फ्रेडरिक डब्ल्यू टेलर कौन थे?

फ्रेडरिक विनस्लो टेलर पहले ऐसे अमरीकन थे, जिन्होंने 20 वीं शताब्दी के आरंभ में उद्योग के प्रबंधन पर गंभीर शोध प्रयास किए । हालांकि वह प्रबंधन का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे। लेकिन उनके पहले भी कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ, जो सीधे कार्य पद्धति के विश्लेषण से जुङा हो। टेलर विश्वास करते थे कि सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन असली विज्ञान है, जो हर तरह की मानवीय गतिविधियों में लागू होता है। इसलिए आम तौर पर उनका न केवल वैज्ञानिक प्रबंधन के पितामह के रूप में सम्मान किया जाता है अपितु उन्हें आधुनिक प्रबंध तकनीकों और पद्धतियों का प्रणेता भी समझा जाता है। हर उस व्यक्ति के लिए जिसका प्रबंधन से नाता है, टेलर के जीवन और उनके विचारों के बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है।
फ्रेडरिक विनस्लो टेलर का जन्म 20 मार्च, 1856 को पेन्सिलवेनिया राज्य के जर्मन टाउन में हुआ था। उन्होंने फ्रांस और जर्मनी के अलावा फिलिप्स एक्सेटर अकादमी में भी पढाई की। यद्यपि वे हार्वर्ड की प्रवेश परीक्षा में प्रतिष्ठा के साथ उत्तीर्ण हुए, इसके बाद की अपनी अकादमिक पढाई वे जारी नहीं रख पाए क्योंकि मिट्टी के तेल में अत्यधिक पढाई के चलते उनकी आंखे खराब हो गयी। 1874 में जब वह महज 18 साल के थे तब उन्होंने फिलाडेल्फिया की इंटरप्राइज हाइड्रयूलिक वर्क्स में काम करना शुरू कर दिया। यहां उन्होंने चार वर्षों तक बिना वेतन के अपरेंटिस के तौर पर काम किया।
1878 में वह मिडवले स्टील कंपनी में एक लेबर की हैसियत से काम करने गये और 1884 में यहीं मुख्य इंजीनियर बने। यह पद उन्हें न्यूजर्सी स्थित स्टीवेंस इंस्टीच्यूट ऑफ होबोकेन से मैन्यूफैक्चरिंग इनवेस्टमेंट कंपनी में महाप्रबंधक बने। 1893 में उन्होंने न्यूयार्क में एक इंजीनियरिंग सलाहकार का दफ्तर खोला। प्रबंधन विशेषज्ञ फ्रेडरिक अच्छे खासे वैज्ञानिक भी थे। उन्होंने एक कटाई का औजार, स्टील गर्म करके संसाधित करने की पद्धति, स्टील का हथौङा, विद्युत उर्जा से चलने वाला लदाई यंत्र, टूल फीडिंग मैकेनिज्म तथा छेद करने वाले उपकरणों का आविष्कार किया। सन 1901 से 29 मार्च, 1915 के दिन अपनी मृत्यु तक उन्होंने अपना ज्यादातर समय वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकों के शोध पर लगाया। टेलर केवल अपने काम की वजह से नहीं अपितु अपने व्यक्तित्व के चलते भी दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण है। कार्य कुशलता के प्रति उनके अंदर असीम समर्पण का भाव था और उनमें काम करने की चमत्कारिक क्षमता थी।