1857 की-क्रांतिआधुनिक भारतइतिहास

1857 की क्रांति के परिणाम क्या थे

1857 की क्रांति के परिणाम

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

यद्यपि 1857 का विप्लव असफल रहा, किन्तु इसके परिणाम अभूतपूर्व, व्यापक और स्थायी सुद्ध हुए। इतिहासकार ग्रिफिन ने लिखा है, भारत में सन् 1857 की क्रांति से अधिक महत्त्वपूर्ण घटना कभी नहीं घटी।

रशब्रुक विलियम के अनुसार,एक रक्त की नदी ने कम से कम उत्तरी भारत में दो जातियों को अलग-2 कर दिया तथा उस पर पुल बाँधना एक कठिन कार्य ही था।

डॉ. मजूमदार ने भी लिखा है कि सन् 1857 का महान् विस्फोट भारतीय शासन के स्वरूप और देश के भावी विकास में मौलिक परिवर्तन लाया।

1857 की क्रांति के परिणाम निम्नलिखित हैं-

कंपनी शासन का अंत-

1600 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई थी तथा अब तक हर बार 20 वर्ष बाद चार्टर एक्ट द्वारा उसकी अवधि में वृद्धि होती रही। विद्रोह का महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि 2 अगस्त,1858 को ब्रिटिश संसद ने एक अधिनियम पारित कर भारत में कंपनी शासन का अंत कर दिया तथा ब्रिटिश भारत का प्रशासन ब्रिटिश ताज ने ग्रहण कर लिया।

बोर्ड ऑफ कंट्रोल तथा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स समाप्त कर दिये गये। इनके स्थान पर भारत सचिव और उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक इंडिया कौंसिल बनायी गयी। कंपनी द्वारा भारत में किये गये सभी समझौतों को मान्यता प्रदान की गई। इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर-जनरल को ब्रिटिश भारत में गवर्नर-जनरल के नाम से तथा देशी राज्यों से संबंध स्थापित करते समय उसे वायसराय के नाम से पुकारने की व्यवस्था की गई। इस प्रकार विद्रोह के फलस्वरूप जो परिवर्तन किया गया, उससे नये युग का सूत्रपात हुआ।

महारानी का घोषणा-पत्र-

विद्रोह के कारण जनसाधारण में एक अनिश्चितता उत्पन्न हो गई थी। अतः विप्लव के बाद जनता के प्रति निश्चित नीति एवं सिद्धांतों की घोषणा के लिए इलाहाबाद में बङी धूमधाम से एक दरबार का आयोजन किया गया, जिसमें लार्ड केनिंग ने महारानी के घोषणा-पत्र को पढकर सुनाया(1 नवंबर,1858)। इस घोषणा-पत्र की प्रमुख बातें निम्नलिखित थी-

  • भारत में जितना अंग्रेजों का राज्य विस्तार है वह पर्याप्त है,इससे ज्यादा अंग्रेजी राज्य-विस्तार नहीं होगा।
  • देशी राज्यों व नरेशों के साथ जो समझौते व प्रबंध निश्चित हुए हैं, उनका ब्रिटिश सरकार सदा आदर करेगी तथा उनके अधिकारों की सुरक्षा करेगी।
  • धार्मिक सहिष्णुता एवं स्वतंत्रता की नीति का पालन किया जायेगा।
  • भारतीयों के साथ स्वतंत्रता का व्यवहार किया जायेगा तथा उनके कल्याण के लिए कार्य किये जायेंगे।
  • प्राचीन रीति-रिवाजों, संपत्ति आदि का संरक्षण किया जायेगा।
  • सभी भारतीयों को निष्पक्ष रूप से कानून का संरक्षण प्राप्त होगा।
  • बिना किसी पक्षपात के शिक्षा, सच्चरित्रता और योग्यतानुसार सरकारी नौकरियाँ प्रदान की जायेंगी।
  • उन सभी विद्रोहियों को क्षमादान मिलेगा, जिन्होंने किसी अंग्रेज की हत्या नहीं की है।

महारानी की इस घोषणा को मेग्नाकार्टा कहा जाता है।

सेना का पुनर्गठन-

1857 ई. के विप्लव का विस्फोट सैनिक विप्लव के रूप में हुआ था, अतः सेना का पुनर्गठन आवश्यक था। अंग्रेजों की इतनी विशाल सेना रखने का निर्णय लिया गया कि भविष्य में होने वाले विद्रोहों का दमन कर सके। तोपखाना पूर्णतया यूरोपियन सैनिकों के हाथ में रखा गया।

भारतीय सैनिकों की संख्या आधी कर दी गई तथा भारतीय सैनिकों के पुनर्गठन में जातीयता एवं साम्प्रदायिकता आदि तत्वों को ध्यान में रखा गया। इन सैनिकों को अपने स्थानीय क्षेत्रों से हटाकर दूर-2 क्षेत्रों में भेज दिया गया, ताकि स्थानीय लोगों के सहयोग से वे पुनः विद्रोह कर सकें। भारतीय सैनिकों को घटिया किस्म के हिथियार दिये गये। सैनिकों की भर्ती के लिए एक रॉयल कमीशन की नियुक्ति की गई। इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेज सैनिकों की संख्या 1859में 45,322 से बढकर 1862 में 91897 हो गयी। इसके अतिरिक्त भारतीय खर्चे पर इंग्लैण्ड में 16,427 सैनिक रखे गये, जो संकट के समय काम आ सकें।

साम्प्रदायिकता एवं घृणा की उत्पत्ति-

1857 ई. के संघर्ष में हिन्दू-मुसलमानों ने संयुक्त रूप से भाग लिया था, किन्तु मुसलमानों ने हिन्दुओं से अधिक उत्साह दिखाया। अतः अब अंग्रेजों ने हिन्दुओं का पक्ष लेना आरंभ कर दिया, जिससे हिन्दू और मुसलमानों में दरार उत्पन्न हो गयी। अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति का पालन जारी रखा, जिससे दोनों जातियों में वैमनस्य पैदा हो गया। यह वैमनस्यता भावी राष्ट्रीय आंदोलन में घातक सिद्ध हुई, जिसका अंतिम परिणाम देश का विभाजन हुआ। आगे चलकर अंग्रेजों को अनुसूचित जातियों से भी पृथक कर दिया। अंग्रेजों की इस नीति के कारण भारतीय-भारतीय के बीच खाई उत्पन्न हो गई।

प्रशासन के निम्न पदों पर भारतीय और उसके कुप्रभाव-

महारानी की घोषणा में यह आश्वासन दिया गया था कि बिना किसी पक्षपात के शिक्षा, सच्चरित्रता एवं योग्यतानुसार सरकारी नौकरियों को स्थान दिया जायेगाष किन्तु इसका पालन योग्यतानुसार सरकारी नौकरियों में भारतीयों को स्थान दिया जायेगा। किन्तु इसका पालन कभी नहीं किया गया। कोई भी भारतीय सैनिक रॉयल कमीशन के सामने जाने के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता था और यदि वह वायसराय का कमीशन प्राप्त भी कर लेता तो भी उसे एक नये अंग्रेज रंगरूट के मुकाबले अधिक योग्य नहीं समझा जाता था।

अब भारतीयों को प्रशासन में क्लर्कों तथा सहायकों के निम्न पदों पर लिया जाने लगा। ये सरकारी कर्मचारी ब्रिटिश अधिकारियों तथा जनता के बीच एक प्रकार से बिचौलिये थे और ये चापलूस थे। अंग्रेज यही चाहते थे कि लोग उनकी चापलूसी करें और उनके आज्ञाकारी बने रहें। इसका परिणाम यह हुआ कि ऐसे सरकारी कर्मचारियों की सेवा वास्तविक सैन्य-शक्ति से अधिक प्रबल सिद्ध हुई।

आर्थिक प्रभाव-

आर्थिक दृष्टि से भी विप्लव के कुप्रभाव दृष्टिगोचर हुए। अंग्रेजों ने अब केवल ब्रिटिश पूँजीपतियों को भारत में पूँजी लगाने हेतु प्रोत्साहित किया तथा उन्हें सुरक्षा प्रदान की। अब चाय,कपास,जूट, कॉफी,तंबाकू आदि के व्यापार को बहुत बढावा दिया। भारतीय उद्योगों को संरक्षण नहीं दिया गया। नई ईस्ट इंडिया कॉटन कंपनी स्थापित की गई जो भारत से रूई ले जाकर इंग्लैण्ड से कपङा बनवाकर भारत भेजती थी। यातायात के साधनों का विकास भी अंग्रेजों के लिये लाभप्रद रहा। इसके अतिरिक्त कंपनी भारत सरकार पर 3 करोङ 60 लाख पौण्ड का कर्ज छोङ गई, जिसकी पूर्ति भारत सरकार अब भारतीयों का शोषण करके ही कर रही थी। अंग्रेजों के इस आर्थिक शोषण से देश निरंतर गरीब होता गया।

भारतीयों को लाभ-

यद्यपि विद्रोह पूरी तरह से असफल रहा तथा इसके अनेक दुष्परिणाम भी निकले, किन्तु इस विद्रोह के कारण भारतीयों को अनेक लाभ भी हुए। विद्रोह के बाद सर्वप्रथम ब्रिटिश सरकार ने देश की आंतरिक दशा को ठीक करने का प्रयत्न किया तथा लोगों की भौतिक उन्नति के प्रयास आरंभ हुए। विप्लव के बाद से ही भारत के संवैधानिक विकास क प्रक्रिया आरंभ हुई। जिसका सूत्रपात 1858 के अधिनियम से हुआ था।

धीरे-2 भारतीयों को शासन में भाग लेने का अवसर मिलने लगा। शासन में भाग लेने से अब उनमें एक नयी चेतना आने लगी। यद्यपि 1857 में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के प्रयास का दमन कर दिया गया था, किन्तु इससे भारतीयों के मन में राष्ट्रीय भावना अत्यधिक तीव्र हो उठी और इसी राष्ट्रीय भावना ने हमारे राष्ट्रीय आंदोलनों का संचालन किया तथा 1947 में विदेशी सत्ता की इतिश्री कर दी।

1857 का विप्लव भारतीय इतिहास की प्ररणादायक घटना है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया। भविष्य में भी यह विप्लव भारतीयों को प्रेरणा देता रहा और हमारे राष्ट्रीय आंदोलनों के काल में 1857 के शहीदों को बङे गौरव से याद किया गया। वस्तुतः अनेक इतिहासकार इसे मध्य युग का अंत तथा आधुनिक युग का आरंभ मानते हैं।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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