मध्यकालीन भारतइतिहासतुर्क आक्रमण

तुर्कों की विजय तथा राजपूतों की पराजय

अरबों के बाद तुर्को ने भारत पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में तुर्कों का सामना राजपूतों ने किया था,लेकिन राजपूत तुर्कों से पराजित हुये।

राजपूतों की पराजय के कई कारण रहे हैं, जिनका विवरण नीचे किया जा रहा है-

राजपूतों की पराजय के कारणों को जानने से पहले हमें तुर्कों के बारे में जानना आवश्यक है – तो हम बताते हैं तुर्क कौन थे तथा इन्होंने कैसे भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था-

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तुर्क, चीन की उत्तरी-पश्चिमी सीमाओं पर निवास करने वाली एक असभ्य एवं बर्बर जाति थी। उनका उद्देश्य एक विशाल मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करना था।

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तुर्क

अलप्तगीन नामक एक तुर्क सरदार ने ग़ज़नी में स्वतन्त्र तुर्क राज्य की स्थापना की। 977 ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर अधिकार कर लिया। भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम मुस्लिम मुहम्मद बिन कासिम (अरबी) था, जबकि भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्की मुसलमान  सुबुक्तगीन था।

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सुबुक्तगीन से अपने राज्य को होने वाले भावी खतरे का पूर्वानुमान लगाते हुए दूरदर्शी हिन्दुशाही वंश के शासक जयपाल ने दो बार सुबुक्तगीन  पर आक्रमण किया, किन्तु प्रकृति की भयाभय लीलाओं के कारण उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। अपमान एवं क्षोभ से संतप्त जयपाल ने आत्महत्या कर ली।

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सुबुक्तगीन के मरने से पूर्व उसके राज्य की सीमायें अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैली थी।

सुबुक्तगीन की मुत्यु के बाद उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी महमूद गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा।

इस्लाम धर्म क्या है

इतिहासकारों  के अनुसार सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला महमूद गजनवी पहला तुर्क शासक था।

महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा से ‘यामीनुदौला’ तथा ‘अमीर-उल-मिल्लाह’ उपाधि प्राप्त करते समय प्रतिज्ञा की थी, कि वह प्रति वर्ष भारत पर एक आक्रमण करेगा।

इस्लाम धर्म के प्रचार और धन प्राप्ति के उद्देश्य से उसने भारत पर 17 बार आक्रमण किये। इलियट के अनुसार ये सारे आक्रमण 1001 से 1026 ई. तक किये गये। अपने भारतीय आक्रमणों के समय महमूद ने ‘जेहाद’ का नारा दिया, साथ ही अपना ‘बुत शिकन’ रखा। हालांकि इतिहासकार महमूद ग़ज़नवी को मुस्लिम इतिहास में प्रथम सुल्तान मानते हैं, किन्तु सिक्कों पर उसकी उपाधि केवल ‘अमीर महमूद’ मिलती है।



  • तुर्कों की विजय तथा राजपूतों की पराजय के कारणों पर कई इतिहासकारों ने अपने -2 विचार प्रस्तुत किये हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. हसन मिजामी एवं मिनहाज-उस-सिराज-

इन इतिहासकारों के अनुसार तुर्कों की विजय दैवी कृपा थी।

2. फख्र-ए-मुदव्विर-

फख्र-ए-मुदव्विर के अनुसार तुर्की  सैनिक तीव्र घुङसवार, तीरंदाज थे। तुर्कों की सामंतवादी प्रणाली।

3. जदुनाथ सरकार-

(i) तुर्कों का भाग्यवादी होना।

(ii) इस्लाम में जातीय समानता की भावना।

(iii) मुस्लिम सेना का शराब से दूर रहना।

4. एलफिंसटन-

इनके अनुसार तुर्क लङाकू जनजाति के थे। (अमान्य मत)

5. लेनपूल एवं विंसेट स्मिथ-

तुर्क मांसाहारी थे। (अमान्य मत)

6. रमेश चंद्र दत्त –

भारतीय समाज का आर्थिक व सामाजिक पतन । ( महत्त्वपूर्ण मत )

7. के.पी. जायसवाल-

राजपूतों का विदेशों से संपर्क न होना।

सामंती प्रणाली

राजपूतों में संगठन की भावना का अभाव था।  राजपूतों की सामंती प्रणाली पतनशील अवस्था में थी, इससे राजपूत शासकों का अपने सामंतों पर नियंत्रण सिमित था। सामंत वंशानुगत थे। जबकि दूसरी तरफ तुर्की शासकों में प्रचलित इक्ता प्रणाली में सुल्तान का अपने इक्तेदारों पर नियंत्रण अधिक होता था। राजपूत सेना में विभिन्न सामंतों के अधीन सेना का प्रशिक्षण अलग-2 होने के कारण युद्ध भूमि में उनमें  समन्वय नहीं हो पाता था।इसी प्रकार सामंती सेना शासक की बजाय सामंत के प्रति अधिक वफादार होती थी।

भारतीय समाज की पिछङी हुई सामाजिक दशा-

भारत अनेक जातीयों व उपजातीयों में बंटा हुआ था, जिसमें जाति भेद गहरे स्तर पर स्थापित था।वर्ण व्यवस्था पर आधारित होने के कारण भारत की कुछ जातीयां ही युद्ध में भाग लेती थी। अधिकांश जातीयां युद्ध से दूर ही रहती थी। इसका उल्लेख अलबेरूनी ने भी किया है। अलबेरूनी के अनुसार तुर्कों ने भारतीयों से नहीं बल्कि राजपूतों से साम्राज्य छीना जबकि दूसरी ओर इस्लाम में जातीय समानता की भावना थी, तथा सभी वर्ग जरुरत पङने पर युद्ध में भाग लेते थे।

धार्मिक कारण-

भारतीय समाज के अधिकांश धर्म सहिष्णुता व अहिंसा पर बल देते थे। दूसरी तरफ तुर्की सैनिक जिहाद (धर्म-युद्ध)के नाम पर एक होकर विधर्मियों के विरुद्ध इस्लाम की विजय के लिये युद्ध करते थे। धर्म का मुसलमानों पर अत्यधिक प्रभाव था।

राजनैतिक कारण-

(i) राजपूत शासकों की आदर्शवादी सोच –  जैसे – युद्ध में धर्म का पालन करना तथा भागती हुई सेना पर वार न करना, शंरणागत को संरक्षण देना।

(ii) राजपूत शासकों की गुप्तचर प्रणाली अधिक सुदृढ नहीं थी।

तुर्क विजेता अपने राजपूत प्रतिद्वन्द्वियों की तुलना में अधिक योग्य और अनुभवी थे – 

सुबुक्तगीन,महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, कुतुबुद्दीन ऐबक आदि अपने समकालीन राजपूत शासकों – जयपाल, भीम, भोज, पृथ्वीराज, जयचंद आदि की अपेक्षा उच्चकोटि के सेनानायक थे। उनमें सैनिक संगठन तथा संचालन की योग्यता राजपूत राजाओं की अपेक्षा कहीं अधिक थी। राजपूत शासकों से युद्ध क्षेत्र में भयंकर भूलें हुई थी उदाहरण के तौर पर तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी से जीतने के बाद उसका वध नहीं किया उसे जाने दिया तथा स्वयं भी मनोरंजन में लग गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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