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प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल नेवासा

महाराष्ट्र प्रान्त के अहमदनगर जिले में गोदावरी की सहायक नदी प्रवरा के दक्षिणी किनारे पर यह पुरातात्विक स्थल स्थित है। इसका प्राचीन नाम ‘श्रीनिवास ’ मिलता है। 1954-55 ई. दकन कालेज, पूना के तत्वावधान में इस स्थान की खुदाई करवायी गयी थी। यहाँ से तीन हजार पुरानी सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है। इस संस्कृति के अवशेष लडमोद टीले की खुदाई से मिले है।

नेवासा की खुदाई के फलस्वरूप यहाँ पाषाण युग से लेकर एतिहासिक युग तक कि विभिन्न संस्कृतियों के साक्ष्य प्राप्त हुए है। इसके निर्माता ताँबे के साथ पत्थर के औजारों तथा हथियारों का प्रयोग करते थे। नेवासा से पाषाण-निर्मित ब्लेड, फ्लेक, स्क्रेपर आदि उपकरण मिलते है जिनका समय पूर्व पाषाण-काल का है। यहाँ से प्राप्त मृद्भाण्डों के ऊपर लाल रंग की पालिश मिलती है जिन्हें खूब पकाकर तैयार किया गया है। बर्तनों का निर्माण चाक पर किया गया है। कुछ बर्तनों में टोंटियाँ लगी हुई हैं। बर्तनों में कटोरे, घड़े, मनके, तसले, तश्तरी आदि प्राप्त हुई है। कुछ बर्तनों के ऊपर विशेष प्रकार के रेखाचित्र भी मिलते है। ताम्र-निर्मित उपकरणों में चाकू, कुल्हाड़ी, सुई, चूड़ी, मनकों आदि की गणना की जा सकती है। यहाँ से ताम्र-निर्मित मनकों का एक हार प्राप्त हुआ है जिसे एक बाल कंकाल के गले में पहनाया गया है। खुदाई में प्राप्त अवशेषों के आधार पर यहाँ के निवासियों की मृतक-संस्कार विधियों का भी पता चलता है। ज्ञात होता है कि यहाँ के लोग मृतकों को मकानों में ही दफनाते थे तथा उनके साथ बर्तन, आभूषण आदि भी रख देते थे। यह लोकोत्तर जीवन में उनके विश्वास का सूचक था।

ताम्रपाषाणिक संस्कृति का अन्त प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में हो गया। इसके बाद लगभग आठ शताब्दियों तक नेवासा का नगर वीरान रहा। ऐतिहासिक काल के आरम्भ में यहाँ पुनः बस्ती बसायी गयी। इस सांस्कृतिक स्तर से लौह
उपकरण, विभिन्न प्रकार के मृद्भाण्ड जैसे काले-लाल, काले-चमकीले(N.B.P.) आदि, मातादेवी की मृण्मूर्तियाँ, मणियों के मनके आदि मिले है। इसी स्तर से सातवाहन शासकों की मुद्रायें भी मिलती है। ज्ञात होता है कि इस समय मकान ईंटों के बनते थे, जिनकी नींव पत्थरों से भरी जाती थी।

ऐतिहासिक काल के अन्त में नेवासा से रोमन उत्पत्ति की वस्तुयें भी मिलने लगती है। इन सामग्रियाँ से भारत तथा रोम के बीच प्राचीन व्यापारिक सम्बन्धों की भी सूचना मिलती है। यहाँ से कुछ चक्रांकित बर्तन मिले है। इस प्रकार के बर्तनों का निर्माण रोम में होता था तथा बाद में इन्हें भारत में भी तैयार किया जाने लगा। इस प्रकार के पात्रों का उपयोग मुख्यतः मदिरा रखने के लिए किया जाता था जिसे भारत के लोग ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में रोम से आयात करते थे।

नेवासा की ऐतिहासिक संस्कृति का अन्त दूसरी शताब्दी ईस्वी में हुआ। इसके शताब्दियों बाद (14वीं शताब्दी में) यहाँ पुनः बस्ती बसाई गयी।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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