विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Day of Social Justice) विश्व में हर वर्ष 20 फरवरी को मनाया जाता है।
यह दिवस विभिन्न सामाजिक मुद्दों, जैसे– बहिष्कार, बेरोजगारी तथा गरीबी से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।
इसके तहत वैश्विक सामाजिक न्याय विकास सम्मेलन आयोजित कराने तथा 24वें महासभा सत्र का आह्वान करने की घोषणा की गयी। इस अवसर पर यह घोषणा की गयी कि 20 फरवरी को प्रत्येक वर्ष विश्व न्याय दिवस मनाया जायेगा। प्रत्येक वर्ष विभिन्न कार्यों एवं क्रियाकलापों का आयोजन किया जायेगा। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि- “इस दिवस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गरीबी उन्मूलन के लिए कार्य करना चाहिए। सभी स्थानों पर लोगों के लिए सभ्य काम एवं रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए तभी सामाजिक न्याय संभव है।
इस अवसर पर विभिन्न संगठनों, जैसे- संयुक्त राष्ट्र एवं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा लोगों से सामाजिक न्याय हेतु अपील जारी की जाती है।
सामाजिक न्याय का अर्थ
सामाजिक न्याय का अर्थ है, लिंग, आयु, धर्म, अक्षमता तथा संस्कृति की भावना को भूलकर समान समाज की स्थापना करना। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2007 में इस दिवस की स्थापना की गयी।
सन 2009 से इस दिवस को पूरे विश्व में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है। रोटी, कपड़ा, मकान, सुरक्षा, चिकित्सा, अशिक्षा, गरीबी, बहिष्कार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्यकता को पहचानने के लिए विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाने की शुरूआत की गयी है।
विश्व एकता व विश्व शान्ति
सी.एम.एस.( Centers for Medicare & Medicaid Services ) विगत 55 वर्षों से लगातार विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य हेतु विश्व एकता व विश्व शान्ति का बिगुल बजा रहा है, परन्तु यू.एन.ओ. के ऑफिसियल एन.जी.ओ. का दर्जा मिलने के बाद विश्व पटल पर इसकी प्रतिध्वनि और जोरदार ढंग से सुनाई देगी। सी.एम.एस. की सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति का मूल यही है कि सभी को सामाजिक न्याय सहजता से मिल सके, मानवाधिकारों का संरक्षण हो, भावी पीढ़ी को सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा के लिए तैयार किया जा सके, यही कारण है सर्वधर्म समभाव, विश्व मानवता की सेवा, विश्व बन्धुत्व व विश्व एकता के सद्प्रयास इस विद्यालय को एक अनूठा रंग प्रदान करते हैं, जिसकी मिसाल शायद ही विश्व में कहीं और मिल सके। कानून को न्यायालय की चार दीवारी से बाहर आना होगा। जो व्यक्ति अशिक्षा, आर्थिक अभाव या किसी भी अन्य कारणों से न्यायालय तक नहीं पहुंच पाता है, उसे भी न्याय मिले इस बात को सभी को मिलकर सुनिश्चित करना है।
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