इतिहासप्राचीन भारतराजपूत काल

राजपूतों का धार्मिक जीवन कैसा था

राजपूत काल (Rajput period)में हिन्दू (ब्राह्मण) तथा जैन धर्म(Jainism) देश में अत्यधिक लोकप्रिय थे। बौद्ध धर्म(Buddhism) का अपेक्षाकृत कम प्रचलन था। और वह अपने पतन की अंतिम अवस्था में पहुँच गया था। हिन्दू धर्म के अंतर्गत भक्तिमार्ग एवं अवतारवाद का व्यापक प्रचलन था।

राजपूतों की सामाजिक दशा कैसी थी?

जैन धर्म का पतन क्यों हुआ?

बौद्ध धर्म से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर

विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य आदि देवी-देवताओं की उपासना होती थी। इनकी पूजा में मंदिर तथा मूर्तियाँ बनाई जाती थी। भक्ति संप्रदाय के आचार्यों में रामानुजाचार्य एवं माधवाचार्य के नाम उल्लेखनीय हैं। शंकराचार्य ने अद्वैतवाद का प्रचार किया, जिसके अनुसार ब्रह्म ही एकमात्र सत्ता है, संसार मिथ्या है तथा आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। इसके विपरीत रामानुज ने विशिष्टाद्वैत का प्रचार किया, जिसके अनुसार ब्रह्म एकमात्र सत्ता होते हुए भी सगुण है और वह चित्त और अचित्त (जीव और प्रकृति) शक्तियों से युक्त है। उन्होंने ईश्वर की प्राप्ति के लिये भक्ति को आवश्यक बताया। हिन्दू धर्म में बहुदेववाद की प्रतिष्ठा थी तथा अनेक देवी-देवताओं की उपासना की जाती थी। वैदिक यज्ञ क्रमशः महत्वहीन हो रहे थे तथा पौराणिक धर्म का ही बोलबाला था। इस समय शाक्त संप्रदाय बहुत अधिक लोकप्रिय हो गया था।

भक्ति आंदोलन क्या था, इसके प्रमुख कारण तथा संत।

शाक्त संप्रदाय का अर्थ

विविध प्रकार के यज्ञ

हिन्दू धर्म की उन्नति के साथ ही साथ राजपूताना तथा पश्चिमी और दक्षिणी भारत में जैन धर्म भी उन्नति कर रहा था। राजपूताना के गुर्जर-प्रतिहार तथा दक्षिणी-पश्चिमी भारत के चौलुक्य नरेशों ने इस धर्म की उन्नति में योगदान दिया।

प्रतिहार नरेश भोज के समय में एक जैन मंदिर का निर्माण करवाया गया था। आबूपर्वत पर भी जैन मंदिर का निर्माण हुआ। चंदेल शासकों के समय में खजुराहो में जैन तीर्थङ्करों के पांच मंदिरों का निर्माण कराया गया। गुजरात के चौलुक्य (सोलंकी) शासकों ने तो इसे राजधर्म बनाया। इस वंश के शासक कुमारपाल के समय में जैन धर्म की महती उन्नति हुई। उसने प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचंद्र को राजकीय संरक्षण प्रदान किया था।

राजपूत युग में बौद्ध धर्म अवनति पर था। इस काल तक आते-आते इस धर्म का नैतिक स्वरूप समाप्त हो चुका था तथा उसका स्वरूप तांत्रिक बन गया। इसके उपासक अनेक प्रकार के मंत्र-तंत्र, जादू-टोने आदि में विश्वास करने लगे। वज्रयान का उदय हुआ,जिसके उपासक नैतिक दृष्टि से भ्रष्ट होते थे। इस समय बौद्ध संघों में अनेक स्रियों का भी प्रवेश हो गया, जिससे भिक्षुओं का चारित्रिक पतन प्रारंभ हुआ । इन सब कारणों के अतिरिक्त प्रसिद्ध हिन्दू दार्शनिकों – शंकराचार्य, कुमारिलभट्ट आदि ने बौद्ध धर्म पर कङा प्रहार किया, जिसके परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म अत्यधिक लोगप्रिय हो गया। परंतु इस समय महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार मान कर हिन्दू धर्म में उन्हें प्रमुख स्थान दे दिया गया था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-  वी.डी.महाजन 

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