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भारत में मुस्लिम (तुर्क) आक्रमणों का इतिहास

8वीं शता. के प्रारंभ में मुहम्मद-बिन-कासिम के नेतृत्व में सिंध पर जो अरब-आक्रमण हुआ था, उसका कोई स्थायी परिणाम नहीं हुआ। अरबों का राज्य सिंध और मुल्तान के पूर्व में नहीं फैल सका तथा उनकी शक्ति शीघ्र ही कमजोर पङ गयी। उनके इस अधूरे कार्य को तुर्कों ने पूरा किया। तुर्क, चीन की उत्तरी-पश्चिमी सीमाओं पर निवास करने वाली एक असभ्य एवं बर्बर जाति थी। जब अरब के उमय्यावंशी शासकों ने इस्लाम धर्म का प्रचार मध्य एशिया की ओर किया तो तुर्क भी इस्लाम धर्म के संपर्क में आये। वे अत्यंत खूँखार एवं लङाकू थे। उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया तथा इसका प्रचार पूरे जोर-शोर के साथ करने में जुट गये। उनका उद्देश्य एक विशाल मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करना था।

मुहम्मद बिन कासिम : भारत पर आक्रमण करने वाला पहला विदेशी

638 ई. से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में नौ इस्लामी खलीफाओं ने 15 बार पर सिंध पर आक्रमण किये थे।लेकिन 14 बार पराजित होने के बाद 15 वां आक्रमण किया जिसका नेतृत्व कासिम ने किया था। इस आक्रमण में कासिम की जीत हुई थी।…अधिक जानकारी

प्रारंभिक तुर्क आक्रमण : सुबुक्तगीन

भारत में सबसे पहले जो तुर्क आक्रमणकारी आये, वे गजनी के शासक कुल से संबंधित थे। 962 ईस्वी में अलप्तगीन नामक एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने गजनी में एक स्वतंत्र तुर्की राज्य की स्थापना की। उसके दामाद सुबुक्तगीन ने उसके वंश का अंत कर 977 ईस्वी में राजगद्दी हथिया ली। वह एक शक्तिशाली शासक था, जो भारत पर आक्रमण की योजनाएं तैयार करने लगा। पंजाब के हिन्दू शासक जयपाल ने उसकी योजनाओं को प्रारंभ में ही विफल कर देने के उद्देश्य से 986-87 ईस्वी में एक बङी सेना के साथ महमूद गजनवी पर आक्रमण कर दिया। कई दिनों तक भीषण युद्ध चलता रहा तथा किसी भी पक्ष की विजय न हो सकी। परंतु दुर्भाग्यवश भारी वर्षा तथा हिमपात से भारतीय सैनिकों का उत्साह भंग हो गया, जिसके फलस्वरूप जयपाल को अत्यन्त अपमानजनक संधि करनी पङी। हर्जाने के रूप में जयपाल ने सुबुक्तगीन को 50 हाथी तथा कुछ प्रदेश देने का वचन दिया परंतु लाहौर पहुँचकर उसने संधि की अपमानजनक शर्तों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। सुबुक्तगीन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर लूट पाट की। जयपाल ने 991 ईस्वी में कुछ मित्र राजाओं की सहायता से गजनी पर पुनः आक्रमण किया, किन्तु युद्ध में सुबुक्तगीन की ही विजय हुई। इस विजय के फलस्वरूप सुबुक्तगीन ने पेशावर तक के भू भाग पर अपना अधिकार कर लिया। 997 ईस्वी में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी।

महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण

सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद 998 ईस्वी में गजनी का राजा बना। राज्यारोहण के समय उसकी आयु 27 वर्ष थी। वह अत्यन्त महत्वाकांक्षी युवक था। कहा जाता है, कि बगदाद के खलीफा से यमिनुद्दौला तथा अमीन-उल-मिल्लाह का सम्मानित विरुद प्राप्त करते समय उसने यह प्रतिज्ञा की थी, कि वह प्रतिवर्ष भारत पर एक आक्रमण करेगा। मध्य एशिया में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिये उसे धन की भी आवश्यकता थी, जो भारत में आसानी से प्राप्त हो सकता था। अतः इस्लाम धर्म के प्रचार तथा धन प्राप्त करने की लालसा से उसने भारत पर अनेक आक्रमण किये।

हेनरी इल्यिट ने भारत पर महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमणों की संख्या 17 बताई है।

महमूद गजनवी ने 17 बार भारत पर आक्रमण किये थे, जिनमें से कुछ का विवरण निम्न लिखित है।

  • प्रथम आक्रमण – 1001 ई.में हिन्दूशाही राजवंशके शासक जयपाल के विरूद्ध गजनवी ने आक्रमण किया था जिसमें जयपाल पराजित होकर आत्महत्या कर लेता है।
  • 1008 में आनंदपाल को पराजित किया।
  • 1021 में उद्भांडपुर को जीत लिया था।
  • 1013 में त्रिलोचनपाल को हराया।
  • 1005 में भटिंडा (पंजाब) के शासक विजयराम को हराया।
  • 1006 में मुल्तान को जीता और इसे अपने साम्राज्य में मिलाया।
  • 1009 में नारायणपुर (अलवर) – व्यापारिक नगर पर आक्रमण किया।
  • 1014 में थानेश्वर (हरियाणा) पर आक्रमण कर चक्रस्वामी मंदिर को नष्ट किया।
  • 1018 -19 में मथुरा एवं कन्नौज पर आक्रमण किया।
  • कन्नौज पर प्रतिहार शासक राज्यपाल का शासन था। महमूद के आक्रमण के समय राज्यपाल भाग गया। सामंत विधाधर (चंदेल शासक ) ने राज्यपाल की हत्या कर दी थी।
  • महमूद ने कालिंजर पर 1021 में आक्रमण किया था। इस समय कालिंजर का शासक विधाधर था, जो कालिंजर से भाग गया था।
  • 1023 में पुनः कालिंजर पर आक्रमण किया तथा विधाधर से संधि कर ली थी।
  • 1025 में सोमनाथ पर महमूद गजनवी ने आक्रमण किया तथा यहाँ के लकङी के बने मंदिर को जला दिया । इसी मंदिर को बाद में गुजरात के शासक भीम प्रथम ने पत्थरों व ईंटों से बनाया था।
  • 1027 में जाटों ने गजनवी पर आक्रमण किया यह आक्रमण गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण था जो जाटों के विरुद्ध था।

महमूद का प्रथम भारतीय आक्रमण पश्चिमोत्तर भारत के शाही राजा जयपाल पर 1001 ईस्वी में हुआ। पेशावर में दोनों के बीच एक घमासान युद्ध हुआ, जिसमें जयपाल की पराजय हुई। उसने महमूद को भारी हर्जाने की रकम तथा 50 हाथी देने का वचन दिया। महमूद गजनवी उसकी राजधानी उदभांडपुर को लूटने के बाद अतुल संपत्ति लेकर गजनी वापस लौट गया। जयपाल इस पराभव को सहन नहीं कर सका तथा उसने आत्महत्या कर ली। पश्चिमी पंजाब तथा लाहौर पर महमूद का अधिकार हो गया।

जयपाल के बाद आनंदपाल तथा उसके बाद त्रिलोचनपाल शाहियावंश के शासक हुये। आनंदपाल तथा महमूद की सेनाओं के बीच दो बार युद्ध हुये और दोनों ही बार महमूद की विजय हुई। सर्वप्रथम 1009 ई. के लगभग महमूद ने आनंदपाल की सेनाओं को वैहन्द के मैदान में पराजित किया। आनंदपाल ने भागकर नगरकोट के दुर्ग में शरण ली। महमूद ने दुर्ग की घेराबंदी की तथा तीन दिन के भयंकर युद्ध के बाद वहाँ अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार सिंध से लेकर नगरकोट तक का समस्त प्रदेश उसके अधिकार में आ गया। उत्बी के विवरण से पता चलता है, कि नगरकोट की लूट में महमूद को इतना धन मिला कि जितने भी ऊँट मिले उन सब पर, उसे लाद दिया गया, फिर भी धन शेष रहा। इसे अधिकारियों में बाँट दिया गया। इसमें स्वर्ण सिक्के, सोना-चाँदी की बहुमूल्य वस्तुयें, मोती और सुंदर वस्र आदि शामिल थे। आनंदपाल ने नमक की पहाङियों के कोने में स्थित नंदन को अपनी राजधानी बनाया। वहीं उसकी मृत्यु हो गयी। उसके पुत्र तथा उत्तराधिकारी त्रिलोचनपाल ने महमूद के विरुद्ध भारतीय राजाओं का एक संघ बनाया, किन्तु 1018 ईस्वी में महमूद ने पुनः इस संघ को परास्त कर दिया। 1021 ईस्वी में त्रिलोचनपाल की मृत्यु हो गयी तथा इसके बाद शाहियावंश का राज्य महमूद के कब्जे में चला गया।

महमूद के आक्रमण का दूसरा शिकार मुल्तान का राज्य हुआ। यहाँ का राजा फतेह दाऊद शिया मतावलंबी था। और इस कारण सुन्नी महमूद उससे चिढता था।1006 ईस्वी में उसने मुल्तान पर आक्रमण कर दाऊद को पराजित किया तथा अपनी ओर सुखपाल को वहाँ का राजा बनाया। यह सुखपाल जयपाल की पुत्री का पुत्र था, जो महमूद द्वरा बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया, जहाँ उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। परंतु सुखपाल ने इस्लाम का धर्म त्याग कर महमूद के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। भटिण्डा में एक सुदृढ दुर्ग था, जो पश्चिमोत्तर भारत से गंगा की उपजाऊ घाटी तक पहुँचने के मार्ग में पङता था। महमूद ने दर्ग का घेरा डाला। विजयराय ने बङी वीरातपूर्वक दुर्ग की रक्षा की परंतु असफल रहा तथा भाग खङा हुआ। महमूद ने उस पर अधिकार कर लिया तथा नगर के निवासियों की या तो हत्या कर दी या उन्हें इस्लाम धर्म मानने को विवश किया। उसे अतुल संपत्ति प्राप्त हुयी।

1009 ईस्वी में महमूद ने अलवर स्थित नारायणपुर पर आक्रमण किया तथा उस पर अधिकार कर लिया। यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था। 1014 ईस्वी में थानेश्वर के चक्रस्वामी के मंदिर को तोङने के लिये उसने गजनी से प्रस्थान किया। थानेश्वर का शासक डरकर भाग गया तथा महमूद ने मनवाने ढंग से नगर की लूट-पाट की और चक्रस्वामी की मूर्ति को गजनी भेज दिया। उसके बाद उसने गंगा-यमुना के दोआब पर आक्रमण करने का निश्चय किया। 1018 ईस्वी में उसने मथुरा नगर पर धावा बोला। यहाँ अनेक भव्य एवं प्रसिद्ध मंदिर थे। महमूद ने अनेक भव्य मंदिरों को ध्वस्त किया तथा लूट में अतुल संपत्ति प्राप्त की। यहाँ से उसने कन्नौज को प्रस्थान किया। प्रतिहार शासक राज्यपाल भाग खङा हुआ तथा महमूद ने बङी आसानी से नगर पर अधिकार कर लिया। उसकी सेना ने नगर को भारी लूट पाट एवं कत्लेआम किया। यहाँ से भी उसे बहुत बङी संपत्ति प्राप्त हुयी। मथुरा तथा कन्नौज से अतुल संपत्ति लेकर वह गजनी लौट गया।

कन्नौज नरेश राज्यपाल के व्यवहार ने हिन्दू राजाओं को क्रुद्ध कर दिया तथा उन्होंने चंदेल नरेश विद्याधर की अध्यक्षता में एक संघ बनाया। सर्वप्रथम इस संघ ने राज्यपाल पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी तथा फिर महमूद के विरुद्ध शक्ति जुटाने लग गया। इस संघ को भंग करने के उद्देश्य से 1019 ईस्वी के अंत में महमूद ने पुनः गजनी से भारत को प्रस्थान किया। चंदेल नरेश एक बङी तथा शक्तिशाली सेना के साथ कालिंजर के पास उसका सामना करने को प्रस्तुत हुआ। महमूद विशाल सेना देखकर घबरा गया तथा शक्तिशाली सेना के साथ कालिंजर के पास उसका सामना करने को प्रस्तुत हुआ। महमूद विशाल सेना देखकर घबरा गया तथा हतोत्साहित हो उठा, किन्तु विद्याधर रातोंरात रहस्मय ढंग से भाग निकला। महमूद ने नगर को खूब लूटा तथा भारी रकम लेकर स्वदेश लौट गया। इस प्रकार जिस कायरता के लिये विद्याधर ने पूर्व में प्रतिहार नरेश राज्यपाल को दंडित किया था, उसी का प्रदर्शन स्वयं उसी ने किया। 1021 ईस्वी में चंदेलों की शक्ति को पूरी तरह कुचलने के उद्देश्य से महमूद ने पुनः कालिंजर पर आक्रमण किया। उसने दुर्ग का घेरा डाला। दीर्घकालीन घेरे के बाद जब उसे विफलता मिली तब उसने चंदेल नरेश से संधि कर ली। उसने महमूद को 300 हाथी उपहार में दिये, जिन्हें लेकर वह गजनी लौट गया। विद्याधर ने महमूद की प्रशंसा में एक कविता लिखकर भेजी थी। इसे सुनकर वह इतना खुश हुआ, कि उसने विद्याधर को 15 किलों का शासन सौंप दिया।

महमूद गजनवी का सर्वप्रसिद्ध आक्रमण 1025-26 ईस्वी में सोमनाथ के प्रशिद्ध मंदिर पर हुआ। यह मंदिर काठियावाङ में स्थित था तथा समूचे भारत में अपनी पवित्रता, गौरव तथा समृद्धि के लिये विख्यात था। कहा जाता है, कि यहाँ के हिन्दूओं में यह विश्वास था, कि महमूद उत्तर भारत के बहुसंख्यक मंदिर एवं मूर्तियों को तोङने में इस कारण सफल रहा कि भगवान सोमेश्वर उनसे अप्रसन्न थे। महमूद को जब यह पता चला तो उसने इस मंदिर को नष्ट करने तथा मूर्ति को तोङने का निश्चय किया। वह मुल्तान से तीस हजार अश्वरोहियों तथा अन्य सैनिकों के साथ सोमनाथ के लिये कूच किया।

रेगिस्तानी मार्ग में सावधानी बरतते हुये जनवरी 1025 ईस्वी में वह अन्हिलवाङ पहुंचा। चौलुक्य शासक भीम प्रथम अपने सहायकों के साथ राजधानी छोङकर भाग गया। नगर को लूटते हुये महमूद ने सोमनाथ के गढ का घेरा डाल दिया। यहां के स्थानीय सेनानायक ने भाग कर समुद्र में एक नाव पर शरण ली तथा प्रतिरोध मुख्यतः ब्राह्मणों और पुजारियों द्वारा ही किया गया। महमूद बिना किसी कठिनाई के उसमें प्रवेश पाने में सफल रहा। उसने मंदिर के 50 हजार पुजारियों तथा ब्राह्मणों के वध का आदेश दे दिया। भगवान सोमनाथ की मूर्ति के टुकेङ-टुकङे कर दिये गये तथा उसे गजनी, मक्का और मदीना की मस्जिदों की सीढियों में चिनाई के निमित्त भेज दिया गया। महमूद को बहुत अधिक हीरे, जवाहरात तथा स्वर्णराशि लूट में प्राप्त हुई। यह धनराशि 20 लाख दीनार की थी। इसे लेकर वह गजनी लौटा।मार्ग में जाटों से बदला लेने के लिये उसने 1027 ईस्वी में पुनः सिंध पर आक्रमण किया। वे पराजित हुए तथा उनके नगर जला दिये गये। बहुतों को मौत के घाट उतार दिया गया। यह महमूद का अंतिम भारतीय आक्रमण था। 1030 ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गयी।

महमूद गजनवी का भारत पर आक्रमण करने का उद्देश्य क्या था ?

उसका उद्देश्य भारत में तुर्की राज्य स्थापित करना नहीं था, बल्कि वह तो मूर्तियों को नष्ट करने तथा संपत्ति प्राप्त करने की इच्छा से यहाँ आया था। उसे अपने दोनों उद्देश्यों में सफलता मिली।

मुहम्मद हबीब का विचार है, कि महमूद धर्मांध नहीं था तथा भारत पर उसके आक्रमणों का उद्देश्य इस्लाम का प्रचार न होकर अधिकाधिक धन प्राप्त करनी की लालसा थी। उसने संपत्ति लूटने के लिये ही बङे-2 आक्रमण किये। हबीब के अनुसार इस्लामी कानून में कोई ऐसा सिद्धांत नहीं है, जो विध्वंस के कार्य को न्यायसंगत माने अथवा उसे प्रोत्साहित करे। अतः महमूद ने भारत में बर्बरतापूर्ण कार्य करके इस्लाम का अपकार ही किया था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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