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कर्नाटक,राजपूत,भरतपुर,रुहेलखंड का इतिहास क्या था

कर्नाटक,राजपूत,भरतपुर,रुहेलखंड का इतिहास निम्नलिखित है-

कर्नाटक,राजपूत,भरतपुर,रुहेलखंड

कर्नाटक

कर्नाटक

स्वतंत्र कर्नाटक राज्य का संस्थापक सादुल्ला खां को माना जाता है। इसने आरकाट को अपनी राजधानी बनाया।

कर्नाटक का प्रयोग अंग्रेज और फ्रांसीसियों ने भारतीय युद्धों के मैदान के रूप में किया।

ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली ने मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के साथ गुप्त और षङयंत्रात्मक पत्राचार करने का आरोप लगाकर कर्नाटक के नवाब मुहम्मद अली और उनके उत्तराधिकारी ओमदुत उलउमेर से राजगद्दी का अधिकार छीन लिया।

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राजपूतों का इतिहास-

राजपूत

अठारहवीं शता. के राजपूत शासकों में सवाई राजा मिर्जा जयसिंह का स्थान सर्वोपरि है। इन्होंने विज्ञान और कला के महान केन्द्र के रूप में जयपुर की स्थापना की।

सवाई जयसिंह कुशल शासक होने के साथ-2 महान विधिवेता,खगोलशास्री, नगर-नियोजक,नगर-संस्थापक एवं वैज्ञानिक था।

आमेर के राजा जयसिंह को मिर्जा राजा सवाई की उपाधि मुगल बादशाह जहांदरशाह ने दी थी।

जयसिंह ने मथुरा, उज्जैन , जयपुर , और दिल्ली में आधुनिक उपकरणों से युक्त वेधशालाओं का निर्माण कराया।

आमेर के राजा जयसिंह को अपने शासन काल में दो अश्वमेघ यज्ञ (यह यज्ञ राज्य विस्तार हेतु किया जाता था।इसमें 4 रानियाँ,4 रत्निन/वीर(अधिकारी), 400 सेवक ।

इन सबके अलावा 1हाथी, 1 श्वेत बैल,  1 श्वेत घोङा, 1श्वेत छत्र आवश्यक होता था।3दिन तक यह यज्ञ चलता था।साल भर बाद अभिषिक्त घोङे की यज्ञ में 600 बैलों (सांड) के साथ बलि दी जाती थी।)करवाने का भी श्रेय दिया जाता है।

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जयसिंह ने जिजमुहम्मदशाही नाम से सारणियों का एक ऐसा सेट तैयार करवाया जिससे खगोलशास्र संबंधी पर्यवेक्षक में मदद मिलती थी।

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भरतपुर का इतिहास-

भरतपुर में स्वतंत्र जाट राज्य की स्थापना चूङामल एवं बदनसिंह ने की थी।जाट नेता सूरजमल को जाट जाति का प्लेटो कहा जाता है।

सूरजमल (SurajMal)ने भरतपुर नगर की नींव डाली थी। भरतपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर है। भरतपुर प्रमुख शहर होने के साथ-साथ देश का सबसे प्रसिद्ध पक्षी उद्यान भी है। भरतपुर विश्‍व धरोहर सूची में शामिल है, तथा यह स्थान प्रवासी पक्षियों का भी बसेरा है।

भरतपुर जहां स्थित है, वह इलाका सोघटिया जाट सरदार रुस्तम के अधिकार में था। सूरजमल ने सन्  1733  में खेमकरण सोघटिया की फतहगढी पर आक्रमण किया और यहां पर सन 1743 में राजा सूरजमल(SurajMal ) ने भरतपुर नगर की नींव डाली।

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रूहेलखंड का इतिहास-

रुहेलखंड का इतिहास चार हजार साल से भी पुराना है।

प्राचीन काल में यह पांचाल राज्य के उत्तरी पंचाल के रुप में, बौद्ध काल में 16 महाजनपदों में पांचाल जनपद, मध्य काल में कठेर या कठेहर और फिर ब्रिटिश काल में इसे रुहेलखंड के नाम से जाना जाने लगा।

समय के साथ-साथ रुहेलखंड के भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में बदलाव आए लेकिन आज भी इसका गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक महत्व देश-दुनिया में जाना जाता है।

प्राचीन काल में बरेली या कहें रुहेलखंड का क्षेत्र पांचाल राज्य नाम से जाना जाता था।

पूर्व दिशा में गोमती, पश्चिम में यमुना, दक्षिण में चंबल और उत्तर में हिमालय की तलहटी से घिरे पांचाल का भारतीय संस्कृति के विकास एवं संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

प्राचीन काल में कुमायूं के मैदानी क्षेत्र से लेकर चंबल नदी और गोमती नदी तक फैला यह क्षेत्र छठी शताब्दी ई.पू. तक पांचाल राज्य के अंतर्गत रहा।

इतिहास के पन्नों पर नजर डाली जाए तो इसके पांचाल नामकरण को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं।

कहा जाता है कि भरतवंशी राजा भ्रम्यश्व के पांच पुत्रों में बंटने के कारण और कृवि, तुर्वश, केशिन, सृंजय और सोमक पांच ने इस भूभाग पर राज किया और इसी के चलते प्राचीन काल में इसका नाम पांचाल पड़ा।

स्वतंत्र रूहेलखंड की स्थापना वीर दाऊद और अलीमुहम्मद खां ने की।रुहेला सरदार नजीबुद्दौला अहमदशाह अब्दाली का विश्वासपात्र था।

उत्तर प्रदेश में फर्रुखाबाद के आस-पास बंगश पठानों ने 1714 में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की जिसे मुहम्मद खां बंगश ने अपना नेतृत्व प्रदान किया।

सम्राट भरत के ही काल में राजा हस्ति हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई। राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पांचाल का राजा कहा गया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Online References
Wikipedia : Rajput

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