इतिहासगुप्तोत्तर कालप्राचीन भारत

मालवा का राजा यशोधर्मन

गुप्तों की शक्ति को हूणों के ही समान गहरा आघात पहुँचाने वाली शक्ति यशोधर्मन् थी, जो 530 ईस्वी में मध्य भारत के राजनीतिक गगनमंडल में उल्का की भाँति चमक उठा।

मालवा के इस पराक्रमी नरेश की उत्त्पत्ति एवं प्रारंभिक जीवन के विषय में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती है। मंदसोर के पास रिष्ठलपुर नामक स्थान से प्राप्त एक लेख में यशोधर्मन् के पिता का नाम प्रकाशधर्मन् मिलता है। उसे अधिराज कहा गया है, जिसने तोरमाण को पराजित किया था। उसकी तिथि 515 ईस्वी है।

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यशोधर्मन् की सैनिक उपलब्धियों का विवरण हमें मंदसोर के दो अभिलेखों से प्राप्त होता है। इसमें एक की तिथि मालव संवत् 589 अर्थात् 532 ईस्वी है, तथा यह उसकी विजयों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करता है – पूर्व के कई अत्यंत शक्तिशाली राजाओं तथा उत्तर के अनेक राजाओं को हराकर उसने राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि ग्रहण की।

विन्ध्य तथा पारियात्र की मध्यवर्ती एवं अरब सागर तक फैली हुई भूमि में अभयदत्त उसके वायसराय के रूप में शासन करता था। इस संक्षिप्त विवरण की विस्तृत व्याख्या दूसरे लेख में हुई है, जो एक प्रशस्ति के रूप में है। इसके अनुसार उसने उन प्रदेशों की भी विजय की जिन पर गुप्त राजाओं तक का शासन स्थापित नहीं हो पाया था और जहाँ हूणों की आज्ञा प्रवेश नहीं कर पाई थी।

पूर्व में लौहित्य (ब्रह्मपुत्र नदी) से लेकर पश्चिम में समुद्र तक तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में महेन्द्रपर्वत तक के प्रदेशों को उसने जीता। इसी अभिलेख में हूणनरेश मिहिरकुल को पराजित किये जाने का वर्णन भी काव्यात्मक ढंग से किया गया है।

मंदसोर प्रशस्ति यशोधर्मन् का चित्रण उत्तर भारत के चक्रवर्ती शासक के रूप में करती है। मिहिरकुल की पराजय यशोधर्मन् की उपलब्धियों में से एक उपलब्धि थी।

यशोधर्मन का उत्थान एवं पतन 528 से 543 ईस्वी के बीच हुआ था। मंदसोर प्रशस्ति में उसे जनेन्द्र कहा गया है। उसका पूरा नाम जनेन्द्र यशोधर्मन् था और वह औलिकर वंश से संबंधित था।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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