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तुर्क आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा कैसी थी

मुस्लिम आक्रमण के समय भारत में एक बार पुनः विकेन्द्रीकरण तथा विभाजन की परिस्थितियाँ सक्रिय हो उठी थी। इस समय देश की स्थिति वैसी ही थी जैसी कि किसी भी शक्तिशाली साम्राज्य के पतन के बाद हो जाती है। स्वदेशी शक्तियों के साथ ही साथ मुल्तान तथा सिंध के भागों में दो विदेशी राज्य भी स्थापित हो चुके थे। संपूर्ण देश अनेक छोटे-बङे राज्यों में विभक्त था, जो एक दूसरे के मूल्य पर अपनी शक्ति एवं साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।

10 वीं शता. के प्रमुख भारतीय राज्यों का विवरण निम्नलिखित है-

मुल्तान तथा सिंध-

इन दोनों ही प्रदेशों में अरबों ने अपने राज्य स्थापित कर लिये थे। 8वीं शता. के प्रारंभ में मुहम्मद-बिन-कासिम के नेतृत्व में जो अरब-आक्रमण हुआ उसी के परिणामस्वरूप ये दोनों राज्य अरब-सत्ता के अधीन आये। 9वीं शता. के अंत में मुल्तान शासक फतेह दाऊद था। सिंध में अब भी अरब लोग शासन कर रहे थे। ये लोग स्थानीय जनता को इस्लाम मत में परिवर्तित करने का कार्य निरंतर करते जा रहे थे।

मुहम्मद बिन कासिम भारत पर आक्रमण करने वाला पहला विदेशी

काबुल तथा पंजाब का शाही राज्य

उत्तरी-पश्मिची भाग में यह भारत का पहला महत्त्वपूर्ण हिन्दू राज्य था, जो चिनाब से लेकर हिन्दुकुश तक फैला हुआ था। शाहीवंश ने दो सदियों तक सफलतापूर्वक अरबों का प्रतिरोध किया था। शाहीवंश का अंतिम शासक लघुतुरमान हुआ जिसके समय में उसके ब्राह्मण सचिव कल्लर ने राजसत्ता पर अधिकार कर लिया। मुस्लिम आक्रमण के पूर्व यहाँ जयपाल शासन कर रहा था। वह एक वीर योद्धा तथा कुशल शासक था। उसकी राजधानी उदतभांडपुर (सिंध के दक्षिण किनारे पर स्थित ) में थी। यह राज्य मुस्लिम आक्रमण का प्रथम शिकार हुआ।

कश्मीर का राज्य

9-10 वीं शता. में कश्मीर में उत्पल राजवंश का शासन था। इस वंश के शक्तिशाली नरेश शंकरवर्मा ने अपने साम्राज्य को दूर-दूर तक विस्तृत किया। उसकी मृत्यु के बाद कश्मीर घाटी में घोर अव्यवस्था फैल गयी, जिसका लाभ उठाकर 939 ईस्वी में यशस्कर ने ब्राह्मणों की सहायता से राजगद्दी प्राप्त की । उसका शासन काल शांति एवं समृद्धि के लिये प्रसिद्ध है। उसके बाद पर्वगुप्त तथा फिर क्षेमगुप्त राजा हुआ। अंतिम शासक के काल में (980ईस्वी) उसकी पत्नी दिद्दा वास्तविक शासिका बनी। अन्ततोगत्वा उसने राजगद्दी हथिया ली तथा 1003 ईस्वी तक शासन किया।

दिद्दा की मृत्यु के बाद उसके भतीजे संग्रामराज ने कश्मीर में लोहारवंश की स्थापना की। इस प्रकार मुस्लिम आक्रमण के समय कश्मीर का राज्य अव्यवस्था एवं अराजकता के दौर से गुजर रहा था।

कन्नौज का प्रतिहार-राज्य

836 ईस्वी में कन्नौज में प्रतिहार राजवंश की स्थापना हुई। इस वंश के शक्तिशाली शासक वत्सराज तथा उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय थे। इस वंश का दक्षिण के राष्ट्रकूट तथा बंगाल के पाल राजवंशों के साथ दीर्घकालीन संघर्ष चलता रहा। कालांतर में प्रतिहारों की शक्ति कमजोर पङ गयी। इस वंश के अंतिम शासक राज्यपाल के समय अर्थात् 1018 ईस्वी में महमूद गजनवी ने कन्नौज के ऊपर आक्रमण किया था।

मालवा का परमार राजवंश

972 ईस्वी के अंतिम चरण में सीयक नामक व्यक्ति ने मालवा में स्वतंत्र परमारवंश की स्थापना की थी। पहले इस वंश के शासक राष्ट्रकूटों की अधीनता स्वीकार करते थे। इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा मुंज (973-995ईस्वी) हुआ। वह महान विजेता तथा साम्राज्य-निर्माता था। उसके बाद सिंधुराज तथा फिर भोज शासक हुए। भोज ने 1060 ईस्वी तक शासन किया। वह महमूद गजनवी का समकालीन था।

बुंदेलखंड का चंदेलवंश

बुंदेलखंड (जेजाकभुक्ति) में स्वतंतत्र चंदेल राजवंश की स्थापना करने वाला शासक हर्ष(900-925ईस्वी) था। उसके पूर्वज गुर्जर-प्रतिहारों की अधीनता स्वीकार करते थे। दसवीं शता. में बुंदेलखंड एक अत्यंत शक्तिशाली राज्य बन गया। धंग, गंड, विद्याधर चंदेलवंश के प्रमुख शासक थे। विद्याधर (1019-1029ईस्वी) के समय में महमूद गजनवी ने चंदेल राज्य पर आक्रमण किया था। विद्याधर ने बङी वीरता तथा कुशलता के साथ उसका सामना किया तथा महमूद को विवश होकर उससे संधि करनी पङी थी। विद्याधर अकेला ऐसा हिन्दू शासक था, जिसने मुसलमानों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया। मुस्लिम लेखकों ने उसे तत्कालीन भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बताया है।

त्रिपुरी का कलचुरि -चेदिवंश

चंदेल राज्य के दक्षिण में कलचुरि-चेदि नामक राज्य स्थित था, जिसकी राजधानी त्रिपुरी में थी। इस वंश की स्थापना कोक्कल नामक महान सेनानायक ने की थी। उसने प्रतिहारों तथा राष्ट्रकूटों को पराजित किया था। कोक्कल ने दक्षिण-पूर्व की ओर अरबों के प्रसार को भी रोका था। उसके उत्तराधिकारियों ने 13वीं शती के अंत तक महाकोशल क्षेत्र में शासन किया। मुस्लिम आक्रमण के समय यह मध्य भारत का एक शक्तिशाली राज्य था।

शाकंभरी का चौहानवंश

चौहान राज्य अजमेर के उत्तर में स्थित था, जिसकी राजधानी सांभर (शाकंभरी) थी। 10 वीं शती के मध्य इस वंश के सिंहराज ने प्रतिहारों के विरुद्ध अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। उसके उत्तराधिकारी विग्रहराज द्वितीय ने गुजरात के चालुक्यों की विजय की तथा अपने राज्य का विस्तार नर्मदा नदी तक किया। 10वीं शती के अंत में यह एक शक्तिशाली राज्य था।

गुजरात का चालुक्य राजवंश

इस वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम (974-995 ईस्वी) था। उसने गुजरात तथा सुराष्ट्र की विजय की। उसका उत्तराधिकारी चामुंडराज (995-1022 ईस्वी) था, जिसने धारा के परमार नरेश सिन्धुराज को पराजित किया था। वह महमूद का समकालीन था। चालुक्य राजाओं के समय में ही महमूद गजनवी ने सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर को लूटा था।

बंगाल का पाल-राज्य

8 वीं शती.के द्वितीयार्द्ध में बंगाल के पालों ने एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की थी। इस वंश के प्रसिद्ध शासक धर्मपाल तथा देवपाल हुए। उनका प्रतिहारों तथा राष्ट्रकूटों के साथ दीर्घकालीन संघर्ष चलता रहा। 11 वीं शती के प्रथम चरण में बंगाल का पालवंशी शासक महीपाल प्रथम था। इसी समय महमूद पश्चिमी भारत के राज्यों को जीतने में संलग्न था।

इन सभी राज्यों के अलावा मुस्लिम आक्रण के समय उत्तरी भारत में अन्य अनेक छोटे-छोटे राज्य थे। विन्ध्यपर्वत के दक्षिण का भाग भी अनेक राज्यों में विभाजित था, जिनमें कल्याणी के चालुक्य तथा तंजौर के चोल शक्तिशाली थे। जिस समय चोल तथा चालुक्य दक्षिण में परस्पर संघर्षरत थे, उसी समय उत्तरी भारत के राज्य महमूद गजनवी के आक्रमणों का शिकार हो रहे थे। विभाजन तथा पारस्परिक संघर्ष की इस स्थिति ने तुर्क आक्रमणकारियों का कार्य सुगम कर दिया ।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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