इतिहासप्राचीन भारतशाकंभरी का चौहान वंश

चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान (1177-1192 ईस्वी)

चौहान शासक सोमेश्वर की मृत्यु के बाद उसकी रानी कर्पूरदेवी से उत्पन्न पृथ्वीराज चौहान वंश का सबसे प्रतापी शासक था। इतिहास में पृथ्वीराज को पृथ्वीराज तृतीय तथा पृथ्वीराज चौहान के नाम से भी जाना जाता है।

ऐतिहासिक कथाओं में उसे राजयपिथौरा कहा गया है। प्रसिद्ध कवि चंदबरदाई उसकी राजसभा में निवास करता था, जिसने पृथ्वीराजरासो नामक महाकाव्य की रचना की थी। ऐसा पता चलता है, कि जब पृथ्वीराज अवयस्क था, तभी उसके पिता की मृत्यु हो गयी थी। अतः उसकी माता ने कैम्बास नामक मंत्री की सहायता से संरक्षिका के रूप में शासन का सफलतापूर्वक संचालन किया था।

हम्मीरमहाकाव्य तथा पृथ्वीराजरासो से पता चलता है, कि पृथ्वीराज को अत्यंत निपुणता के साथ विविध विद्याओं और कलाओं की शिक्षा प्रदान की गयी थी। धनुर्विद्या में उसने विशेष निपुणता प्राप्त की तथा अपने समय का वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर था। 1180 ईस्वी के लगभग वह वयस्कता को प्राप्त हुआ तथा शासन का भार उसने स्वतंत्र रूप से ग्रहण किया। राजा होने के बाद वह अपनी शक्ति एवं साम्राज्य के विस्तार में लग गया था।

पृथ्वीराज चौहान की मुश्किलें

साम्राज्य-विस्तार करने की प्रक्रिया में सबसे पहले पृथ्वीराज चौहान को अपने चाचा नागार्जुन से लङना पङा। नागार्जुन, विग्रहराज चतुर्थ का पुत्र तथा गांगेय का कनिष्ठ भाई था, जो पृथ्वीराज की अल्पायु का फायदा उठाकर राजगद्दी पर अधिकार करना चाहता था।

पृथ्वीराजविजय के अनुसार उसने गुडपुर नगर पर अधिकार कर लिया। कई स्रोतों के अनुसार वह अजमेर का शासक था। इस स्थान की पहचान हरियाणा के गुङगांव से की गयी है, जो पहले तोमरों के अधिकार में था। पृथ्वीराज अत्यंत क्रुद्ध हुआ तथा उसने एक बङी सेना लेकर गुडपुर के दुर्ग का घेरा डाला। नागार्जुन जान बचाकर कायरों की तरह भाग खङा हुआ किन्तु उसके सेनापति देवभट तथा अन्य अधिकारियों ने युद्ध जारी रखा। पृथ्वीराज चौहान ने उन सबको न केवल परास्त ही किया, अपितु उसके सभी सहयोगियों को मौत के घाट उतार दिया। शत्रुओं के सिर काट कर अजमेर के दुर्ग के बाहर लटका दिये गये।

नागार्जुन की समस्या को सुलझाकर पृथ्वीराज चौहान ने मदानक राज्य पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया। इसके बाद उसका जेजाकभुक्ति के चंदेल वंश के साथ भी संघर्ष करना पङा। 1182 ईस्वी में चंदेल वंश के राजा परमर्दिदेव को पराजित कर उसकी राजधानी महोबा पर उसने अधिकार कर लिया। पृथ्वीराज रासो से पता चलता है, कि पृथ्वीराज ने विजय करते हुए कालंजर के प्रसिद्ध दुर्ग का घेरा डाला। वहाँ चंदेल राजा परमर्दिदेव पकङा गया तथा बंदी बना लिया गया। वहां से किसी प्रकार भागकर परमर्दि देव ने आत्महत्या कर ली।

पृथ्वीराजरासों से यह भी पता चलता है, कि पृथ्वीराज ने गुजरात के चालुक्य शासक भीम को मार डाला। पृथ्वीराज के चाचा कान्हदेव ने भीमदेव के चाचा सारंगदेव के सात पुत्रों को उस समय मार डाला था जब वे चाहमान दरबार में टिके हुए थे। इस पर भीम अत्यंत क्रोधित हुआ, जिसने प्रतिशोध में चाहमान राज्य पर आक्रमण कर दिया। उसने पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर की हत्या कर दी तथा नागोर दुर्ग पर पुनः अधिकार कर लिया, किन्तु पृथ्वीराज ने गुजरात नरेश भीम पर आक्रमण कर उसकी हत्या की।

पृथ्वीराज चौहान तथा कन्नौज का गहङवाल शासक जयचंद

पृथ्वीराज चौहान एक साम्राज्यवादी शासक था। पृथ्वीराज चौहान के सामने सबसे बङी चुनौती कन्नौज का गहङवाल शासक जयचंद था। वह भी चौहान की भांति महत्वाकांक्षी शासक था। ऐसी स्थिति में दोनों के बीच संघर्ष होना आवश्यक था। इस संघर्ष में मुख्य कारण दिल्ली का भू-भाग था, जिस पर दोनों अधिकार करना चाहते थे। गहङवालों तथा चौहानों में शत्रुता पहले से ही चलती आ रही थी।

चाहमान नरेश विग्रहराज चतुर्थ ने जयचंद के पिता विजयचंद्र को पराजित कर दिल्ली प्रदेश पर अधिकार कर लिया था। अतः स्वाभाविक था, कि जयचंद के मन में अपने पैतृक प्रदेश को पुनः हस्तगत करने की भावना जागृत हुई।

पृथ्वीराजरासो से पता चलता है, कि जयचंद की रूपवती कन्या संयोगिता पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करने लगी। जयचंद ने राजसूय यज्ञ तथा स्वयंवर का आयोजन किया। इस अवसर पर पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के लिये उसे उसे आमंत्रित नहीं किया। पृथ्वीराज स्वयंमेव कुछ चुने हुए सहायकों के साथ कन्नौज में आ पहुंचा तथा संयोगिता को बलपूर्वक सभा से उठा ले आया। इस प्रक्रिया में उसके कुछ सैनिक भी मारे गये थे। इस घटना से जयचंद पृथ्वीराज चौहान का घोर शत्रु बन गया तथा अपने अपमान का बदला लेने का अवसर ढूंढने लगा। तथा दोनों के बीच कई युद्ध हुये जो चौहान साम्राज्य के पतन का कारण बने। विविध प्रकार के यज्ञ

विद्वानों का आश्रयदाता

पृथ्वीराज चौहान के दरबार में जयानक भट्ट, विद्यापति गौङ, पृथ्वीभट्ट, वागीश्वर, जनार्दन, विश्वरूप आदि रहते थे। चंदबरदाई उसका राजकवि था, जिसका प्रमुख ग्रंथ पृथ्वीराजरासो हिन्दी साहित्य का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।

साम्राज्य विस्तार

पृथ्वीराज चौहान का साम्राज्य विस्तार सतलज से बेतवा नदी तक तथा हिमालय पर्वत से आबू पर्वत की तलहटी तक विस्तृत था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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