प्राचीन भारतइतिहासविदेशी यात्री

विदेशी यात्रियों का विवरण

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

मेगस्थनीज (304-299 ई.पू.)-

  • मेगस्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी सम्राट सेल्यूकस के राजदूत के रूप में आया था।
  • इसने मौर्य कालीन भारत  के बारे में अपने अनुभवों एवं विचारों को अपनी पुस्तक इण्डिका में लेखबद्ध किया है।यद्यपि मूल पुस्तक तो अप्राप्य है किन्तु परवर्ती लेखकों-एरियन,स्ट्रैबो,प्लिनी आदि की रचनाओं में उसकी पुस्तक के कुछ अंश उद्धृत किये गये हैं।
  • मेगस्थनीज के अनुसार भारतीय समाज में सात वर्ग थे।उसने दास प्रथा का उल्लेख नहीं किया है।किन्तु सती प्रथा का उल्लेख किया है।
  • उसके अनुसार भारतीय यूनानी देवता डायोनीसियस तथा हेराक्लीज की पूजा करते थे। वस्तुतः इससे शिव एवं कृष्ण की पूजा से तात्पर्य है।
  • उसने लिखा है कि भारत में दुर्भिक्ष नहीं पङते थे। उसके अनुसार मौर्य काल में नगर का प्रबंध एक नगर परिषद द्वारा होता था जिसमें पाँच-2 सदस्यों वाली छः समितियाँ काम करती थी।
  • इसने भारतीय पत्तनों, बंदरगाहों तथा व्यापारिक माल का वर्णन किया गया है। यह संगम युग का महत्वपूर्ण विदेशी साहित्यिक स्रोत है।

इंडिका में दक्षिणी भारत के पत्तनों एवं प्रथम शदाब्दी ई. में रोमन साम्राज्य के साथ  होने वाले व्यापार का विस्तृत वर्णन मिलता है।

पेरिप्लस-

  • इसके लेखक के अनुसार शुक्ति मोती उद्योग काल्ची (पांड्य राज्य में ताम्रपर्णी नदी पर कोरकाई) तथा तटवर्ती (चोलमंडलम) देशों से संचालित होते थे।
  • पेरिप्लस का कथन है कि फारस की खाङी से भृगुकच्छ में दासों का निर्यात किया जाता था।

टालमी (द्वितीय शता. का मध्यकाल)-

  • यह यूनानी भूगोल वेत्ता था।इसने द्वितीय शता. कालीन भारत के भूगोल का वर्णन किया किन्तु इसके विवरण में अनेक त्रुटियाँ हैं।

प्लिनी(प्रथम शता.)-

  • यह यूनानी लेखक था।इन्होंने लैटिन भाषा में नेचुरल हिस्ट्री लिखी जो इण्डिका पर आधारित है।
  • इसने अपनी पुस्तक नेचुरल हिस्ट्री में प्रतिवर्ष रोम से भारत में चली जाने वाली सोने की भारी मात्रा के लिए दुख प्रकट किया है।
  • प्लिनी ने भारतीय बहुमूल्य रत्नों की एक लंबी सूची दी है और भारत को एक बहुमूल्य रत्नों वाला एक बङा उत्पादक देश बताया है। उसने भारत तथा उसकी नदियां को रत्न धारक उपाधि से विभूषित किया है।

स्ट्रैबो-

  • यह एक यूनानी लेखक था जो दूसरी शता. में भारत आया था।इसके अनुसार मौर्यकाल में नावों के निर्माण पर राज्य का एकाधिकार था।उसने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति किसी हस्तशिल्पी के हाथ या आंख को क्षति पहुंचाता था तो उसे मृत्युदंड दिया जाता था।
  • उसने पश्चिमी व्यापार में भारतीय भागीदारी से संबंधित रोचक संस्मरणों का वर्णन किया है।

फाह्यान(399-414ई.)-

  • प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षुक फाह्यान गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में भारत आया था।इसने तत्कालीन भारत की सामाजिक,धार्मिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी दी है।(राजनीतिक स्थिति का वर्णन नहीं )
  • फाह्यान के अनुसार गुप्तकाल में वस्तु विनिमय कौङियों के माध्यम से होता था।उसने चंद्रगुप्त मौर्य के राजप्रसाद का वर्णन करते हुए  लिखा है कि यह राजप्रसाद मानव कृति नहीं बल्कि देव निर्मित है।

कास्मस,इण्डिकोप्लेस्टेप्ज(530-550ई.)-

  • इंडिकोप्लेस्टेप्ज नाम से विख्यात यूनानी भिक्षुक तथा व्यापारी समुद्री मार्ग से भारत आया और इसने श्रीलंका तक व्यापार किया।
  • इसके वृतांत से पता चलता है कि पांचवी छठी शता. में भारत चीन व्यापार में सिंहलद्वीप एक महत्त्वपूर्ण बिचौलिए का काम करता था।
  • इसकी पुस्तक क्रिश्चियन टोपोग्राफी है जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में विस्तृत एवं महत्त्वपूर्ण विवरण उपलब्ध है।

ह्वेनसांग 9629-643ई.)-

  • प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षुक ह्वेनसांग सम्राट हर्षवर्धन के शासन काल में भारत आया।तीर्थयात्रियों के राजकुमार के नाम से प्रसिद्ध इस चीनी बौद्ध भिक्षुक ने कई वर्ष भारत में रहकर नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया।इसने हर्ष को शिलादित्य के नाम से अभिहित किया है।
  • इसके यात्रा विवरण को सि-यू-की कहा जाता है।कन्नौज की धर्म सभा का यह अध्यक्ष था।ह्मेनसांग ने क्षत्रियों की वीरता की प्रशंसा की तथा उन्हें राजाओं की जाति का तथा शूद्रों को कृषक कहा है।

इत्सिंग(671-695ई.)-

  • यह चीनी यात्री बौद्ध धर्म तथा बौद्ध उपदेशों को ग्रहण करने के उद्देश्य से भारत आया । इसकी प्रसिद्ध पुस्तक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षुओं की आत्मकथाएं  में समकालीन भारत के लोगों के सामाजिक,धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन के बारे में विस्तृत उल्लेख मिलता है।
  • इत्सिंग अपने साथ सुत्त,विनय एवं अभिधम्म पिटकों की लगभग 400 प्रतियाँ भी ले गया।

इब्न खुर्दाद्ब(864ई.)-

  • पूर्व मध्यकालीन भारत के 16 महान अरब भूगोल वेत्ताओं में एक इब्न खुर्दाद्ब  था। इसने अपनी पुस्तक किताबुल-मसालिक वल ममालिक (मार्गों एवं राज्यों की विवरणिका पुस्तिका) में 9वी. शता. की अंतर्संचार व्यवस्था के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराई हैं। इब्न खुर्दाद्बने क्षत्रियों को दो वर्गों – सवूकफूरिया(राजवंशीय सामंत और यौद्धा) और कतरिया(साधारण क्षत्रिय) में बाँटा है।

अलमसूदी(957ई.)-

  • यह अरब यात्री था।इसने प्रतिहार राज्य का दौरा किया अलमसूदी गुर्जर प्रतिहार को अल गुर्जर  और राजा को बौरा कहकर पुकारता था।
  • इसने अपनी पुस्तक महजुल जहाब में अपने यात्रा वृतांत और भौगोलिक टिप्पणियाँ लिखी हैं।

अलबरूनी(1024-1030ई.)-

  • भारत आने वाले प्रमुख अरब यात्रियों में अलबरूनी उर्फ अबूरेहान भी था।यह महमूद गजनबी के सोमनाथ पर आक्रमण के समय भारत आया था।यहाँ रहते हुए इसने खगोल विद्या, संस्कृत तथा रसायन शास्र आदि विषयों का विस्तृत विवरण किया है।
  • अलबरूनी की पुस्तक तहकीक-ए-हिन्द ग्यारहवीं शता. के भारत का चित्र प्रस्तुत करती है।उसके अनुसार ब्राह्मणों को मृत्युदंड से छूट थी। ब्राह्मणों के लिए सबसे कठोर दंड देश निष्कासन था।
  • उसके अनुसार किसी ब्राह्मण के विरुद्ध किये गये घातक अपराध से किसी भी प्रकार की मुक्ति नहीं पायी जा सकती है, किसी ब्राह्मण की हत्या करना महानतम अपराध था जिसे व्रज हत्या कहा जाता था।
  • अलबरूनी ने चार परंपरागत जातियों का उल्लेख किया है। इन जातियों से बाहर के लोग अत्यंज कहलाते हैं। उसने अछूतों की सबसे लंबी सूची दी है। अलबरूनी ने तत्कालीन समाज में वैश्यों एवं शूद्रों में कोई अंतर नहीं पाया है यदि इनमें से किसी भी जाति के लोग वेदों का पाठ करते  तो राजा उसकी जीभ कटवा देता था।

चाऊ जू कुआ(1225-1254ई.)-

  • यह चीनी व्यापारी और यात्री था।इसने 12वी. शता और 13वी. शता. के चीनी और अरब व्यापार के संबंध में चु-फान-ची नामक पुस्तक में बङा रोचक विवरण प्रस्तुत किया है।इस पुस्तक में दक्षिण भारत (चोल)और चीन के वाणिज्यिक संबंधों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

मार्कोपोलो(1292-1293ई.)-

  • यह वेनिस निवासी इतालवी यात्री था जिसे मद्यकालीन यात्रियों का राजकुमार कहा गया है।
  • पांड्य नरेश मारवर्मन कुलशेखर के शासन काल में दक्षिण भारत की यात्रा की  था।इसने पांड्य साम्राज्य की समृद्धि , विदेश व्यापार एवं सम्राट की न्याय व्यवस्था की भूरि-2 प्रशंसा की है।मार्कोपोलो के अनुसार पांड्य राज्य मावर मोतियां के लिए प्रसिद्ध था। इसने काकतीय वंश की शासिका रुडांबा का उल्लेख किया है।

इब्नबतूता (शेख फतह अबू अब्दुल्ला) (1333-1347ई.)-

  • यह मोरक्को मूल का अफ्रीकी यात्री था।यह सल्तनत काल में मुहम्मद बिन तुगलक के काल में भारत आया था।
  • मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे (इब्नबतूता) दिल्ली का काजी नियुक्त किया था।बाद में उसे 1342ई. में सुल्तान का राजदूत बनाकर चीन भेजा गया।
  • 1345ई. में यह मदुराई के सुल्तान के दरबार में भेजा इब्नबतूता ने रहेला नामक पुस्तक में अपने यात्रा संस्मरणों का संकलन प्रकाशित किया।

निकोलो कोण्टी(1420-1421ई.)-

  • विजयनगर की यात्रा करने वाला यह पहला इतावली यूरोपीय यात्री था जो देवराय प्रथम के शासन काल में आया था।
  • कोण्टी ने विजयनगर के शहर उसके दरबार वहाँ की प्रथाओं,मुद्रा त्योंहारों तथा अन्य विषयों का बङा विशद वर्णन किया है।
  • उसने लिखा है कि नगर का घेरा साठ मील है, इसकी दीवारें पहाङों तक चली गई है और नीचे की ओर घाटियों को घेरे हुए हैं।
  • मार्कोपोलो को मध्य कालीन यात्रियों का राजकुमार कहा गया।

अब्दुर्रज्जाक(1443-1444ई.)-

  • यह फारसी यात्री था जो कालीकट के जमोरिन के यहाँ शाहरूख का राजदूत बनकर आया था।
  • 1443ई. में देवराय द्वितीय के शासन काल में इसने विजयनगर की यात्रा की थी।
  • विजयनगर शहर के अद्भुत रूप में वैभव से आश्चर्यचकित होकर उसने लिखा है- मैंने पूरे विश्व में इसके समान दूसरा शहर न कोई देखा है,न सुना है । यह इस प्रकार हुआ है कि एक के भीतर एक इसमें सात परकोटे हैं।
  • उसके वर्णन से तत्कालीन विजयनगर की स्थलाकृति, प्रशासन तथा सामाजिक जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।

एथेनेसियस निकितन(1470-1474ई.)-

  • यह रूसी घोङों का व्यापारी था।इसने मुहम्मद तृतीय के शासन काल में बहमनी राज्य की यात्रा की। यह काफी समय तक बीदर में रहा।इसके वृतांत में बहमनी शासन के अधीन राजदरबार,सेना और लोगों की दशा का विवरण मिलता है।

दुआर्टे बारबोसा(1500-1516 ई.)-

  • यह भारत में 1500ई. से 1516ई. में कन्नानो में पुर्तगाली अभिकर्ता के रूप में रहा और बाद में पुर्तगाली गवर्नर अल्बुकर्क के दुभाषिए के रूप में कार्य किया।
  • इसने कृष्ण देवराय के शासन काल में विजयनगर की यात्रा की।1517-18ई. में बारबोसा पुर्तगाल लौट गया। वहाँ उसने अपने यात्रा वृतांत को अंतिम रूप दिया।इसने विजयनगर साम्राज्य के इतिहास तथा मध्यकालीन दक्षिणी भारत के आर्थिक इतिहास का विस्तृत वर्णन किया।
  • बारबोसा महमूद बेगङा के काल में गुजरात का भ्रमण किया था।उसके अनुसार महमूद बेगङा को बचपन से ही किसी जहर का नियमित रूप से सेवन कराया गया था। अतः उसके हाथ पर यदि कोई मक्खी भी बैठ जाती थी तो वह फूलकर मर जाती थी।

बारबोसा लिखता है कि विजयनगर साम्राज्य में सती प्रथा का प्रचलन था किन्तु यह प्रथा लिंगायतों,चेट्टियों और ब्राह्मणों में प्रचलित नहीं थी।

बार्थेमा(1502-1508ई.)-

  • यह एक वीर सिपाही और महान पुर्तगाली यात्री था जो पुर्तगाल द्वारा सम्मानित भी किया गया था।
  • इसने 1502ई. से 1508ई. के बीच भारत की यात्रा की और अपने अनुभवों का विशद् उल्लेख किया।विजयनगर की राजधानी और साम्राज्य के बारे में उसके विवरण में बहुत रोचक और मूल्यवान जानकारी मिलती है।

डोमिगो पायस(1520-22ई.)-

  • यह पुर्तगाली यात्री राजा कृष्णदेवराय के शासन काल में विजयनगर की यात्रा की।डोमिगो पायस ने विजयनगर के वैभव को जैसा देखा उसके बारे में आख्यानों,किंवदंतियों, कथाओं आदि का यथावत वर्णन किया है।
  • पायस की कथा में विजयनगर के शासक कृष्ण देवराय के शासन का आंखों देखा हाल मिलता है।
  • पायस ने विजयनगर शाहर को रोम के समान वैभवशाली और देखने में अत्यंत रमणीय पाया। यह विश्व का सर्वोत्तम नगर है।

फर्नांडीस नूनिज(1535-37ई.)-

  • यह पुर्तगाली घोङों का व्यापारी था। यह विजयनगर साम्राज्य में तीन वर्ष रहा।यह विजयनगर शासक अच्युत राय के शासन काल में विजयनगर आया था।

सीजर फ्रेडरिक(1567-68ई.)-

  • पुर्तगाली यात्री सीजर फ्रोडरिक ने तालीकोटा युद्ध (1565ई.) के बाद विजयनगर साम्राज्य का भ्रमण किया तथा इस राजकीय नगर के विनष्ट वैभव पर अपनी टिप्पणी की।

राल्फ फिच(1583-1591ई.)-

  • यह फतेहपुर सीकरी और आगरा पहुंचने वाला पहला अंग्रेज व्यापारी था।इसने भारत के विभिन्न भागों का भ्रमण किया।
  • यह मुगल शासक अकबर के शासन काल में भारत आया था।

विलियम हॅाकिन्स (1608-1611ई.)-

  • यह जहाँगीर के दरबार में ब्रिटिश राजा जेम्स प्रथम का राजदूत था।यह भारत में अंग्रेजों के व्यापारिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए भारत आया था।

सर टॅामस (1615-1619ई.)-

  • जहांगीर के दरबार में आने वाले दूसरे अंग्रेज शिष्टमंडल के नायक सर टॅामस रो अपने गुरु टैरी के साथ यहाँ लगभग तीन वर्ष तक रहा।
  • माण्डू और अहमदाबाद की यात्रा के दौरान यह जहाँगीर के साथ रहा।पूर्वी द्वीपों की यात्रा नामक विवरण में इसने मुगल दरबार के षड्यंत्र एवं धोखाधङी का वास्तविक विवरण प्रस्तुत किया था।
  • इसने मुगल सम्राट जहाँगीर से भारत में अंग्रेज फैक्ट्री स्थापित करने का कानूनी अधिकार प्राप्त किया।

फादर-एन्थाना मोंसेरात-

  • पुर्तगाली फादर मोंसेरात फादर एक्वाविवा के साथ 1580ई. में मुगल सम्राट अकबर के दरबार में आया था।
  • उसने अकबर के चरित्र एवं व्यक्तित्व का विशद वर्णन किया है।फादर मोंसेरात को शाहजादा मुराद का शिक्षक नियुक्त किया गया था।

पियेत्रो देलावाले(1622-1626ई.)-

  • यह इतालवी यात्री 1622ई. में जहांगीर के काल में सूरत पहुंचा तथा इसने भारत के तटीय क्षेत्रों की विस्तृत यात्रा की। यह भारत आने वाले अत्यंत तटस्थ और निष्पक्ष यात्रियों में से एक था जिसने भारतीय धार्मिक सहिष्णुता और सती प्रथा आदि का वस्तुनिष्ठ ढंग से विर्णन किया है।

पीटर मुंडी(1630-1634ई.)-

  • यह इतालवी यात्री मुगल बादशाह शाहजहाँ के शासनकाल में भारत आया था। इसने शाहजहाँ के शासनकाल में पङे दुर्भिक्ष (अकाल) का वर्णन किया है।

विलियम फिंच(1608ई.)-

  • विलियम फिंच हॅाकिंस के साथ ही अगस्त 1608ई. में जहांगीर के शासन काल में सूरत आया। फिंच ने मनुष्यों,जानवरों,पौधों,किलों,पुलों,इलाकों,धार्मिक विश्वासों आदि का वर्णन किया।ऐसा वर्णन किसी अन्य यात्री का नहीं मिलता है। बुलंद दरवाजे को उसने सारी दुनिया में सबसे ऊंचा और भव्य माना तथा लाहौर को पूर्व का सबसे बङा शहर माना है।
  • केवल विलियम फिंच ही ऐसा यात्री है, जिसने अनारकली की दंत कथा का उल्लेख किया है।

एडवर्ड टैरी(1616-1619ई.)-

  • टैरी , सर टॅामस रो का पादरी था तथा जहांगीर के काल में भारत आया था।टैरी ने तत्कालीन सिक्कों का आकार तथा मूल्य आदि का विवरण दिया है।उसके अनुसार यहाँ के सिक्के दुनिया के किसी भी देश के सिक्कों से अधिक शुद्ध होते हैं।सिक्का रुपया कहलाता था।

फ्रांसिस्को पेलसार्ट –

  • यह एक डच फैक्टरी (गुमाश्ता) था जो जहांगीर के काल में आया तथा आगरा में डच टकसाल का अध्यक्ष था।
  • पेलसार्ट ने नील के उत्पादन और विशेषकर बयाना बयाना में नील के उत्पादन के बारे में जो कुछ लिखा है, उसका कोई सानी नहीं है।

जीन बैप्टिस्ट ट्रैवर्नियर(1638-1663ई.)-

  • फ्रांसीसी यात्री जीन बैप्टिस्ट ट्रैवर्नियर 1638ई. से 1663 के बीच भारत की छः बार यात्रा की है।
  • यह पेशे से जौहरी था तथा शाहजहाँ के शासन काल में भारत की यात्रा की थी।इसने अपने यात्रा वृतांत में ट्रेवल्स इन इंडिया जिसका प्रथम प्रकाशन 1676ई. में हुआ, में शाहजहाँ और औरंगजेब के शासनकाल का विस्तार से विवरण प्रस्तुत किया है।
  • हीरे का व्यापारी होने के कारण हीरा व्यापार और खनिजों के बारे में ट्रैवर्नियर का विस्तृत विवरण अनुपम है। इसने समुद्री मार्गों,सिक्कों,माप-तौल, निर्यात व्यापार और यातायात के विषय में भी विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है।
  • कुल मिलाकर ट्रैवर्नियर का वृतांत मुगल साम्राज्य के इतिहास के लिए विशेष रूप से आर्थिक विकास की जानकारी के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

निकोलाओ मनूची(1653-1708ई.)-

  • यह इतालवी यात्री चौदह वर्ष की अल्पायु में ही अपने गृहनगर वेनिस से भागकर एशिया माइनग और फारस की लंबी यात्रा करता हुआ भारत पहुंचा।इसने भारत आकर शहजादा दारा शिकोह की सेना में तोपची के रूप नौकरी की।1659ई. में दारा शिकोह की पराजय और मृत्यु के बाद इसने चिकित्सक का पेशा अपना लिया।
  • स्टोरिया दो मोगोर नामक संस्करण लिखा। इसे 17वी. शता. के भारत का दर्पण कहा जाता है।

फ्रांसिस वर्नियर(1556-1717ई.0-

  • यह फ्रांसीसी यात्री पेशे से चिकित्सक था। यह शाहजहाँ के दरबार से संबंधित था। और दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच होने वाले उत्तराधिकार की लङाई का साक्षी था।
  • सामूगढ की लङाई के बाद यह क्रमशः आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह,गोआ में पुर्तगालियों तथा गोलकुंडा के सुल्तान अबुल हसन कुतुबशाह की सेवा में रहा। इसने मुगलक साम्राज्य का विशद इतिहास ट्रेवल इन द मुगल एम्पायर(Travel in Mugal Empire) नाम से किया है।

मैनडेस्लो-

  • शाहजहां के शासनकाल में 1638ई. में भारत आया।यह बहुत अल्प समय तक भारत में रहा।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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