वेवेल योजना एवं शिमला सम्मेलन क्या था
अक्टूबर,1943 को लिनलिथगो की जगह लार्ड वेवल(Lord Wavell) भारत के वायसराय बन कर आये। इस समय भारत की स्थिति अत्यधिक तनावपूर्ण थी। वेवल स्थिति को सामान्य बनाने की दिशा मे प्रयास करते हुए सर्वप्रथम भारत छोङो आंदोलन के समय गिरफ्तार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों को रिहा किया।
14 जून,1945 को वेवल ने वेवेल योजना प्रस्तुत की, जिसकी प्रमुख शर्तें इस प्रकार थी-
वेवेल योजना(Wavell scheme) की शर्तें
- केन्द्र में एक नई कार्यकारी परिषद का गठन हो, जिसमें वायसराय तथा कमांडर इन चीफ के अलावा शेष सदस्य भारतीय हों।
- कार्यकारी परिषद एक अंतरिम व्यवस्था थी, जिसे तब तक देश का शासन चलाना था, जब तक की एक नये स्थायी संविधान पर आम सहमति नहीं हो जाती।
शिमला सम्मेलन(Shimla conference)
वेवेल प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हेतु शिमला में 25 जून, 1945 को शिमला सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें 21 भारतीय राजनीतिक नेताओं ने हिस्सा लिया।
शिमला सम्मेलन में कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में मौलाना अबुल कलाम आजाद तथा मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना ने हिस्सा लिया।
सम्मेलन में जिन्ना द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव की वायसराय की कार्यकारिणी के सभी मुस्लिम सदस्य लीग से ही लिये जाये, क्योंकि मुस्लिम लीग ही मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था है।
जिन्ना के इस अनुचित और अप्रजातांत्रिक प्रस्ताव का कांग्रेस ने विरोध किया, वेवेल ने 14 सदस्यों वाली परिषद में 6 सदस्य मुसलमानों में से चुने गये, फिर भी लीग ने इस योजना का विरोध किया, अंततः वेवेल ने इस योजना को निरस्त कर दिया।
अबुल कलाम आजाद ने शिमला सम्मेलन की असफलता को भारत के राजनीतिक इतिहास में एक जलविभाजक की संज्ञा दी।
सम्मेलन में वेवेल ने लीग को अधिक संतुष्ट करने की नीति का पालन कर मुसलमानों को एक ऐसी विटो शक्ति सौंप दी, जिसका वह किसी भी संवैधानिक प्रस्तावों के विरुद्ध प्रयोग कर सकती थी।
विटो का अधिकार जो मुस्लिम लीग को शिमला सम्मेलन में मिला वह यह था, कि यदि मुसलमानों को किसी प्रस्ताव पर आपत्ति है तो ऐसे प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित होनो पर ही स्वीकार किये जायें।
Reference : https://www.indiaolddays.com/