मध्यकालीन भारतइतिहासउत्तर भारत और दक्कन के प्रांतीय राजवंश

तालीकोटा का युद्ध

  • विजयनगर की बढती हुई शक्ति से दक्षिणी सुल्तनतें इतनी आशंकित हो गई थी कि उन्होंने पुराने मतभेदों को भुलाकर आपस में एक होने का निश्चय किया। तालीकोटा युद्ध के समय विजयनगर का शासक सदाशिवराय था। उन्होंने अपने शत्रु को पराजित करने के लिए सैनिक महासंघ का गठन किया। विजयनगर साम्राज्य विरोधी इस महासंघ में अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्ड और बीदर शामिल थे।
  • गोलकुण्डा और बरार के मध्य पारस्परिक शत्रुता के कारण बरार इसमें शामिल नहीं हुआ।युद्ध की शुरुआत बीजापुर के सुल्तान अली आदिलशाह ने विजयनगर से रायचूर, मुद्गल, अदोनी आदि किलों की वापसी की माँग के द्वारा की। रामराय ने इस मांग को ठुकरा दिया। 23 जनवरी 1565 में संयुक्त सेनाओं ने तालीकोटा ( रक्षसी तंगङी या बन्नी हट्टी ) के युद्ध में विजयनगर की सेना को बुरी तरह पराजित किया। 70 वर्षीय रामराय वीरता पूर्वक लङा किन्तु उसे घेर कर मार डाला गया। विजयनगर शहर को निर्ममता पूर्वक लूटा गया। बन्नीहट्टी या तालीकोटा के युद्ध ने सामान्य रूप से विजयनगर साम्राज्य के शानदार युग का अंत किया।
  • इस युद्ध का वास्तविक कारण विजयनगर के प्रति दक्षिणी सल्तनतों की समान ईर्ष्या और घृणा थी। यह एक प्रकार का राजनीतिक युद्ध था। इस युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी सेवेल था। उसने लिखा है तीसरे दिन के अंत का प्रारंभ देखा। विजयी मुसलमान रणक्षेत्र में विश्राम तथा जलपान के लिए ठहरे थे, पर जब वे राजधानी पहुंच चुके थे तथा उस समय के बाद से पाँच महिनों तक विजयनगर को चैन नहीं मिला। उन्होंने नदी के निकट विट्ठल स्वामी के मंदिर के शान से सजे हुए भवनों में भयंकर आग लगा दी। दक्कनी सल्तनतों के पुनः आपसी मदभेदों से विजयनगर  साम्राज्य को रामराय के भाई तिरुमल के अधीन पुनः शक्ति प्राप्त करने का अवसर मिल गया।

तालीकोटा युद्ध से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • तालीकोटा का युद्ध 25 जनवरी, 1565 ई. को लड़ा गया था।
  • इस युद्ध को ‘राक्षसी तंगड़ी का युद्ध’ और ‘बन्नीहट्टी का युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • विजयनगर साम्राज्य के विरोधी महासंघ में अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा और बीदर शामिल थे।
  • गोलकुण्डा और बरार के मध्य पारस्परिक शत्रुता के कारण बरार इसमें शामिल नहीं था।
  • इस महासंघ के नेता ‘अली आदिलशाह’ ने रामराय से रायचूर एवं ‘मुद्गल’ के क़िलो को वापस माँगा।
  • रामराय द्वारा माँग ठुकराये जाने पर दक्षिण के सुल्तानों की संयुक्त सेना ‘राक्षसी-तंगड़ी’ की ओर बड़ी, जहाँ पर 25 जनवरी, 1565 को रामराय एवं संयुक्त मोर्चे की सेना में भंयकर युद्ध प्रारम्भ हुआ।
  • इस युद्ध के प्रारम्भिक क्षणो में संयुक्त मोर्चा विफल होता हुआ नज़र आया, परन्तु अन्तिम समय में तोपों के प्रयोग द्वारा मुस्लिम संयुक्त सेना ने विजयनगर सेना पर कहर ढा दिया, जिसके परिणामस्वरूप युद्ध क्षेत्र में ही सत्तर वर्षीय रामराय को घेर कर मार दिया गया।
  • इस युद्ध में रामराय की हत्या हुसैन शाह ने की थी।
  • राजा रामराय की पराजय व उसकी मौत के बाद विजयनगर शहर को निर्मतापूर्वक लूटा गया।
  • इस युद्ध की गणना भारतीय इतिहास के विनाशकारी युद्धो में की जाती है।
  • फ़रिश्ता के अनुसार यह युद्ध ‘तालीकोटा’ में लड़ा गया, पर युद्ध का वास्तविक क्षेत्र ‘राक्षसी’ एवं ‘तंगड़ी’ गांवो के बीच का क्षेत्र था।
  • युद्ध के परिणामों के प्रतिकूल रहने पर भी विजयनगर साम्राज्य लगभग सौ वर्ष तक जीवित रहा।
  • तिरुमल के सहयोग से सदाशिव ने पेनुकोंडा को राजधानी बनाकर शासन करना प्रारम्भ किया।
  • यहीं पर विजयनगर में चौथे अरविडु वंश की स्थापना की गई।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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