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भारत की एशियाई नीति

प्रथम एशियाई सम्मेलन– मार्च 1947 में विश्व मामलों की भारतीय परिषद् के तत्वावधान में नई दिल्ली में एक एशियाई मैत्रीपूर्ण सम्मेजन आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य एशियाई-राष्ट्रों के बीच मैत्री व सहयोग को प्रोत्साहित करना तथा एशियाई जनता की प्रगति व हितों में वृद्धि करना था।

द्वितीय एशियाई सम्मेलन-जनवरी 1949 में नई दिल्ली में इंडोनेशिया के प्रश्न पर विचार करने के लिए 19 देशों के प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें इंडोनेशिया पर डच अधिग्रहण की निंदा की गयी तथा डच पुलिस एवं सैनिकों के इंडोनेशिया को स्वतंत्र किये जाने की मांग की गयी।

बोगुई सम्मेलन-

मई, 1950 में एशियाई-राष्ट्रों के मध्य सांस्कृतिक एवं आर्थिक सहयोग बढाने के उद्देश्य से फिलीपीन्स के बोगुई शहर में एशियाई देशों का एक सम्मेलन हुआ था।

बोगोर सम्मेलन-

अप्रैल, 1954 में कोलंबो शक्तियां तथा भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बर्मा तथा इंडोनेशिया के प्रधानमंत्रियों ने चीन की समस्या पर विचार-विमर्श करने के लिए पारस्परिक वार्ताएं की। ये प्रधानमंत्री पुनः दिसंबर, 1954 में बोगोर में एकत्रित हुए और उन्होंने एशिया तथा अफ्रीका के राष्ट्रों का एक वृहत-सम्मेलन इंडोनेशिया के बाडुंग शहर में बुलाने का निश्चय किया। जो बाद में बाडुंग सम्मेलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

बाडुंग सम्मेलन-(1955ई.)-

बाडुंग सम्मेलन- अप्रैल, 1955 में इंडोनेशिया के बाडुंग शहर में एफ्रो-एशियाई देशों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें 29 देशों के 340 एशियाई और अफ्रीकी प्रतिनिधि एकत्रित हुये थे।इस सम्मेलन का आयोजन भारत, बर्मा एवं इंडोनेशिया ने सम्मिलित रूप से किया था।

इस सम्मेलन में पंचशील के सिद्धांतों पर जोर दिया गया था। तथा एशिया एवं अफ्रीका देशों से विशेष संबंध रखने वाली आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं पर विचार-विमर्श किया गया तथा इन देशों द्वारा विश्व शांति एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये किये जा सकने वाले कार्यों पर विचार-विमर्श, तथा नृजातीय भेदभाव व पृथकत्व समाप्त करने पर जोर दिया गया। इस सम्मेलन को तीसरी शक्ति (Third Force) के अभ्युदय का प्रतीक कहा गया।

पंचशील के सिद्धांत (954 )का प्रतिपादन किसने किया था?

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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