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पुरंदर की संधि की प्रमुख शर्तें क्या थी

पुरंदर की संधि

पुरंदर की संधि

पुरंदर की संधि (Treaty of Purandar)

बंगाल कौंसिल ने प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध बंद करने का आदेश दिया था, फिर भी युद्ध बंद नहीं हुआ। तब बंगाल कौंसिल ने कर्नल अप्टन(Upton) को मराठों से बातचीत करने पूना भेजा। अप्टन के पूना पहुँचते पर युद्ध बंद हो गया। पूना में अप्टन और मराठों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गये, क्योंकि अप्टन ने राघोबा को सौंपने से इन्कार कर दिया तथा वह सालसेट और बसीन पर अधिकार बनाये रखना चाहता था।

अतः वार्ता असफल हुई। और युद्ध पुनः शुरु हो गया।मराठों ने बङी वीरता का प्रदर्शन किया किन्तु दुर्भाग्य से पेशवा का विद्रोही मराठा सरदार सदाशिव एक दूसरे मोर्चे पर मराठों के विरुद्ध आ धमका। मराठे दो मोर्चों पर युद्ध नहीं कर सके और उन्होंने अंग्रेजों से 1मार्च,1776 को पुरंदर की संधि कर ली।

पुरंदर की संधि( 1मार्च,1776 )

  • अंग्रेजों ने राघोबा के लिए जो रकम खर्च की है, उसके लिए मराठा अंग्रेजों को 12 लाख रुपये देंगे।
  • सूरत की संधि को रद्द कर दिया गया।मराठों ने राघोबा को 3लाख 15हजार रुपये वार्षिक पेंशन देना स्वीकार कर लिया।
  • राघोबा अब कोई सेना नहीं रखेगा तथा गुजरात में कोपरगाँव में जाकर बस जायेगा।
  • युद्ध में अंग्रेजों ने जो क्षेत्र प्राप्त किये हैं वे अंग्रेजों के पास ही रहेंगे।

पुरंदर की संधि पर मराठों की ओर से सूखराम बापू ने तथा अंग्रेजों की तरफ से कर्नल अप्टन ने हस्ताक्षर किये। किन्तु बंबई सरकार तथा वॉरेन हेस्टिंग्ज इस संधि को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। इसी बीच मराठों ने विद्रोही सदाशिव को पकङ लिया तथा उसकी हत्या कर दी। अब मराठे अंग्रेजों से निपटने के लिए तैयार थे।

स्थिति उस समय और भी अधिक जटिल हो गई, जब 1778 में एक फ्रांसीसी राजदूत सैण्ट लुबिन फ्रांस के सम्राट का पत्र लेकर मराठा दरबार में पहुँचा,मराठों ने उसका शानदार स्वागत किया, किन्तु जब अंग्रेज राजदूत मॉटसन पूना पहुँचा तो उसका कोई विशेष स्वागत नहीं किया गया ।

अतः यह अफवाह फैलने लगी कि मराठों व फ्रांसीसियों में संधि हो गई। उधर मॉटसन ने मराठा दरबार के एक मंत्री मोरोबा को अपनी ओर मिलाकर नाना फङनवीस और सुखराम बापू में फूट डलवा दी। सुखराम बापू, जो पुरंदर की संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता था, उसने गुप्त रूप से बंबई सरकार को लिखा कि राघोबा को पेशवा बनाने में वह भी मदद देने को तैयार है।

अतः बंबई सरकार ने कहा कि चूँकि पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर करने वाला स्वयं हमारे निकट आ रहा है, इसलिए पुनः युद्ध चालू करने पर संधि का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। बंगाल कौंसिल ने इसका विरोध किया, किन्तु वॉरेन हिस्टिंग्ज ने बंबई सरकार का समर्थन किया। यद्यपि मराठों ने स्पष्ट कर दिया कि फ्रांसीसियों के साथ उनकी कोई संधि नहीं हुई है तथा सैंट लुबिन को भी वापिस भेज दिया गया है। किन्तु हेस्टिंग्ज ने मार्च,1778 में बंबई सरकार को युद्ध करने का अधिकार प्रदान कर दिया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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