इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतवेंगी के चालुक्य

विजयादित्य द्वितीय वेंगी के चालुक्य वंश का शासक था

वेंगी के चालुक्य शासक विष्णुवर्धन चतुर्थ के बाद उसका पुत्र विजयादित्य द्वितीय (799-887ई.) राजा बना। उसने परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि ग्रहण की। वह अपने वंश के सर्वाधिक शक्तिशाली शासकों में से एक था। प्रारंभ में उसे कुछ असफलताओं का सामना करना पङा। उसका भाई सालुक्कि उसका साथ छोङकर राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय से जा मिला। जिसके परिणामस्वरूप गोविन्द तृतीय ने विजयादित्य को पराजित कर वेंगी के राजसिंहासन पर भीम को बैठा दिया। परंतु 814 ई. में गोविन्द की मृत्यु के बाद विजयादित्य ने भीम को गद्दी से उतार कर उसे पुनः अपने अधिकार में कर लिया।अपनी सफलता से उत्साहित होकर विजयादित्य ने एक सेना के साथ राष्ट्रकूट राज्य पर आक्रमण कर दिया। चालुक्य सेना राष्ट्रकूट राज्य को रौंदते हुये स्तंभनगर (गुजरात स्थित वर्तमान काम्बे) तक जा पहुँची। उसने इस नगर को लूटा तथा ध्वस्त कर दिया। इसका प्रमाण राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय के नौसारी ताम्रपत्र से भी मिलता है, जिसके अनुसार राष्ट्रकूट राजलक्ष्मी चालुक्य रूपी अथाह समुद्र में विलीन हो गयी थी तथा स्तंभनगर पूर्णतया नष्ट हो कर दिया गया था। राष्ट्रकूटों के साथ-साथ उसने दक्षिणी गंगों की शक्ति का विनाश किया। परंतु राष्ट्रकूटों ने शीघ्र ही अपनी स्थिति सुदृढ कर ली तथा अमोघवर्ष प्रथम ने चालुक्य सेना को राज्य के बाहर खदेङ दिया। पूर्वी चालुक्यों को पुनः अमोघवर्ष की अधीनता स्वीकार करनी पङी।

वातापी के चालुक्य शासकों का इतिहास

कल्याणी के चालुक्य शासकों का इतिहास

वेंगी का इतिहास

विजयादित्य शैव मतानुयायी था। बाद के लेखों में उसे 108 शैव मंदिरों के निर्माण का श्रेय प्रदान किया गया है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

India Old Days : Search

Search For IndiaOldDays only

  

Related Articles

error: Content is protected !!