प्राचीन भारतइतिहासवैदिक काल

विविध प्रकार के यज्ञ

यज्ञ संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है-आहुति, चढावा।

यह हिन्दू धर्म में प्राचीन भारत के आरंभिक ग्रंथों वेदों में निर्धारित अनुष्ठानों पर आधारित उपासना पद्दति है।

राजनैतिक तथा गृहस्थ दोनों स्थितियों में ही यज्ञ को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।

 राजनैतिक क्षेत्र में किये जाने वाले प्रमुख यज्ञ – 

 उत्तरवैदिक काल में यज्ञ की प्रतिष्ठा बहुत उच्च स्थान तक पहुँच गई थी।

  • अश्वमेघ यज्ञ- 

ह यज्ञ राज्य विस्तार हेतु किया जाता था।

इसमें 4 रानियाँ,4 रत्निन/वीर(अधिकारी), 400 सेवक । इन सबके अलावा 1हाथी, 1 श्वेत बैल,  1 श्वेत घोङा, 1श्वेत छत्र आवश्यक होता था।

3दिन तक यह यज्ञ चलता था।

साल भर बाद अभिषिक्त घोङे की यज्ञ में 600 बैलों (सांड) के साथ बलि दी जाती थी।

  • राजसूय यज्ञ-

राजा की प्रतिष्ठा एवं सम्मान बढाने हेतु आयोजित होता था।

1 वर्ष से अधिक समय तक चलता था।

17 नदियों का जल आवश्यक था। (जिसमें सरस्वती नदी का जल  प्रधान माना जाता था। )

12 अधिकारी , 1 रानी की उपस्थिती आवश्यक थी।

इस यज्ञ के दौरान अक्षक्रिडा (पासे का खेल),गोहरन(गाय को हांक कर लाना)  आदि खेलों में राजा को विजेता बनाया जाता था।

  • वाजपेय यज्ञ-

वाजपेय यज्ञ का उद्येश्य  राजा की शारीरिक और आत्मिक शक्ति में वृद्धि करना और उसे नवयौवन प्रदान करना था।

रथ धावन (रथों की दौङ) का आयोजन होता था। जिसमें राजा को विजेता बनाया जाता था।

इस यज्ञ को वैदिक काल का ओलंपिक भी कहा जाता है।

अधिकारियों की संख्या में बढोतरी (20) हो गई थी ।

गृहस्थ जीवन में किये जाने वाले यज्ञ –

पंच महायज्ञ हिन्दू धर्म  में बहुत ही महत्त्वपूर्ण बताये गए हैं। धर्मशास्त्रों ने भी हर गृहस्थ को प्रतिदिन पंच महायज्ञ करने के लिए कहा है। नियमित रूप से इन पंच यज्ञों को करने से सुख-समृद्धि बनी रहती है। इन महायज्ञों के करने से ही मनुष्य का जीवन, परिवार, समाज शुद्ध, सदाचारी और सुखी रहता है।

  • देवयज्ञ/ब्रह्म यज्ञ-

इस यज्ञ मेंअनुष्ठान करवाया जाता है।

  • पितृ यज्ञ-

पूर्वजों के प्रति श्राद्ध, तर्पण करना।

  • ऋषि यज्ञ-

वेदों का अध्ययन, दान देना।

  • भूत यज्ञ-

समस्त जीवों को बलि प्रदान करना यह बलि अग्न में न डालकर चारों दिशाओं में खुले में रखी जाती है। जैसे- पक्षियों के लिये अनाज, चीटियों के लिये अनाज।

  • नृ यज्ञ/अतिथि / मानव यज्ञ-

अतिथि सत्कार । गौतम धर्मसूत्र में कहा गया है कि- अतिथि न केवल आपके घर में भोजन करता है, बल्कि आपके पापों का भी भक्षण करता है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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