इतिहासजैन धर्मप्राचीन भारत

जैन धर्म का पतन क्यों हुआ

जैन धर्म भारत भूमि में जन्मा एक महत्त्वपूर्ण धर्म था।महावीर स्वामी के जीवन काल में इस धर्म का अच्छा प्रचार-प्रसार हुआ।उनकी मृत्यु के बाद भी कुछ दिनों तक जैन धर्म का प्रचार – प्रसार चलता रहा,किन्तु कालांतर में उसके अनुयायियों की संख्या सिमित होती गई।

जैन धर्म के पतन के कारण निम्नलिखित थे-

  1. ब्राह्मण धर्म से गहरा मतभेद- जैन धर्म का ब्राह्मण धर्म से गहरा विरोध था तथा ब्राह्मणों ने भी इस धर्म का सदैव विरोध किया उनके विरोध के कारण जैन धर्म का महत्त्व समाप्त हो गया। अजयपाल के शासनकाल(1174-76) तक जैनियों के मंदिर अपनी गरिमा को पूर्णतया समाप्त कर दिया था।
  2. सिद्धांतों की कठोरता- इस धर्म के सिद्धांत अत्यंत कठोर थे , जिनका सर्वसाधारण लोग सुगमतापूर्वक पालन नहीं कर सकते थे। उदाहरणार्थ- अहिंसा का कठोर सिद्धांत सभी नहीं अपना सकते थे। कठोर तप करके सभी शारीरिक कष्टों को सहन नहीं कर सकते थे।
  3. राजकीय आश्रय का अभाव- अशोक, कनिष्क आदि जैसे अनेक महान नरेश हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना जी-जान लगा दिया। लेकिन जैन धर्म को ऐसे महान नरेश नहीं मिले । जैन धर्म के पतन का प्रमुख कारण यही था कि इस धर्म को राजकीय आश्रय नहीं मिला।
  4. अहिंसा जैन धर्म के पतन का एक प्रमुख कारण उसके द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का अव्यवहारिक स्वरूप था। जिस रूप में अहिंसा के प्रतिपालन का विचार प्रस्तुत किया गया था। उसका पालन जनसाधारण के लिए कठिन था। फलतः कृषि प्रधान भारतीय जनता जैन धर्म के प्रति उदासीन होने लगी। केवल नगर में रहने वाले व्यापारी वर्ग के लोग ही उसके प्रति आकर्षित रहे।
  5. कठोर तपस्या- जैन धर्म में व्रत, काया- क्लेश, त्याग, अनशन, केशकुंचन, वस्र त्याग, अपरिग्रहण आदि के अनुसरण पर जोर दिया गया। किन्तु सामान्य गृहस्थ व्यक्ति को इस प्रकार का तपस्वी जीवन जीना संभव नहीं था।
  6. संघ का संघठन- जैन संघों की संगठनात्मक व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी। उसमें धर्माचार्यों और सामान्य सदस्यों के विचारों तथा इच्छा की अवहेलना होती थी। जिसके फलस्वरूप सामान्य जनता की अभिरुचि कम हो गई।
  7. प्रचारकों की कमजोर भूमिका- किसी भी धर्म के प्रसार में उसके प्रचारकों की अहम भूमिका होती है। जैन धर्म में बाद में अच्छे धर्म प्रचारकों का अभाव हो गया तथा जैन धर्म के प्रसार का मार्ग अवरुद्ध हो गया। प्रचार के लिए सतत् संगठित प्रयत्न नहीं हुए जिससे जैन धर्म भारत तक ही सिमित रह गया।
  8. भेदभाव की भावना- महावीर स्वामी ने जैन धर्म के द्वार सभी जातियों तथा धर्मों के लिए खोल रखे थे, लेकिन बाद में भेदभाव की भावना विकसित हो गई थी।
  9. जैन धर्म में विभाजन- महावीर की मृत्यु के बाद जैन धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया था-दिगंबर एवं श्वेतांबर । इन वर्गों में मतभेद के चलते इस धर्म के बचे-खुचे अवशेष भी नष्ट हो गये थे।
  10. मुस्लमान शासकों का शासन- मुसलमान शासकों ने भारत पर आक्रमण किया तथा विजय हासिल कर जैन मंदिरों की नींव पर मस्जिदों और मकबरों का निर्माण किया। अलाउद्दीन खिलजी ने ऐसे अनेक जैन मंदिरों को धराशायी किया।अधिकांश जैनी तलवार के घाट उतार दिये गये तथा जैन पुस्तकालय नष्ट कर दिये गये। इन सभी कारणों के चलते जैन धर्म का विनाश हो गया।
  11. ब्राह्मण धर्म में सुधार- ईसा. की प्रारंभिक शता. में वैदिक– पौराणिक , ब्राह्मण धर्म ने अपनी कटरपंथी विकृतियों को दूर कर अपने धर्म में सुधार किया। इस वजह से लोगों की रुचि शैव तथा वैष्णव धर्म की ओर बढी।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!