1857 की-क्रांतिआधुनिक भारतइतिहास

1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण

1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण

1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण (1857 kee kraanti ka taatkaalik kaaran)

भारतीयों में यह विश्वास दृढ होता जा रहा था कि अंग्रेज भारतीय धर्म,रीति-रिवाजों व संस्कारों को नष्ट करना चाहते हैं। ठीक ऐसे वातावरण में चरबी वाले कातूस की घटना हुई। ब्रिटेन में एक एनफील्ड रायफल का आविष्कारर हुआ था। इस रायफल में विशेष प्रकार का कारतूस प्रयोग में लाया जाता था, जिसको चिकना करने हेतु गाय व सूअर की चर्बी का प्रयोग होता था। इस कारतूस को रायफल में डालने से पूर्व उसकी टोपी को मुँह से काटना पङता था। इस रायफल का प्रयोग भारत में आरंभ किया गया था।

1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण

दमदम शस्त्रागार में एक दिन एक खलासी ने ब्राह्मण सैनिक के लोटे से पानी पीना चाहा, लेकिन उस ब्राह्मण ने इसे अपने धर्म के विरुद्ध मानकर इंकार कर दिया। इस पर खलासी ने व्यंग्य किया कि उसका धर्म तो नये कारतूसों के प्रयोग से समाप्त हो जायेगा, क्योंकि उस पर गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई है। खलासी के व्यंग्य से सत्य खुल गया और अधिक सैनिक भङक गये।

26जनवरी, 1857 को बरहामपुर के सैनिकों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया। बाद में सैनिकों ने आज्ञा का पालन कर लिया, लेकिन केनिंग ने उस सैनिक टुकङी को भंग कर दिया। इससे अन्य सैनिक टुकङी में असंतोष फैल गया। 29 मार्च, 1857 को मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने विद्रोह का झंडा खङा कर दिया तथा अंग्रेज अधिकारियों पर गोली चला दी। इससे एक अंग्रेज अधिकारी की मौत हो गयी। तथा दो घायल हो गये। मंगल पांडे को बंदी बनाकर उसे मौत की सजा दे दी गई। 2मई, 1857 को लखनऊ की अवध रेजीमेंट ने भी इन कारतूसों को प्रयोग करने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप अवध रेजीमेंट को भंग कर दिया गया।

चरबी वाले कारतूसों की खबर मेरठ भी पहुँच गई। वहाँ का अंग्रेज सैनिक अधिकारी कारमाइकेल स्मिथ अत्यंत ही अहमी थी। अतः 24अप्रैल,1857 को वहाँ घुङसवारों की एक सैनिक टुकङी ने जब इन कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया तो इंकार करेने वालों को 5 वर्ष की कारावास की सजा सुना दी तथा 9 मई उन्हें अपराधियों के कपङे पहनाकर बेङियाँ लगा दी।इतना ही नहीं, कारमाइकेल ने अन्य सैनिकों को अपने साथियों के इस अपमान का बदला लेने के लिए चुनौती दे दी।

फिर क्या था, दूसरे दिन 10 मई, 1857 को शाम के 5 बजे मेरठ की एक पैदल सैनिक टुकङी ने विद्रोह कर दिया और बाद में यह विद्रोह घुङसवारों की टुकङी में फैल गया। कारमाइकेल को अपनी जान बचाकर भागना पङा। विद्रोही जेल में घुसे और कैदियों को मुक्त कर दिया। बंदी सैनिकों की बेङियाँ काटकर उन्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये और जहाँ कहीं अंग्रेज मिले, उन्हें मौत के घाट उतार दिया। तत्पश्चात् विद्रोही सैनिक दिल्ली की ओर चल पङे।

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