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सविनय अवज्ञा आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था

फरवरी, 1930 में काँग्रेस कार्य समिति ने पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का अधिकार महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi)को दे दिया। इससे पूर्व 1928 के मध्य सरदार पटेल के नेतृत्व में किसानों ने बारडोली(सूरत जिला) में एक सफल सत्याग्रह किया था। सरकार को भूमि – कर देने से इंकार कर दिया था।

इसलिए काँग्रेस को यह तरीका काफी प्रभावशाली प्रतीत हुआ।किन्तु आंदोलन प्रारंभ करने से पूर्व महात्मा गाँधी ने एक बार फिर सरकार से समझौता करने का प्रयत्न किया और इस हेतु लार्ड इरविन (Lord Irwin)को 2 मार्च,1930 को एक पत्र लिखा। इस पत्र में 11 माँगों का उल्लेख किया गया जो जनवरी, 1930 में सरकार के समक्ष प्रस्तुत की गई थी।

उन्होंने यह भी कहा कि यदि अंग्रेज सरकार ने उन माँगों को पूरा नहीं किया तो वे 12 मार्च,1930 को नमक कानून का उल्लंघन करेंगे। इरविन ने इस पत्र का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया।

गाँधीजी ने अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए वायसराय से भेंट करनी चाही, किन्तु इरविन ने गाँधीजी से मिलने से ही इंकार कर दिया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत- दांडी कूच

गाँधी जी ने अपनी 11 सूत्री माँगों को न मांने जाने पर इरविन को एक पत्र लिखा, मैंने रोटी मांगी थी,मुझे पत्थर मिला। इंतजार की घङियाँ समाप्त हुई।

गाँधीजी ने कोई कार्य जल्दी में नहीं किया। लाहौर अधिवेशन के बाद गाँधीजी ने अपने कार्यकर्ताओं को सत्याग्रह का प्रशिक्षण दिया। 12 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने अपने 79 कार्यकर्ताओं के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट पर स्थित दांडी की ओर कूच किया।

दो सौ मील की यात्रा पैदल चलकर 24 दिन में पूरी की गई। सरदार पटेल ने आगे-2 चलकर लोगों को गाँधीजी के स्वागत के लिये तैयार किया।मार्ग में गाँधीजी ने लोगों को बलिदान और अहिंसा का उपदेश दिया।

लोगों में देशभक्ति का असीम उत्साह दिखाई दे रहा था। 6 अप्रैल,1930 को प्रातः काल के बाद महात्मा गाँधी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर नमक कानून को भंग किया।यहीं से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत हुई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil disobedience movement)का कार्यक्रम

महात्मा गाँधी द्वारा नमक कानून को भंग करना सारे देश के लिये सविनय अवज्ञा के प्रारंभ का संकेत था। अतः जगह-2 लोगों ने सरकारी कानूनों को तोङना शुरू कर दिया। महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में निम्नलिखित कार्यक्रम सम्मिलित किये-

  1. गाँव-2 में नमक कानून तोङा गया।
  2. छात्र सरकारी स्कूलों और कर्मचारी सरकारी दफ्तरों को छोङ दें।
  3. स्त्रियाँ शराब, अफीम और विदेशी कपङों की दुकानों पर धरना दें।
  4. विदेशी कपङों को जलाया जाय।
  5. लोग सरकार को टैक्स न दें।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रगति-

गाँधीजी द्वारा कानून तोङने से आंदोलन आरंभ हो गया। दिन-प्रतिदिन इसका प्रभाव बढता गया।

बंबई, बंगाल,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत और मद्रास में गैर-कानूनी तरीके से नमक बनना शुरू हो गया।

दिल्ली में 1600 नारियों ने शराब की दुकानों पर धरना दिया।नारियों ने पर्दा त्याग कर इस सत्याग्रह में भाग लिया।

इन सभी नारियों को कैद में डाल दिया गया।

विदेशी कपङे का बहिष्कार आशा से भी अधिक सफल रहा।

बंबई में अंग्रेज व्यापारियों की सोलह मिलें बंद हो गयी। भारतीय व्यापारियों की मिलें दुगुनी तेजी से काम करने लगी।

घारासना में 2,500 सत्याग्रहियों ने नमक के गोदाम पर चढाई कर दी। पुलिस ने उनकी निर्ममता से पिटाई की, जिससे अनेक व्यक्ति बुरी तरह से घायल हो गये।

किसानों ने कर न अदा करने का आंदोलन चलाया।

इस आंदोलन में अधिकांश मुस्लमानों ने भाग नहीं लिया।मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा, हम गाँधी के साथ शामिल होने से इंकार करते हैं, क्योंकि उनका आंदोलन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिये नहीं, बल्कि भारत के 7 करोङ मुसलमानों को हिन्दू महासभा के आश्रित बना देने के लिये है।

यद्यपि जिन्ना के नेतृत्व में अधिकतर मुसलमान इस आंदोलन से अलग रहे, लेकिन उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत के पठानों ने खान अब्दुल गफ्फार खाँ के नेतृत्व में इस आंदोलन में भाग लिया। तथा पुलिस की लाठियों और गोलियों को सहन किया।

जून,1930 तक यह आंदोलन पूरे जोर पर पहुँच गया। पुलिस तथा सेना की गोलियों से भयभीत होने के स्थान पर सत्याग्रहियों की संख्या निरंतर बढती गई। 16 अप्रैल,1930 को जवाहरलाल नेहरू तथा अन्य महत्त्वपूर्ण काँग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 5 मई को महात्मा गाँधी को जेल में डाल दिया गया।

कुल 60 हजार लोगों को जेल में ठूँस दिया गया।इससे लोगों में उत्तेजना फैल गई।शोलापुर में एक उत्तेजित भीङ ने छः थाने जला दिये।

पुलिस ने अनेक व्यक्तियों को गोली से भून दिया। जिस समय आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था, इंग्लैण्ड की सरकार ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए इंग्लैण्ड में गोलमेज सम्मेलन बुलाया।

काँग्रेस के अधिकांश कार्यकर्ता जेल में थे, अतः उनका कोई प्रतिनिधि गोलमेज में भाग नहीं ले सका।प्रथम गोलमेज सम्मेलन में जिन्ना और डॉ.अम्बेडकर में तीव्र मतभेद हो जाने के कारण कोई निर्णय नहीं हो सका।

गाँधी-इरविन पैक्ट

गोलमेज सम्मेलन

साम्प्रदायिक पंचाट

श्वेत पत्र

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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