इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतबादामी का चालुक्य वंश

चालुक्य शासक विजयादित्य (696-733ई.)

बादामी के चालुक्य शासक विनयादित्य का पुत्र विजयादित्य अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बना। वह अपने पिता के काल में ही कई युद्धों में भाग ले चुका था। रायगढ लेख में कहा गया है, कि उसने अपने शत्रुओं को युद्ध में पराजित किया तथा अपने पिता को गंगा-यमुना की मूर्तियां, पालिध्वज, ढक्का (ढोल),पंचमहाशब्द, पद्मरागमणि तथा मस्त हाथी भेंट में दिये थे। उसके संबंध में एक अन्य वृत्तांत यह मिलता है, कि एक बार शत्रुओं ने उसे पकङ लिया तथा अपने साथ उठा ले गये। किन्तु वत्सराज के समान बिना किसी बाहरी सहायता के वह शत्रुओं के चंगुल से भाग निकला तथा उसने अपने बाहुबल से जनता के बीच फैली हुई अराजकता का अंत कर दिया। किन्तु यह निश्चित रूप से बता सकना कठिन है,कि उसके शत्रु कौन थे। इस कथानक से यह स्पष्ट होता है,कि विजयादित्य ने अपने साम्राज्य में शांति और व्यवस्था स्थापित की थी। उसका दीर्घकालीन शासन शांतिपूर्ण तथा समृद्धिशाली रहा।

विनयादित्य का इतिहास

प्रशासनिक कार्यों में इसे अपने पुत्र विक्रमादित्य द्वितीय से पर्याप्त सहायता मिली। विजयादित्य के 35 वें राज्य वर्ष का एक प्रस्तर लेख उल्चल से मिला है। इससे सूचित होता है, कि उसने अपने पुत्र विक्रमादित्य को कांची के पल्लवों के विरुद्ध अभियान पर भेजा था।उसने पल्लव नरेश परमेश्वरवर्मा द्वितीय को पराजित कर उसे कर देने के लिये मजबूर किया था।

पल्लव वंश का इतिहास

इस प्रकार विजादित्य एक योग्य तथा शक्तिशाली राजा था। वातापी के चालुक्य वंश में उसका शासन सबसे दीर्घकालीन रहा। उसने भी सत्याश्रय,श्रीपृथ्वीबल्लभ,महाराजाधिराज, परमेश्वर, भट्टारक आदि उपाधियाँ धारण की थी। उसके उत्तराधिकारियों के लेखों में उसकी उपाधि समस्त भुवनाश्रय की मिलती है। वह एक महान निर्माता भी था तथा उसी के समय में पट्टडकल के विशाल शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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