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प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल : अहिच्छत्र

अहिछत्र की पहचान बरेली स्थित वर्तमान राजनगर नामक स्थान से की जाती है। यह उत्तरी पञ्चाल की राजधानी थी। महाभारत तथा पूर्व बौद्ध काल में यहाँ प्रसिद्ध नगर था। महाभारत से पता चलता है कि द्रोण ने पाञ्चाल नरेश द्रुपद को हराकर अहिच्छत्र को अपने अधिकार में कर लिया था। अशोक ने यहाँ स्तूप बनवाया था।

उत्खनन से पता चलता है कि लगभग 300 ई. पू. में यहाँ बड़ी आबादी थी तथा भवन कच्ची ईंटों से बने थे। कुषाण काल (लगभग प्रथम शता. ई. पू.) में इसे पकी ईंटों से घेर दिया गया। दीवार की लम्बाई 3.5 किलोमीटर थी। इसी समय के ‘मित्र’ राजाओं के सिक्के यहाँ से मिलते है। कुषाण काल में मकान पकी ईंटों से बनने लगे। इन्हें पंक्तिबद्ध रूप से बनाया जाता था।

कुषाणकालीन अवशेष कटोरे, सुराहीनुमा, हजारे, दावात आदि है। लौहे तथा ताँबे के उपकरण तथा कुषाण पञ्चाल एवं अच्यु नामांकित सिक्के भी मिलते है एक गुप्तकालीन मुहर पर ‘अहिच्छत्र मुक्ति’ अंकित है।

प्रयाग लेख में अच्छुत नामक जिस शासक का उल्लेख मिलता है उसे यही का राजा माना जाता है । चित्रित धूसर मृदभांड मिलते है। यह एक लौहकालीन स्थल है।

लौह काल का इतिहास।

कुषाणकाल से लेकर आरम्भिक गुप्तकाल तक अहिच्छत्र एक समृद्ध नगरा था। बाद के अवशेष नगर के पतन की सूचना देते हैं।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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