इतिहासतुर्क आक्रमणमध्यकालीन भारत

मुहम्मद गौरी का आक्रमण तथा भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना

महमूद गजनवी के बाद भारत पर एक दूसरे महत्त्वपूर्ण तुर्क विजेता का आक्रमण हुआ, जो इतिहास में मुहम्मद गौरी के नाम से प्रसिद्ध है।

महमूद गजनवी के द्वारा भारत पर किये गये आक्रमणों का विवरण

गोर प्रदेश का इतिहास

गोर, महमूद गजनवी के अधीन एक छोटा सा पहाङी राज्य था। महमूद के निर्बल उत्तराधिकारियों के समय में यहाँ के सरदारों ने अपनी शक्ति का विस्तार प्रारंभ किया। गोर के शंसबानी राजवंश के शासकों ने गजनी पर अधिकार कर लिया। गजनी नगर को ध्वस्त कर दिया गया। 1173 ईस्वी में शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी, जिसका एक नाम मुइजुद्दीन मुहम्मद बिन साम भी था, वहाँ का राजा बना तथा इसके बाद तीन वर्षों तक गोर साम्राज्य का उत्कर्ष होता रहा। मुहम्मद गौरी वीर एवं महत्वाकांक्षी था। गजनी का शासक होने के नाते वह अपने को पंजाब का वैध शासक समझता था, क्योंकि पहले यह गजनी साम्राज्य का अंग था। पंजाब का शासन गजनी वंश के खुसरव मलिक के अधीन था, तथा गोरी का गजनवियों से संघर्ष चल रहा था। इस कारण भी पंजाब पर आक्रमण करना उसके लिये आवश्यक हो गया था। इसके अलावा मध्य एशिया में गोरियों की शक्ति को ख्वारिज्म के शाह से भी चुनौती मिल रही थी। जिसने खुरासान पर अधिकार कर लिया था। अतः भारत की ओर आक्रमण करने के सिवाय गौरी के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था। उसने भारत पर आक्रमण कर एक साम्राज्य की भी स्थापना कर ली।

मुहम्मद गौरी का इतिहास

मुहम्मद गौरी के द्वारा भारत पर किये गये आक्रमण

1175 तथा 1205 ईस्वी के मध्य मुहम्मद गौरी ने भारत पर कई आक्रमण किये। सबसे पहले उसने मुल्तान तथा सिंध पर आक्रमण किया। यहाँ के शासक शिया थे, अतः मुहम्मद गौरी उनके राज्य को जीतना अपना धर्म समझता था। 1182 ईस्वी तक उसने मुल्तान, उच्छ तथा दक्षिणी सिंध को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।

मुहम्मद गौरी का आक्रमण और चौहान साम्राज्य का अंत

मुहम्मद गौरी का दूसरा आक्रमण (1178 ईस्वी) पाटन (गुजरात) पर हुआ। राजपूताना के रेगिस्तान मार्ग से उसने गुजरात में घुसने का प्रयास किया। यहां का राजा बघेल भीम द्वितीय था। उसने गौरी को बुरी तरह परास्त किया तथा उसे देश के बाहर खदेङ दिया। अब मुहम्मद गौरी को यह विश्वास हो गया कि भारत को जीतने के लिये सिंध तथा मुल्तान पर नहीं अपितु पंजाब पर अधिकार करना आवश्यक है। अतः उसने तदनुसार अपनी योजना क्रियान्वित करते हुये पंजाब पर आक्रमण किया। सर्वप्रथम पेशावर तथा फिर लाहौर के ऊपर उसने अपना अधिकार कर लिया। यहाँ के शासक गजनी वंशी खुसरव मलिक ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली तथा बहुमूल्य ऊपहार दिये। 1185 ईस्वी में उसका स्यालकोट के दुर्ग पर कब्जा हो गया। इस प्रकार मुल्तान, सिंध तथा लाहौर गौरी के साम्राज्य में शामिल हो गये और पंजाब से गजनवियों के शासन की समाप्ति हुई। यहाँ से गौरी के लिये भारत की विजय का मार्ग प्रशस्त हो गया था।

पंजाब पर अधिकार कर लेने के बाद गौरी के साम्राज्य की सीमायें दिल्ली तथा अजमेर के चाहमान शासक पृथ्वीराज तृतीय के साम्राज्य की सीमा से स्पर्श करने लगी। परिणामस्वरूप दो महत्वाकांक्षी राजाओं के बीच संघर्ष अनिवार्य हो गया। संघर्ष का आरंभ भटिण्डा पर अधिकार को लेकर हुआ। मुहम्मद गौरी ने अचानक भटिण्डा के दुर्ग पर धावा बोला तथा वहाँ अपना अधिकार कर लिया। उसने इसकी सुरक्षा का भार सेनापति मलिक जियाउद्दीन को सौंप दिया तथा उसकी सहायता के लिये 12,000 सैनिक रख दिये गये। मुहम्मद गौरी वापसी की तैयारी में ही था, कि पृथ्वीराज चौहान एक बङी सेना के साथ उसका सामना करने के लिये बढा। 1191 ईस्वी में तराइन के मैदान में दोनों सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ। इसमें मुहम्मद गौरी की पराजय हुई तथा घायलावस्था में उसे एक विश्वासपात्र खलजी अधिकारी घोङे पर बिठाकर भाग निकलने में सफल हुआ। पृथ्वीराज चौहान ने लौटकर भटिण्डा के दुर्ग की घेराबंदी की तथा लगभग 13 महीने बाद वह जियाउद्दीन से छीन सकने में सफल हुआ। यह गौरी की दूसरी पराजय थी।

परंतु अपनी असफलताओं से गोरी निराश नहीं हुआ। गजनी पहुँचकर उसने पूरी सैनिक तैयारियाँ की तथा दूसरे वर्ष पृथ्वीराज से बदला लेने के लिये एक बङी सेना के साथ भारत के लिये रवाना हुआ। उसकी सेना में एक लाख बीस हजार चुने हुए अश्वारोही थे। लाहौर पहुँचकर उसने पृथ्वीराज के पास किवाम-उल-मुल्क नामक अपना एक दूत भेजकर समर्पण करने तथा उसे अपनी सम्राट मान लेने के लिये भेजा। किन्तु पृथ्वीराज तत्काल युद्ध के लिये प्रस्तुत हुआ। उसे कुछ अन्य राजपूत राजाओं का भी समर्थन मिला था तथा उसकी सेना में पाँच लाख अश्वारोही तथा तीन हजार हाथी थे। 1192 ईस्वी में तराइन के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच एक दूसरा युद्ध हुआ। इस बार तुर्कों का पलङा भारी रहा तथा पृथ्वीराज की पराजय हुई। वह घोङे पर चढकर भाग गया, किन्तु सिरसा के निकट पकङा गया तथा बाद में उसकी हत्या कर दी गयी।

इसके विपरीत हसन निजामी की मान्यता है, कि उसे बंदी बनाकर अजमेर लाया गया जहाँ उसने गोरी की अधीनता में शासन करना स्वीकार कर लिया। इसका प्रमाण पृथ्वीराज के कुछ सिक्कों से मिलता है, जिनके ऊपर संस्कृत में हम्मीर उत्कीर्ण है। बताया गया है, कि बाद में उसे गौरी के विरुद्ध षङयंत्र करते हुये पकङ लिया गया तथा उसकी हत्या कर दी गयी। यही मत सही प्रतीत होता है।

तराइन के द्वितीय युद्ध का भारत पर क्या प्रभाव पङा

तराइन का दूसरा युद्ध इतिहास में निर्णायक युद्धों में से एक है। इसके फलस्वरूप तुर्कों के भारत भूमि में साम्राज्य स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो उठा। इसने न केवल चाहमानों की साम्राज्यिक शक्ति को नष्ट कर दिया, अपितु संपूर्ण हिन्दुस्तान पर भारी विपत्ति ढहा दी। शासकों तथा जनता का मनोबल पूरी तरह से गया तथा देश भटाक्रांत हो गया था।

चौहान शक्ति के टूट जाने के बाद उसने हाँसी, सिरसा, कुहराम, समन आदि पर बङी आसानी से अपना अधिकार कर लिया। मुहम्मद गौरी ने कूटनीति से काम लिया तथा पृथ्वीराज के पुत्र गोविंदराज को अजमेर के ऊपर अपनी अधीनता में राज्य करने का अधिकार दे दिया। दिल्ली का राज्य इसी प्रकार तोमरवंश को सौंप दिया गया। इंद्रप्रस्थ में उसने अपने विश्वासपात्र सहायक कुतुबुद्दीन ऐबक के नेतृत्व में एक सेना रख दी, जिसका काम हिन्दू शासकों से संधि की शर्तों को मनवाना था। गोरी, गजनी वापस लौट गया। उसके जाने के बाद अजमेर तथा दिल्ली में छिट-पुट विद्रोह हुये किन्तु ऐबक ने उन्हें दबा दिया।

चंदावर का युद्ध

1194 ईस्वी में गौरी नि पुनः भारत पर आक्रमण किया। इस आक्रमण का उद्देश्य गाहङवाल नरेश जयचंद्र को पराजित करना था, जो कन्नौज तथा बनारस का शासक था। मुस्लिम लेखक उसे महानतम शासक बताते हैं। पृथ्वीराज के मुहम्मद गौरी के साथ युद्ध में जयचंद तटस्थ रहा तथा उसने चाहमान नरेश की कोई मदद नहीं की। इस उदासीनता का परिणाम उसे शीघ्र ही भुगतना पङा। चंदावर (कन्नौज के पास) नामक स्थान पर जयचंद के साथ उसका युद्ध हुआ, जिसमें हिन्दू शासक की पराजय हुयी। बताया जाता है, कि जयचंद अपनी सेना के साथ अत्यन्त वीरतापूर्वक लङा तथा उसकी विजय लगभग निश्चित थी, किन्तु दुर्भाग्यवश उसकी आँख में तीर लग गया तथा वह गिर पङा। हिन्दू सेना में भगदङ मच गयी तथा तुर्कों की विजय हुई। विजेता गौरी ने बनारस पर अधिकार कर लिया, जहाँ उसे एक भारी खजाना मिला। उसके बाद कुछ अन्य प्रमुख नगरों पर भी उसका अधिकार हो गया। इस विजय के परिणामस्वरूप तुर्क साम्राज्य बिहार की सीमा तक जा पहुँचा।

चंदावर का युद्ध किस-किस के बीच लङा गया?

बयाना का घेरा

1195-96 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने भारत पर पुनः आक्रमण किया तथा बयाना का घेरा डाला। यहाँ जादोंभट्टी राजपूत शासक कुमारपाल की राजधानी थी। वह पराजित हुआ तथा तुर्कों ने थंगीर तथा विजयमंदिरगढ के किले पर अधिकार कर लिया। यहाँ की रक्षा का भार बहाउद्दीन तुगरिल को सौंप दिया गया। उसी ने एक लंबे घेरे के बाद ग्वालियर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

मुहम्मद गौरी के लौटने के बाद उसके सहायक कुतुबुद्दीन ऐबक तथा एक सेनानायक बख्तियार खिलजी ने बुंदेलखंड, बिहार, आदि की विजय की। ऐबक ने चंदेल राजा परमर्दि को पराजित कर कालिंजर, महोबा तथा खजुराहो के महत्त्वपूर्ण सामरिक दुर्गों पर अधिकार कर लिया। बख्तियार खिलजी ने पूर्वी भारत की ओर अभियान करते हुये औदंतपुरी, विक्रमशिला तथा नालंदा के विश्वविद्यालयों को ध्वस्त कर दिया तथा मात्र 18 घुङसवारों के साथ सौदागरों के छद्म वेष में सेनों की राजधानी नदिया पर धावा बोल दिया। राजा लक्ष्मणसेन भाग खङा हुआ तथा आक्रान्ताओं ने वहाँ अधिकार करने के बाद भारी लूट-पाट की। इस प्रकार तुर्क साम्राज्य प्रायः संपूर्ण उत्तरी भारत में छा गया।

1206 ईस्वी में शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी भारत से गजनी वापस जाते हुये सिंध नदी के तट पर खोकर नामक लङाकू जातियों द्वारा मार डाला गया। निःसंदेह वह एक महान योद्धा तथा उच्चकोटि का सेनानायक था। उसने अपनी योग्यता के बल पर भारत में तुर्की साम्राज्य की स्थापना की। उसकी मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक नामक व्यक्ति उसके भारतीय साम्राज्य का स्वामी बना, जिसने यहाँ गुलाम वंश की स्थापना की।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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