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असहयोग आंदोलन (1920-21)के क्या कारण थे

कलकत्ता में काँग्रेस के विशेष अधिवेशन (1920) में पास हुये, असहयोग आंदोलन संबंधी प्रस्ताव की दिसंबर,1920 में नागपुर में हुए काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में पुष्टि की गई।

काँग्रेस के नागुपर अधिवेशन का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इस अधिवेशन में असहयोग के प्रस्ताव की पुष्टि के साथ ही दो और महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये थे।

  • पहले निर्णय के अंतर्गत काँग्रेस ने अब ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन का अपना लक्ष्य त्याग कर, ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर और आवश्यक हो तो उसके बाहर स्वराज का लक्ष्य घोषित किया।
  • दूसरे निर्णय के द्वारा काँग्रेस ने रचनात्मक कार्यक्रमों की एक सूची तैयार की जो इस प्रकार थी-
  1. सभी वयस्कों को काँग्रेस का सदस्य बनाना
  2. तीन सौ सदस्यों की अखिल भारतीय काँग्रेस समिति का गठन
  3. भाषायी आधार पर प्रांतीय काँग्रेस समितियों का पुनर्गठन
  4. स्वदेशी मुख्यतः हाथ की कताई-बुनाई को प्रोत्साहन
  5. यथासंभव हिन्दी का प्रयोग आदि

नागपुर अधिवेशन के बाद स्वराज्य के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, काँग्रेस ने अब केवल सांविधानिक उपायों के स्थान पर सभी शांतिमय और उचित उपाय जिसमें – केवल आवेदन और अपील भेजना ही शामिल नहीं था, अपितु सरकार को कर देने से मना करने जैसी सीधी कार्यवाही भी शामिल थी, को अपनाने पर जोर दिया।

काँग्रेस की नीतियों में आये परिवर्तन के विरोध में एनी बेसेन्ट,मुहम्मद अली जिन्ना, विपिन चंद्र पाल ,सर नारायण चंद्रावर और शंकर नायर ने काँग्रेस को छोङ दिया।

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम के दो प्रमुख भाग थे, जिसमें एक रचनात्मक तथा दूसरा नकारात्मक था। रचनात्मक कार्यक्रमों में शामिल था-

  1. राष्ट्रीय विद्यालयों तथा पंचायती अदालतों की स्थापना
  2. अस्पृश्यता का अंत,हिन्दू -मुस्लिम एकता
  3. स्वदेशी का प्रसार और कताई-बुनाई

नकारात्मक कार्यक्रमों में मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार थे-

  1. सरकारी उपाधियों प्रशस्ति पत्रों को लौटाना।
  2. सरकारी स्कूलों,कालेजों,अदालतों,विदेशी कपङों आदि का बहिष्कार
  3. सरकारी उत्सवों समारोहों तथा स्वदेशी का प्रचार
  4. अवैतनिक पदों से तथा स्थानीय निकायों के नामांकित पदों से त्याग पत्र देना।
  5. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा स्वदेशी का प्रचार

असहयोग आंदोलन की शुरुआत के समय ही, काँग्रेस को तिलक की मृत्यु का एक बङा सदमा झेलना पङा था।काँग्रेस ने असहयोग के कार्यक्रम में 31 मार्च, 1921 को विजयवाङा में हुए काँग्रेस अधिवेशन में तिलक स्मारक के लिए स्वराजकोष के रूप में एक करोङ रूपये एकत्र करना तथा समूचे भारत में करीब 20 लाख चर्खे बंटवाने का कार्यक्रम भी शामिल कर लिया।

असहयोग आंदोलन गाँधी जी द्वारा 1 अगस्त,1920 को शुरू हुआ।

पश्चिमी भारत,बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आंदोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली।करीब 90,000 विद्योर्थियों ने सरकारी स्कूल और कालेजों को छोङा । 800 नये राष्ट्रीय स्कूल स्थापित किये गये।

शिक्षा संस्थाओं का असहयोग आंदोलन के समय सर्वाधिक बहिष्कार बंगाल में हुआ। नेशनल कालेज कलकत्ता के सुभाष चंद्र बोस प्रधानाचार्य बने।पंजाब में लाला लाजपतराय,सरदार बल्लभभाई पटेल,पंडित जवाहरलाल नेहरू, सी.आर.दास, विट्ठल भाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद आदि न्यायालयों का बहिष्कार कर आंदोलन में कूद पङे।

गाँधी जी ने अपनी कैसरे हिन्द,जूलू युद्ध पदक और बोअर पदक वापस कर दिया। गाँधी जी का अनुकरण कर सैकङों अन्य भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार से मिले पदकों को वापस कर दिया।

बहिष्कार आंदोलन में विदेशी कपङों का बहिष्कार सर्वाधिक सफल रहा। विदेशी कपङों की आंदोलन के समय सार्वजनिक होली जलाई गई।

असहयोग आंदोलन के समय शराब और ताङी की दुकानों पर धरना दिया गया, जिससे सरकार को बङी मात्रा में राजस्व की हानि हुई।

विजयवाङा काँग्रेस अधिवेशन (1921) में जिस समय गाँधी जी खादी के महत्त्व को समझा रहे थे,उसी समय किसी एक कार्यकर्ता ने कहा कि, गाँधी खादी बहुत महंगी है, इस पर गाँधी जी ने लोगों को कम कपङे पहनने की सलाह देते हुए, खुद भी जीवन भर मात्र लंगोटी पहनने का निश्चय कर उसे पूरा किया।

17 नवंबर,1921 को प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के दिन सरकार की क्रूर दमन नीति के प्रति विरोध प्रकट करने के दिन समूचे भारत में हङताल का आयोजन किया गया।वेल्स के बंबई पहुँचने पर वहाँ की सङकें विरान एवं उजङी हुई नजर आई।

दमन की नीति से असहयोग आंदोलन को कुचलने में असमर्थ होने के बाद सरकार ने काँग्रेस और खिलाफत कमेटी दोनों पर प्रतिबंध लगा दिया । इसके साथ ही अली बंधुओं,मोतीलाल नेहरू, चितरंजनदास, लाजपतराय, मौलाना आजाद आदि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

खिलाफत और असहयोग आंदोलन हिन्दू और मुसलमानों को नजदीक लाने में प्रभावकारी सिद्ध हुए।मुसलमानों ने कट्टर आर्य समाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद को जामा मस्जिद से भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। दूसरी ओर सिखों ने अमृतसर के स्वर्णमंदिर की चाभियां मुसलमान नेता डॉ. किचलू को सौंप दी।

दिसंबर,1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया गया। सविनय अवज्ञा आंदोलन( savinay avagya aandolan ) शुरू करने की अनुमति प्रदान कर दी गई।

फरवरी, 1922 को गांधी जी ने वायसराय को एक पत्र लिखकर धमकी दी, कि यदि एक हफ्ते के अंदर सरकार की उत्पीङनकारी नीतियां वापस न ली गई, तो व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो जायेगा।

आंदोलन में हिंसा की बढ रही घटना से गांधी जी चिंतित थे, अली बंधुओं ने भङकाने वाले भाषण देकर हिंसा को भङकाया,अगस्त 1921 में मालाबार में मोपलों ने हिंसा का भयंकर कृत्य कर डाला।

गांधी जी द्वारा वायसराय को दी गई धमकी की समय सीमा पूरी होने से पहले ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित, चौरी चौरा ( chauree chaura )नामक स्थान पर 5 फरवरी,1922 को एक भयानक घटना घट गई।

चौरी-चौरा कांड के नाम से चर्चित इस घटना के अंतर्गत क्रोध से पागल भीङ ने पुलिस के 22 जवानों को थाने के अंदर जिंदा जला दिया।

चौरी-चौरा की घटना से गांधी जी इतने दुः खी हुए कि उन्होंने शीघ्र आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया।

12 फरवरी, 1922 को बारदोली(Bardoli) में हुई कांग्रेस की बैठक, में असहयोग आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया गया और आंदोलन समाप्त हो गया।

जिस समय जनता का उत्साह अपने चरम बिन्दु पर था, उस समय गांधी जी द्वारा आंदोलन को वापस लेने के निर्णय से देश को आघात पहुंचा।मोतीलाल नेहरू,सुभाषचंद्र बोस,जवाहरलाल नेहरू, सी.राजगोपालाचारी,सी आर.दास, अलीबंधु आदि ने गांधी के इस निर्णय की आलोचना की।

आंदोलन की समाप्ति के बाद गांधी जी की स्थिति थोङी कमजोर हुई। सरकार ने इस स्थिति का फायदा उठाकर 10 मार्च,1922 को गांधी को गिरफ्तार कर लिया, न्यायाधीश ब्रूम फील्ड ने गांधी को असंतोष भङकाने के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सजा दी।

असहयोग आंदोलन(Non-Cooperation Movement) का मूल्यांकन-

असहयोग आंदोलन सचमुच भारत का पहला जन-आंदोलन था। इसका सूत्रपात एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने काँग्रेस के स्वरूप और स्वभाव में मूलभूत परिवर्तन ला दिया। काँग्रेस अब लोकप्रिय लोकतंत्रीय अखिल भारतीय संस्था तथा भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध अहिंसात्मक विद्रोह का माध्यम बन गई।

कूपलैण्ड (Coopland)के अनुसार- गांधी जी ने भारत के इतिहास का रुख बदल दिया, उन्होंने वह कर दिखाया जो तिलक भी नहीं कर सके थे। राष्ट्रीय आंदोलन को क्रांतिकारी बनाया, स्वतंत्रता के लक्ष्य की ओर बढना सिखाया, सरकार के ऊपर सांविधानिक दबाव डाला, वाद-विवाद और समझौते के द्वारा नहीं अपितु शक्ति के द्वारा, वह शक्ति जो अहिंसात्मक थी। उनका आंदोलन शहरी बुद्धिजीवी वर्ग तक न सिमट कर गांव की आम जनता तक पहुँच गया और जाग्रति पैदा करने लगा।

सुभाष चंद्र बोस के अनुसार- सन् 1921 में देश को सचमुच एक अच्छी तरह संगठित दल दिया।इससे पहले कांग्रेस केवल संवैधानिक दल और बातचीत करने वाली संस्था थी। महात्मा जी ने कांग्रेस को न केवल एक नया संविधान और राष्ट्रव्यापी आधार दिया, बल्कि उन सबसे महत्त्वपूर्ण काम यह किया कि उसे क्रांतिकारी संगठन में बदल दिया।

असहयोग आंदोलन के आकस्मिक स्थगन से खिलाफत के मुद्दे का भी अंत हो गया, हिन्दू मुस्लिम एकता भी समाप्त हो गई, सांप्रदायिकता का बोलबाला हो गया।1923 और 1927 के बीच देश भर में बङे पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगे हुये।

केरल स्थित मालाबार क्षेत्र के मोपला किसानों ने हिन्दू भू-सामंतों और साहूकारों के विरुद्ध जमींदार विरोधी विद्रोह करके भयंकर रक्तपात किया।

असहयोग आंदोलन अपने किसी भी घोषित लक्ष्य को प्राप्त करने में तो सफल नहीं रहा। लेकिन उसकी चरम उपलब्धि तत्कालीन हानियों से अधिक थी।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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