इतिहासमध्यकालीन भारत

नागर शैली किसे कहते हैं, नागर शैली की विशेषताएँ

नागर शैली – नागर शैली उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन (नागर, बेसर, द्रविङ) शैलियों में से एक शैली है। ‘नागर’ शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इसे नागर शैली कहा जाता है।यह संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है जो हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी। इसे 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत में मौजूद शासक वंशों ने पर्याप्त संरक्षण दिया।नागर शैली की पहचान-विशेषताओं में समतल छत से उठती हुई शिखर की प्रधानता पाई जाती है। इसे अनुप्रस्थिका एवं उत्थापन समन्वय भी कहा जाता है।

नागर शैली

नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं।

ये मंदिर उँचाई में आठ भागों में बाँटे गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश)।

इस शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया।

नागर शैली की विशेषताएँ

पूरी उत्तर भारत में पाई जाने वाली नागर शैली के मंदिरों की मुख्य विशेषता उसकी स्वास्तिकार योजना तथा वक्रीय शिकारा थे। यद्यपि इनमें कुछ क्षेत्रीय विशेषताएं देखने को मिलती हैं, परंतु मूल योजना में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता था।

नागर शैली के मंदिर

उङीसा के मंदिर

नागर की सभी क्षेत्रीय शैलियों में उङीसा की शैली सबसे प्रमुख है। इसे नागर शैली का सबसे शुद्ध रूप माना जाता है। भुवनेश्वर का 8 वीं शताब्दी में बना परशुरामेश्वर मंदिर वास्तुकला में गुप्त काल के बाद आई प्रगतियों को दर्शाता है। 9वीं शताब्दी का वहीं पर बना मुक्तेश्वर मंदिर उङीसा की नागर शैली के परिपक्व रूप को दर्शाता है। कालांतर में उङीसा के नागर मंदिरों ने अपना एक विशेष स्वरूप धारण कर लिया। भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर (1100ई.) उङीसा शैली की परिपक्वता को दर्शाता है। शिकारों की लंबाई में वृद्धि के द्वारा मंदिर की भव्यता को बढाया गया। इस शैली पर बने दूसरे किसी मंदिर में भी (12 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बना पुरी का जगन्नाथ मंदिर) यह भव्यता देखने को नहीं मिलती, परंतु नरसिंह प्रथम (ई.पू. 1238-64) के शासनकाल में बना कोणार्क का सूर्य मंदिर अपनी योजना तथा बारीकियों के कारण अपवाद है। इसके खंडहरों की भव्यता भी इस बात का सबूत है कि यह उङीसा के भवन निर्माण कला का शीर्ष बिन्दु था।

मध्य भारत के मंदिर

मध्य भारत में नागर शैली के एक दूसरे रूप का विकास हुआ। यह शैली मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिरों में अपनी परिपक्वता पर पहुँची। इन मंदिरों का निर्माण 950-1050 ई.पू. के बीच जीजा-भुक्ति के चंदेलों ने करवाया था। खजुराहो के प्रमुख मंदिरों में कंदरिया महादेव मंदिर देवी, जगदंबा मंदिर, दूलादेव, पार्श्वनाथ, लक्ष्मण तथा विश्वनाथ मंदिर हैं। कंदरिया महादेव मंदिर मध्य भारत में वास्तुकला के शीर्ष बिन्दु को दर्शाता है। इसके गहरे भूगृह तथा दोहर शिकारे के कारण इसकी ऊंचाई बहुत अधिक लगती है। पुष्पीय तथा मानवीय सजावट के कारण इसकी सुन्दरता और भी बढ गयी है।

पश्चिम भारत के मंदिर

अन्हिलवाङा के सोलंकी शासकों के समय नागर शैली का पश्चिम भारतीय स्वरूप उभरा। इस शैली के शासकों के नाम पर सोलंकी शैली कहते हैं। पश्चिम भारत के अनेक मंदिरों में से माउंट आबू के दिलवाङा मंदिर इस शैली के शीर्ष बिन्दु हैं। 1031ई. में विमल द्वारा बनवाए गए तथा 1230ई. में तेजपाल द्वारा बनवाए गए मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन मंदिरों में राजस्थान के सफेद संगमरमर का काफी खूबसूरती के साथ प्रयोग किया गया है। सिद्धराज (ई.पू. 1093-1143) में निर्मित रुद्रमल मंदिर अन्य महत्त्वपूर्ण उदाहरणों में से है।

मालवा तथा खानदेश के मंदिर

मालवा तथा खानदेश में परमारों के अधीन नागर शैली के एक और रूप ने जन्म लिया जिस कारण इसे परमार शैली भी कहा जाता है। इस शैली का सबसे अच्छा उदाहरण उदयपुर (मध्य प्रदेश) में परमार राजा उदयादित्य (ई.पू. 1059-1080) के द्वारा बनवाया गया। नीलकंठेश्वर मंदिर है जिसे उदयेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसके शिकारों की सजावट के लिये चार पतली पट्टियों का प्रयोग किया गया है जो आधार से शीर्ष तक जाती हैं। परमार शैली का दूसरा महत्त्वपूर्ण उदाहरण अम्बरनाथ मंदिर (थाने, महाराष्ट्र में) है।

इन सभी मंदिरों के अलावा गुजरात का सोमनाथ का मंदिर भी नागर शैली का प्रमुख उदाहरण है।

References :
1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी

Related Articles

error: Content is protected !!