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अजंता चित्रकला की विशेषताएं

अजंता चित्रकला की विशेषताएं(ajanta chitrakala ki visheshtaen)

अजंता की गुफाएँ महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में औरंगाबाद से लगभग 110 किलोमीटर दूर और जलगाँव रेलवे स्टेशन से 60 किलोमीटर दूर हैं। एक पहाङी घाटी में पहाङ की ओर के एक भाग में अर्द्ध-चंद्राकार पर्वत में से चट्टानों को काटकर यहाँ 30 गुफाएँ बनायी गयी हैं। इन गुफाओं को खोदने और काटने और बनाने का काम ईसा पूर्व की दूसरी सदी से लेकर ईस्वी सन की सातवीं सदी तक चलता रहा।

अजंता कला का इतिहास

अजंता की तीस गुफाओं में से केवल गुफा क्रमांक – 1,2,9,10,16,17 और 19 में ही अब चित्र अवशेष हैं। ये चित्र वाकाटक, गुप्त और चालुक्य काल के हैं।

अजंता के भित्ति-चित्रों की बाहुल्यता और बहु-विविधता वस्तुतः विलक्षण है। इन चित्रों में तीन प्रकार के विषय हैं-

  • छतों, कोनों, अन्तरालों आदि स्थानों को सुन्तर चित्रों से सजाने के लिए पुष्प, वृक्ष, पत्रावली, झरने, नदी, पशु-पक्षी, धार्मिक देवी-देवता आदि की आकृतियाँ एवं रिक्त स्थानों को चित्रों से अलंकृत करने के लिए किन्नर-किन्नरियों, अप्सराओं, गंधर्वों तथा यक्षों की सुन्दर आकृतियाँ चित्रित की गयी हैं।
  • बुद्ध और बोधिसत्व के मनोरम चित्र चित्रित किये गये हैं।
  • बौद्ध धर्म के जातक ग्रंथों में से अनेक वर्णात्मक दृश्य चित्रित किये गये हैं।

अजंता चित्रकला की विशेषताएं निम्नलिखित हैं

भाव व्यंजना में अवर्णनीय

अजंता के चित्रों ने भाव-व्यंजना में अवर्णनीय चित्रकला चातुर्य प्रदर्शित किया।

चित्रों की विविधता

चित्रों की बारीकी और विविधता को देखकर ऐसा भास होता है कि कलाकारों ने अपने ह्रदय की गहनतम गहराई इनमें भर डाली है। विश्व की विविधता चित्रित की गयी। राजा से रंक, पापी से साधु, क्रूर से दयालु, बालक से वृद्ध, कुरूप से सुन्दर, हर प्रकार के व्यक्ति, महलों से वन और आश्रम, नगर से ग्राम तक के जीवन को चित्रित किया है। समसामयिक वस्त्रों, आभूषणों, अलंकारों, वाद्यों, पात्रों, अस्त्र-शस्त्रों का अधिकतम परिचय, समसामयिक मंदिर, मंडप, नगर, द्वार, महल, प्राचीर, झोंपङे, स्तूप, बिहार आदि का विशिष्ट ज्ञान अजंता के चित्रों से होता है।

इन चित्रों का प्राण

रेखायें-अजंता के प्राण वे रेखाएँ हैं, जिनसे आकृतियों की सृष्टि हुई है। प्रत्येक आकृति के प्रत्येक अंग को केवल रेखा की मोटाई के अंतर से सौष्ठव प्राप्त हुआ है। मुखमंडल का लावण्य, कंधों की गोलाई, भुजाओं का लालित्य, उंगलियों की कमनीयता, कटि की लचक सभी कुछ कलाकारों की रेखा-अभिव्यक्ति कौशल के कारण संभव हो सका। आकृति की सभी रेखाएं अपने आप में एक कविता है। उनमें गति है, लय है, संगीत है। एक बार रसानुभूति हो जाने पर ये सभी रेखाएँ इसकी स्रोत प्रतीत होती हैं।

अत्यंत आकर्षक एवं सुन्दर

सुन्दर कल्पना, रंगों की प्रभा, रेखाओं का लालित्य और उनकी कमनीयता, विषय वस्तु की विविधता, अभिव्यक्ति की सम्पन्नता और अभिव्यंजना का कौशल तथा उसकी विलक्षणता के कारण अजंता के इन भित्ति चित्रों में अद्वितीय आकर्षण और सौन्दर्य है।

विश्व की सर्वश्रेष्ठ कलाकृतियों में से एक

टेकनीक की दृष्टि से अजंता के चित्र विश्व में सर्वोत्तम माने गये हैं। अजंता की कला, कृति में इतनी पूर्ण,परंपरा में इतनी निर्दोष, अभिप्राय में इतनी सजीव, विषय-वस्तु में इतनी विविध, सुन्दरियों के चित्रण में उनके प्रसाधन और अलंकरणों में इतनी परिपूर्ण, यथार्थ और आदर्श का इतना श्रेष्ठ समन्वय तथा आकृति और वर्ण के सौन्दर्य में इतनी प्रसन्न है कि उसे विश्व की सर्वश्रेष्ठ कलाकृतियों में मानना पङेगा।

आध्यात्मिक विशिष्टता

अजंता के भित्ति चित्र विशुद्ध भारतीय कला के उच्चतम विकास के द्योतक हैं। संपूर्ण चित्र से लेकर छोटे-छोटे से मोती या फूल तक सभी कुछ अन्तर्दृष्टि की गहराई तथा महान तकनीकी कुशलता के प्रमाण हैं। यद्यपि अजंता के ये चित्र और उनके विविध दृश्य मानव जीवन की विभिन्न भावनाओं से ओत-प्रोत हैं, किन्तु फिर भी उनमें एक ऐसी आध्यात्मिक विशिष्टता है जिससे वे कभी भी अश्लील नहीं हो पाते।

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