प्राचीन भारतइतिहासमहाजनपद काल

मगध महाजनपद एवंं मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

16 महाजनपदों में मगध सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था। मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद  में मिलता है।

मगध की राजधानी गिरिव्रज/राजगृह थी। यहाँ की दूसरी राजधानी पाटलिपुत्र थी । पाटलीपुत्र को उदयन ने स्थापित किया था।

मगध में कई वंशों ने शासन किया जो निम्नलिखित हैं-

  • हर्यंक वंश  इस वंश में कई राजाओं ने शासन किया था-

बिम्बिसार(544-492 ई.पू.)-

पुराणों के अनुसार मगध का प्रथम शासक -शिशुनाग था। लेकिन इतिहास में बिम्बिसार को ही मगध का प्रथम शासक माना गया है।

बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंधों के माध्यम से राजनैतिक शक्ति के विस्तार की योजना बनाई।

बिम्बिसार के गांधार के शासक (पुष्कासरीन), अवंति के शासक (चंडप्रद्योत)से राजनैतिक संबंध थे।

बिम्बिसार ने मगध साम्राज्य के विस्तार की शुरुआत की। उसने सर्वप्रथम ब्रह्मदत्त को पराजित कर अंग को मगध में मिलाया।

बिम्बिसार ने”श्रेणिक”, “क्षेत्रीय बिम्बिसार” की उपाधि प्राप्त की।

बम्बिसार ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया। बुद्ध को बेलूवन विहार दान में दिया।

जैन धर्म भी बिम्बिसार को जैन धर्म का संरक्षक मानते हैं।

422 ई.पू. में उसकेही पुत्र अजातशत्रु ने बिम्बिसार की हत्या की। (जैन ग्रंथ अजातशत्रु को पितृहंता का दोषी नहीं मानते हैं)

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अजातशत्रु (492- 460 ई.पू.)-

अजातशत्रु ने साम्राज्य विस्तार की  नीति बनाए रखी। इसने वज्जि संघ को सुनीध,वस्सकार मंत्रियों की सहायता से जीता।

इसने कोसल शासक प्रसेनजित पर आक्रमण कर उसकी पुत्री वजिरा से विवाह किया एवं काशी को पुनः प्राप्त किया , आगे चलकर अजातशत्रु ने प्रसेनजित को हराकर उसके बाद के सभी शासकों को हराकर संपूर्ण कोसल को जीत लिया।

अजातशत्रु ने कुणिक की उपाधि धारण की। वज्जिसंघ के विरुद्ध महाशिलांकटक, रथमूसल जैसे युद्धास्रों का उपयोग किया।

यह शासक धार्मिक रूप से उदार शासक (बौद्ध तथा जैन दोनों ही इसे अपना संरक्षक मानते हैं, लेकिन ज्यादा साक्ष्य बौद्ध धर्म से संबंधित हैं)था।

अजातशत्रु के समय प्रथम बौद्ध संगीति – राजगृह (सप्तपर्णीगुफा)में हुई थी।

भरहुत स्तूप की वेदिका पर अजातशत्रु को बुद्ध की वंदना करते हुये दिखाया है।

राजगृह में अजातशत्रु ने महात्मा बुद्ध के अवशेषों पर स्तूप बनवाया था।

उदयन-

इसने पाटलीपुत्र (कुसुमपुर) की स्थापना कर इसे राजधानी बनाया। उदयन जैन धर्मावलंबी था।

नागदशक (हर्यंक वंश का अंतिम शासक)-

जनता द्वारा इसको हटाकर वाराणसी के मगध गवर्नर शिशुपाल को नया शासक बनाया। तथा शिशुपाल ने  नागवंश की स्थापना की।

  • नागवंश-

नागवंश के कई राजाओं ने मगध महाजनपद पर शासन किया था।

शिशुनाग-

शिशुनाग ने अवंती को जीता था।वैशाली को दूसरी राजधानी बनाया था।

कालाशोक-

कालाशोक को पुराणों में काकवर्ण कहा गया है। कालाशोक के समय में दूसरी बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।

  • नंद वंंश-

महापद्मनंद (उग्रसेन) ने नंदवंश की स्थापना की थी। महापद्मनंद महानंदिन तथा शूद्र महिला से उत्पन्न माना जाता है तथा नंद वंश स्थापित हुआ। इसने सर्वक्षत्रांतक की उपाधि धारण की। महापद्मनंद दूसरा परशुराम कहलाता है।

महापद्मनंद शूद्र वर्ण का था। इसके समय में मगध का साम्राज्य पश्चिम में पंजाब तक फैला हुआ था।

इसने कलिंग पर आक्रमण किया तथा जैन तीर्थंकर शीतलनाथ की मूर्ति पाटलिपुत्र लाया।

कलिंग में नहर का निर्माण करवाया था। (खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख से पता चलता है)

महापद्मनंद के 8 पुत्र थे , इसका 8 वां पुत्र घनानंद था। यूनानी इतिहासकारों ने घनानंद को अग्रमीज/जेंद्रमीज कहा है।

इसी के समय भारत पर अलेक्जेण्डर का आक्रमण हुआ । अलेक्जेण्डर (मकदूनिया)का शासक था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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