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फ्रांस की क्रांति की प्रमुख घटनाएं

फ्रांस की क्रांति की प्रमुख घटनाएं

फ्रांस की क्रांति की प्रमुख घटनाएं (Major events of the French Revolution)

14 जुलाई, 1789 ई. को क्रांति का प्रारंभ हो चुका था। फ्रांस का सम्राट तृतीय सदन को नेशनल असेम्बली के रूप में स्वीकार कर चुका था।

पेरिस कम्यून की स्थापना

पेरिस से निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को पेरिस का शासन सौंप दिया गया। स्वयं सेवकों की भर्ती करके नेशनल गार्ड का गठन किया गया ताकि पेरिस की सुरक्षा की जा सके। 17 जुलाई को राजा लुई सोलहवां पेरिस आया। बदले हुए परिदृश्य में राजा ने बेले को पेरिस का मेयर और लफायते को नेशनल गार्ड का सेनापति स्वीकार कर लिया। मेयर बेले ने कहा, आज पेरिस की जनता ने राजा को जीत लिया है।

राजपरिवार को पेरिस लाना

ऐसी सूचना मिली थी कि फ्रांस का राजा सेना संगठित करने में फ्रांस के धन का अपव्यय कर रहा है। यह सूचना निर्धनता से जूझ रहे फ्रांस के लोगों को भङकाने वाली थी। अतः पेरिस की 11 हजार महिलाओं का जुलूस, जिनके साथ क्रांति के सिपाही थे वर्साय गए। रातभर राजा के महल नारे लगाते रहे। 6 अक्टूबर को लुई सोलहवें को सपरिवार पेरिस लाया गया। राजा असहाय था। सेना क्रांति के साथ हो गयी। कर वसूली बंद हो गयी। कुलीन वर्ग के लोग भयभीत हो फ्रांस छोङने लगे। सामंत लूटे जाने लगे। राजसत्ता नेशनल असेम्बली के हाथ में आ गयी थी।

नेशनल असेम्बली की उपलब्धियां

  1. 4 अगस्त, 1789 ई. को सामंत प्रथा का अंत और असमानता समाप्ति की घोषणा की गयी।
  2. स्वतंत्रता, समानता, सुरक्षा, दमन का विरोध आदि नागरिक अधिकार संविधान में सम्मिलित किए जाने की घोषणा की गयी।
  3. चर्च की संपत्ति का अधिग्रहण कर पादरियों के लिये विधान बनाया गया। उन्हें वेतन देना प्रारंभ किया गया। फ्रांस में चर्च का वर्चस्व समाप्त हुआ।
  4. फ्रांस में सैनिक, असैनिक, न्यायालय प्रशासन एवं प्रांतीय प्रशासन हेतु नवीन व्यवस्था की गयी।
  5. आर्थिक समस्याओं का समाधान करने का प्रयत्न किया गया। चर्च की संपत्ति भूमिहीनों में बांट दी गयी। चुंगी की समान दरें लागू की गयी। औद्योगिक विशेषाधिकार प्रथा को खत्म किया। सामंत प्रथा खत्म की गयी। कृषकों को अनेक सुविधायें दी गयी। वस्तुतः असेम्बली कोई विशेष सुविधा नहीं दे पाई थी।
  6. 1 अक्टूबर, 1791 ई. को नेशनल असेम्बली द्वारा नवीन संविधान पारित किया गया, जिसमें एक सदनीय व्यवस्थापिका में 745 सदस्यों की व्यवस्था की गयी। आयकर दाता को मताधिकार दिया गया। यह सीमित राजतंत्रात्मक संविधान था जिसमें जन इच्छा को सर्वोच्च और शक्ति पृथक्करण सिद्धांत को अपनाया गया। राजा कार्यपालिका का सर्वोच्च था।

लुई सोलहवें का फ्रांस छोङने का प्रयत्न

घोषित संविधान में राजा की स्थिति अत्यन्त कमजोर राष्ट्राध्यक्ष की थी, अतः वह अपमानित समझते हुए, वेष बदलकर फ्रांस से भागने का प्रयत्न करने लगा लेकिन 20 जून, 1791 ई. को अत्यधिक अपमानजनक हालत में पकङा गया। आस्ट्रिया के आक्रमण के भय के कारण गणतंत्र का प्रस्ताव स्वीकृत न हो सका। 14 सितंबर को राजा के हस्ताक्षर करवाकर सीमित राजतंत्र स्वीकृत हुआ। राजा को क्षमा कर दिया गया। फ्रांस में जेकोबिन और जिरोंदिस्त दोनों दल गणतंत्रवादी थे। प्रथम दल हिंसा में विश्वास करता था, दूसरा चाहता था कि ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो कि राजा स्वयं ही पद त्याग दे।

फ्रांस की पराजय

1792 ई. में विदेशी सेनायें फ्रांस की सीमा पर एकत्र होने लगी। 20 अप्रैल, 1792 ई. को फ्रांस ने आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। अनेक कारणों से फ्रांस की सेनायें परास्त हुई। राजवंश और सेनापतियों को पराजय का कारण माना गया। फ्रांस के राजपरिवार पर पेरिस की भीङ ने आक्रमण कर दिया। राजा ने सभा भवन में शरण ली। अगले दिन राजा को पदमुक्त कर दिया गया। फ्रांस में राजवंश समाप्त हो गया। कार्यपालिका भंग हो गयी।

अस्थायी सरकार बनाई गयी। जिसके प्रमुख दांतो ने विशेषाधिकार प्राप्त कर विरोधियों को मौत के घाट उतारना प्रारंभ किया। नेशनल कन्वेन्शन में अपने दल के बहुमत हेतु और राजा के समर्थकों को नष्ट करने की नीति दांतो द्वारा अपनाई गयी। क्रांति का प्रथम चरण नेशनल असेम्बली के पतन के साथ ही पूर्ण हुआ।

नेशनल कन्वेंशन की स्थापना

20 सितंबर, 1792 ई. को नेशनल कन्वेंशन बनी यह 21 वर्ष की आयु के वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गयी जनतांत्रिक संस्था थी। इसमें 745 सदस्य थे। 21 सितंबर को गणतंत्र का प्रस्ताव रखा गया। 11 जनवरी, 1793 ई. को राजा पर मुकदमा चलाकर उसे मृत्यु दंड दिये जाने का प्रस्ताव पारित होते ही फ्रांस की क्रांति पूर्ण हो गयी। नेशनल कन्वेंशन के शासन के दौरान फ्रांस में आंतरिक विद्रोह फैल गए। विदेशी आक्रमणों का भय व्याप्त था। अतः आतंक का शासन स्थापित हुआ।

आतंक का शासन

समस्याओं के समाधान हेतु जेकोबिन दल ने आंतरिक क्षेत्र में आतंक की नीति अपनाई ताकि विदेशी आक्रमणों का सामना किया जा सके। विरोध करने वालों को गिलोटिन पर चढाया जाने लगा। गिलोटिन मृत्युदंड हेतु प्रयुक्त यंत्र था। यूरोपीय देश फ्रांस के विरुद्ध संगठित हो रहे थे। सतर्कता समितियां बनाई गई, जो विरोधियों की ढूंढ कर मौत के घाट उतारती थी। इस आतंककारी व्यवस्था के बहुत ही विनाशकारी परिणाम हुए। 1791 से 1793 ई. तक का शासन फ्रांस में अनेक उतार चढावों का काल रहा। 1795 ई. में नेशनल कन्वेंशन का शासन व संविधान समाप्त हुआ।

डाईरेक्टरी शासन

1795 ई. से 1799 ई. तक डाईरेक्टरी का शासन अथवा निदेशक मंडल का शासन फ्रांस के गणतंत्र के पतन का काल था। इस दौरान फ्रांस की क्रांति की भावना ही समाप्त हो गयी। सैनिकवाद का उत्कर्ष हुआ। ये डाइरेक्टर सामान्य प्रतिभा के व्यक्ति थे, जिनके लिये राज्य के हित से अधिक महत्त्वपूर्ण उनके व्यक्तिगत हित थे। इस दौरान फ्रांस की सरकार की वित्तीय कठिनाइयों में वृद्धि हुई। विदेशी शक्तियों से युद्धों में अवश्य फ्रांस को सफलता मिली लेकिन फ्रांस में सैनिकवाद का प्रभाव स्थापित हो गया जिसकी परिणति नेपोलियन बोनापार्ट के निरंकुश शासन की पुनः स्थापना में हुई।

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