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शैव सम्प्रदाय का परिचय और महत्त्वपूर्ण तथ्य

शैव धर्म-

शिव भक्ति के विषय में प्रारंभिक जानकारी सिंधुघाटी से प्राप्त होती है। ऋग्वेद में शिव से साम्य रखने वाले देवता को रुद्र कहा गया है। महाभारत में शिव का उल्लेख एक श्रेष्ठ देवता के रूप में हुआ है। मेगस्थनीज ने ई. पू. 4 शता. में शैवमत का उल्लेख किया है।

  • दक्षिण भारत में शैव धर्म का प्रचार नयनार या आडियार संतों द्वारा किया गया, ये संस्था में 63 थे। इनके श्लोकों के संग्रह को तिरुमुडै कहा जाता है। जिसका संकलन नम्बि – अण्डाल – नम्बि ने किया।
  • इस सम्प्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया। इस मत के प्रमुख सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपतसूत्र हैं।
  • शैव सम्प्रदायों का प्रथम उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में शिव भागवत नाम से हुआ।
  • शैव धर्म ( एक सम्प्रदाय के रूप में ) का प्रारंभ शुंग – सातवाहन काल से हुआ। जो गुप्त काल में चरम  सीमा तक पहुँच गया था।
  • अर्द्धनारीश्वर तथा त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु , महेश शिव ) की पूजा गुप्त काल में आरंभ हुई। समन्वय की यह उदार भावना गुप्त काल की विशेषता है।
  • अर्द्धनारीश्वर की मूर्ति शिव तथा पार्वती के परस्पर तादात्म्य पर आधारित थी। ऐसी पहली मूर्ति का निर्माण गुप्तकाल में हुआ।
  • लिंग पूजा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख मत्स्य पुराण में हुआ है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी लिंगोपासना का उल्लेख है।
  • हरिहर के रूप में शिव की विष्णु के रूप में सर्वप्रथम मूर्तियां गुप्त काल में बनायी गई।
  • शिव की प्राचीनतम मूर्ति गुडीमल्लम लिंग रेनगुंटा से मिली है।
  • कौषितकी तथा शतपथ ब्राह्मण में शिव के 8 रूपों का उल्लेख है – चार संहारक के रूप में तथा चार सौम्य रूप में ।
  • शैव सम्प्रदायों का प्रथम उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में शिव भागवत नाम से हुआ।
  • कश्मीरी शैव शुद्ध रूप से दार्शनिक तथा ज्ञानमार्गी था । इसके कापालिकों के घृणित क्रिया कलापों की निन्दा की गई है। वसुगुप्त इसके संस्थापक थे। शिव को उन्होंने अद्वैत कहा है।
वामन पुराण में शैव सम्प्रदाय की संख्या चार बतायी गई है जो निम्न लिखित हैं-
  1. शैव
  2. पाशुपत
  3. कापालिक
  4. कालामुख
    शैव सम्प्रदाय-

इस सम्प्रदाय के अनुसार कर्त्ता शिव हैं, कारण शक्ति तथा उपादान बिंदु हैं।

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इस मत के चार पाद या पाश (बंधन) हैं- विद्या, क्रिया, यौग तथा चर्या।

तीन पदार्थ हैं – पति, पशु, पाश।

     2. पाशुपत सम्प्रदाय-

यह सम्प्रदाय शैव मत का सबसे पुराना सम्प्रदाय है। इसके संस्थापक लकुलीश या नकुलीश थे, जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है।

इस सम्प्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया है। इस मत के प्रमुख सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र हैं।

पाशुपत सम्प्रदाय का गुप्त काल में अत्यधिक विकास हुआ। इसके सिद्धांत के तीन अंग हैं- पति(स्वामी), पशु (आत्मा), पाश (बंधन) पशुपति के रूप में शिव की उपासना की जाती थी।

                   3. कापालिक सम्प्रदाय-

कापालिकों के इष्टदेव भैरव थे। जो शंकर का अवतार माने जाते थे।

यह सम्प्रदाय अत्यंत भयंकर और आसुर प्रवृत्ति का था। इसमें भौरव को सुरा और नरबलि का नौवेद्य चढाया जाता था। इस सम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र श्री शैल नामक स्थान था जिसका प्रमाण भवभूति के मालतीमाधव में मिलता है।

                      4. कालामुख सम्प्रदाय-

इस सम्प्रदाय के अनुयायी कापालिक वर्ग के होते थे, किन्तु वे उनसे भी अधिक अतिवादी तथा प्रकृति वादी थे। शिव पुराण में उन्हें महाब्रतधर कहा गया है। इस सम्प्रदाय के अनुयायी नर- कपाल में भोजन, जल तथा सुरापान करते थे। शरीर पर भस्म लगाते थे।

  • लिंगायत सम्प्रदाय-

दक्षिण भारत में (कर्नाटक) भी शैव धर्म का विस्तार हुआ। इस धर्म के उपासक दक्षिण में लिंगायत या जंगम कहे जाते थे।

बसव पुराण में इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक अल्लभप्रभु एवं उनके शिष्य बसव का उल्लेख मिलता है।

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Reference : https://www.indiaolddays.com/

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