इतिहासराजस्थान का इतिहास

मेवाङ का संयुक्त राजस्थान में विलय कब हुआ

मेवाङ का संयुक्त राजस्थान में विलय – संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के तीन दिन बाद संयुक्त राजस्थान में मेवाङ विलय पर वार्ता आरंभ हुई। 23 मार्च, 1948 ई. को सर रामाममूर्ति स्वयं दिल्ली गये और मेवाङ विलय के प्रश्न पर भारत सरकार से बातचीत की।

सर रामामूर्ति ने भारत सरकार को महाराणा की प्रमुख तीन माँगों से भी अवगत कराया जो इस प्रकार हैं-

  • पहली तो यह थी कि महाराणा को संयुक्त राजस्थान का वंशानुगत राजप्रमुख बनाया जाय,
  • दूसरी यह कि उन्हें 20 लाख रुपया वार्षिक प्रीवी-पर्स दिया जाय और
  • तीसरी यह कि उदयपुर को संयुक्त राजस्थान की राजधानी बनाया जाये।

भारत सरकार ने महाराणा की माँगों के संबंध में कोटा, डूँगरपुर और झालावाङ के शासकों से विचार-विमर्श कर अंत में मेवाङ को संयुक्त राजस्थान में विलय करने का निश्चय किया। रियासती विभागों ने यह नीति निश्चित कर ली थी कि किसी भी रियासत के शासक की 10 लाख रुपये वार्षिक से अधिक प्रीवी-पर्स नहीं दिया जायेगा।

मेवाङ का संयुक्त राजस्थान में विलय

किन्तु महाराणा की 20 लाख रुपये वार्षिक की माँग को पूरा करने के लिये रियासती विभाग ने हल ढूँढ निकाला। रियासती विभाग ने निर्णय लिया कि महाराणा को 10 लाख रुपये वार्षिक प्रीवी-पर्स, 5 लाख रुपये वार्षिक राजप्रमुख के पद का भत्ता और शेष 5 लाख रुपये वार्षिक मेवाङ के राजवंश की परंपरा के अनुसार धार्मिक कृत्यों में खर्च के लिये दिया जायेगा। महाराणा को संयुक्त राजस्थान का आजीवन राजप्रमुख बनाना, स्वीकार कर लिया, किन्तु यह पद उन्हें वंशानुगत नहीं दिया गया। उदयपुर को संयुक्त राजस्थान की राजधानी बनाया जायेगा, परंतु कोटा राज्य का ऐतिहासिक महत्त्व कायम रखने के लिये ठोस कदम उठाये जायेंगे। उस समय संघ ने विलय होने वाली किसी रियासत के शासक को इतनी रियायतें नहीं दी थी। सभी शर्तें तय होने के बाद 11 अप्रैल, 1948 ई. को महाराणा ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।
मेवाङ का संयुक्त राजस्थान में विलय

महाराणा द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद रियासती विभाग ने मेवाङ प्रजा मंडल के प्रमुख नेता श्री माणिक्यलाल वर्मा को राज्य का प्रधानमंत्री मनोनीत किया और यह भी निश्चय किया कि संयुक्त राजस्थान के निर्माण के ऐतिहासिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू उक्त राज्य का उद्घाटन करेंगे। तदनुसार 18 अप्रैल, 1948 ई. को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राजस्थान का विधिवत उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री माणिक्यलाल वर्मा ने काफी हिचकिचाहट के बाद स्वीकृति दी। मंत्रिमंडल में सर्वश्री गोकुललाल असावा (शाहपुरा), प्रेमनारायण माथुर, भूरेलाल बया और मोहनलाल सुखाङिया (उदयपुर), भोगीलाल पांड्या (डूँगरपुर), अभिन्न हरि (कोटा) और बृजसुन्दर शर्मा (बूँदी) थे। इस प्रकार प्रथम एकीकृत राजस्थान का निर्माण तथा राजस्थान के एकीकरण का तीसरा चरण भी पूरा हो गया।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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