपना उत्तराधिकारी ( वलि ) नियुक्त करता था। सूफी दर्शन केवल एक ईश्वर में विश्वास ( एकेश्वरवादी ) करता था। उनके अनुसार ईश्वर एक है और सभी कुछ ईश्वर में है। सूफियों का जीवन सादा होता था। वे मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते थे। संगीत और गायन को ईश्वर का नाम लेने में सहायक मानते थे और भाव विभोर होकर नाचते गाते थे।

सूफी सिलसिला मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित है – (1.) बा-शरा अर्थात् वे जो इस्लामी विधान ( शरा ) को मानते थे। (2.) बे-शरा अर्थात् वे जो इस्लामी विधान ( शरा ) से बंधे हुए नहीं  थे।

  • बे-शरा- अधिकतर घुमक्कङ सूफी संत होते थे।

मंसूर हल्लाज प्रथम साधक था जिसने अपने को अनहलक घोषित किया और प्राण न्योछावर कर दिया। परवर्ती कालों में मंसूर सूफी विचारधारा का प्रतीक बन गया।

इब्नुलअरबी प्रथम व्यक्ति  था जिसने सूफी जगत में महत्त्वपूर्ण वहदत – उल – वुजूद का सिद्धांत प्रतिपादित किया। सूफी रहस्यवाद बहदत – उल – वुजूद या परमात्मा के एकत्व के सिद्धांत से उत्पन्न हुआ था। आइने अकबर में अबुल फजल ने चौदह सूफी सिलसिलों का उल्लेख किया है। इनमें चिश्ती, सुहरावर्दी, कादिरी और नक्शबंदी अत्यंत प्रसिद्ध रहे हैं।

  • बा – शरा ( इस्लामी विधान को मानने वाले )-   सिलसिलों में से केवल दो ही उत्तर भारत में अधिक प्रचलित हुए। ये सिलसिले थे– चिश्ती और सुहरावर्दी। 

सूफी सिलसिले-

  • चिश्ती सम्प्रदाय-

सैय्यद मुहम्मद हाफिज के अनुसार चिश्ती भारत का सर्वप्रथम प्राचीन सूफी सिलसिला है। ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती सन् 1192 ई. में ( 12वी. शता. ) शिहाबुद्दीन गोरी की सेना के साथ भारत में आये और बाद में इन्होंने चिश्तियां परंपरा की नींव डाली। भारत में इन्होंने बहुत से हिन्दू रीति रिवाजों को अपना लिया। चिश्तियों की प्रकृति उदार थी। ईश्वर प्रेम और मानव की सेवा उनके प्रमुख सिद्धांतों में से थे। इस सिलसिले के सूफीसंत हिन्दू योगियों की भाँति जीवन व्यतीत करते थे। वे अद्वैतवाद के परंपरागत नियमों में विश्वास रखते थे तथा निजी संपत्ति के खिलाफ थे। वे समा में विश्वास रखते थे। मुइनुद्दीन चिश्ती  ने अजमेर में अपना निवास स्थान बनाया। उनकी समाधि अजमेर में ख्वाजा साहब के नाम से प्रसिद्ध दरगाह  है। उनके बाद ख्वाजा बख्तियार काकी सुल्तान इल्तुतमिश के समकालीन थे। उन्होंने ही बाबा फरीद को चिश्तियां परंपरा में दीक्षित किया था। शेख फरीदुद्दीन गंज- ए – शंकर ( 1175-1265 ई. ) इसी सिलसिले के थे जो सिक्ख परंपरा में बाबा फरीद के रूप में प्रसिद्ध थे। बाबा फरीद के कारण चिश्तियां सिलसिले को भारत में लोकप्रियता प्राप्त हुई।

  • सुहरावर्दी सम्प्रदाय ( 12 वी. शता. ) –

बगदाद के शिक्षक शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी इस सिलसिले के संस्थापक थे। भारत में सुहरावर्दी सिलसिले को सुदृढ तथा लोकप्रिय बनाने का मुख्य श्रेय उनके शिष्य बहुउद्दीन जकारिया तथा जलालुद्दीन तबरीजी को है। सुहरावर्दी का मुख्यालय मुल्तान था। इसके अतिरिक्त यह सिन्ध, पंजाब में भी फैला हुआ था। चिश्तियों के विपरीत इस पंथ के संत बहुत आराम की जिन्दगी व्यतीत करते थे। वे राजनीतिक सम्पर्क द्वारा अपने कार्यों को अधिक उचित ढंग से करना चाहते थे। उन्होंने राजकीय पद जैसे शेख-उल- इस्लाम की उपाधि दी थी। उसने मुल्तान में खानकाह या मठ की स्थापना की। हमीमुद्दीन नागौरी इस सिलसिले के प्रसिद्ध संत थे।

  • कादिरी संप्रदाय –

यह इस्लाम में प्रथम रहस्यवादी पंथ था। इसकी स्थापना शेख अब्दुल कादिर जिलानी ने की। भारत में इस सिलसिले की शुरुआत सैय्यद जिलानी ने की। इस सिलसिले के सबसे प्रसिद्ध संत शेख मीर मुहम्मद मियाँ मीर थे। शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह कादिरी सिलसिले का अनुयायी था और उसने लाहौर में मियाँ मीर से भेंट की थी। जब मियाँ मीर की मृत्यु हो गई तो दारा मुल्तान शाह बदख्शी नामक उसके उत्तराधिकारी का शिष्य बन गया।

  • शत्तारी सिलसिला-

लोदी काल में शाह अब्दुल्ला ने शत्तारी सिलसिले की स्थापना की । मुहम्मद गौस ( ग्वालियर ) इस सम्प्रदाय के सबसे प्रसिद्ध संत थे। मुगल शासक हुमायूँ तथा तानसेन मुहम्मद गौस से अत्यधिक प्रभावित थे। शत्तारी संतों ने हिन्दू और मुसलमानों के धार्मिक विचारों तथा रीतियों में साम्य दिखाकर उन्हें निकट लाने का प्रयत्न किया। इस पंथ के सूफियों ने सुहरावर्दियों की भाँति लौकिक सुविधाओं से पूर्ण आरामदायक जिन्दगी व्यतीत की।

  • नक्शबंदी सिलसिला-

अकबर के शासनकाल ( 1556-1605ई.) में छःप्रमुख सिलसिलों अंतिम नक्शबंदी सिलसिले के प्रसिद्ध संत थे जो मुजहिद आलिफसानी के नाम से प्रसिद्ध थे। अकबर एवं जहाँगीर के समकालीन शेख अहमद सरहिन्दी ने ईश्वर के साथ एकत्व ( वजहद-उल-वसूद) के रहस्यवादी दर्शन पर आक्षेप किया तथा उसे अस्वीकार कर दिया। उसके स्थान पर उसने प्रत्यक्षवादी दर्शन ( वजहद – उल – शुद ) का प्रतिपादन किया। शेख अहमद सरहिन्दी ने कहा कि मनुष्य और परमात्मा का संबंध दास और मालिक का संबंध है। वे मुजहिद अर्थात् इस्लाम के पुनरुद्धारक या सुधारक के रूप में प्रसिद्ध थे। सूफियों में यह सबसे अधिक कट्टरवादी सिलसिला था। इन्होंने अकबर की उदार नीतियों का विरोध किया।

दो उप सिलसिले फिरदैसी तथा शत्तारी सुहरावर्दी प्रशाखा के रूप में बिहार और बंगाल में सक्रिय थे। सूफी विचारधारा से प्रेरित ऋषि आंदोलन कश्मीर में शेख नुरुद्दीन ऋषि द्वारा चलाया गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/sufism/

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