इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतबादामी का चालुक्य वंश

बादामी के चालुक्य वंश का राजनैतिक इतिहास

चालुक्य वंश की उत्पत्ति – चालुक्य वंश की उत्पत्ति के विषय में काफी मतभेद मिलते हैं। विंसेन्ट स्मिथ चालुक्यों की उत्पत्ति मध्य एशिया की चप जाति से मानते हैं, जो गुर्जरों की एक शाखा थी।परंतु ऐसा मानने का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है। कुछ इतिहासकार उनका संबंध उत्तरापथ की चुलिक जाति से जोङते हैं, जो सोग्डियनों से संबंधित थी। चालुक्यों की उत्पत्ति-संबंधी विदेशी मत मान्य नहीं है। बादामी अभिलेख में इस वंश को हारिती-पुत्र तथा मानव्य गोत्रीय कहा गया है। कालांतर में चालुक्य शासक अपने को चंद्रवंशी क्षत्रिय कहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है, कि चालुक्य स्वदेशी क्षत्रिय ही थे।…अधिक जानकारी

चालुक्य वंश में कई वीर शासक हुये थे, जिनका विवरण निम्नलिखित है

पुलकेशिन प्रथम

बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक पुलकेशन प्रथम नामक व्यक्ति था। महाकूटअभिलेख में उसके पूर्व दो शासकों – जयसिंह तथा रणराग – के नाम मिलते हैं, परंतु उनके शासन काल के विषय में ज्यादा जानाकरी नहीं मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है, कि वे कदंब शासकों की अधीनता में बादामी में शासन करते थे। चालुक्य वंश के प्रारंभिक लेखों में तो जयसिंह की किसी भी उपलब्धि का उल्लेख नहीं है, किन्तु बाद के कुछ लेख इसका विवरण देते हैं। जगदेकमल्ल के दौलताबाद लेख के अनुसार जयसिंह ने कदंब वंश के ऐश्वर्य का अंत किया। कल्याणी के चालुक्यों के कैथोम लेख का कथन है, कि उसने राष्ट्रकूट शासक कृष्ण एवं उसके पुत्र इन्द्र को पराजित किया था।

बादामी के चालुक्य वंश की उत्पत्ति तथा चालुक्य वंश के इतिहास के साधन

राष्ट्रकूट शासकों का इतिहास में योगदान…अधिक जानकारी

कीर्तिवर्मन प्रथम

बादामी के चालुक्य वंश के संस्थापक पुलकेशिन प्रथम के दो पुत्र थे – कीर्त्तिवर्मन् प्रथम तथा मंगलेश। पुलकेशिन प्रथम की मृत्यु के बाद कीर्त्तिवर्मन् प्रथम शासक बना जो 566-598 ईस्वी तक शासक रहा। उसने अपने पौतृक साम्राज्य को और अधिक विस्तृत किया। उसके पुत्र पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख से पता चलता है, कि उसने बनवासी के कदंब, कोंकण के मौर्य तथा बल्लरी-कर्नूल क्षेत्र के नलवंशी शासकों को पराजित कर उनके राज्यों को जीत लिया था। इस लेख के अनुसार वह नलों, मौर्यों तथा कदंबों के लिये कालरात्रि के समान था। वह परस्त्री से विमुख हो गया था तथापि शत्रु की राजलक्ष्मी ने उसे आकर्षित किया…अधिक जानकारी

मंगलेश

बादामी के चालुक्य वंश के शासक कीर्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु के समय उसका पुत्र पुलकेशिन द्वितीय अवयस्क था। अतः उसके छोटे भाई मंगलेश ने पुलकेशिन के संरक्षक के रूप में चालुक्य शासन की बागडोर संभाली। वह भी एक महत्वाकांक्षी शासक था, जिसने कीर्तिवर्मन् की विस्तारवादी नीति को जारी रखा। मंगलेश के नेनूर दानपत्र तथा महाकूट स्तंभलेख से पता चलता है, कि उसने कलचुरि शासक बुद्धराज पर आक्रमण किया। बुद्धराज गुजरात, खानदेश तथा मालवा में शासन करता था। कलचुरि नरेश युद्ध में पराजित हुआ। महाकूट लेख के अनुसार मंगलेश ने उत्तर भारत की विजय की इच्छा से सर्वप्रथम बुद्ध को पराजित कर उसकी संपूर्ण संपत्ति पर अधिकार कर लिया। उसके बाद विजय का धर्मस्तंभ स्थापित करने के लिये उसने अपनी माता से आज्ञा ली तथा मुकुटेश्वरनाथ के मंदिर में दान दिये। यहाँ बुद्ध से तात्पर्य कलचुरि नरेश बुद्धराज से ही है…अधिक जानकारी

पुलकेशिन द्वितीय

चालुक्य वंश के शासकों में पुलकेशिन द्वितीय सर्वाधिक योग्य तथा शक्तिशाली शासक था। अपने चाचा मंगलेश तथा उसके समर्थकों की हत्या कर वह 609-10 ई. में वातापी के चालुक्य वंश की गद्दी पर बैठा। पुलकेशिन द्वितीय और मंगलेश के बीच होने वाले गृहयुद्ध के परिणामस्वरूप चालुक्य राज्य में चारों ओर अराजकता और अव्यवस्था फैल गयी। जिस समय पुलकेशिन द्वितीय राजा बना उसके चारों तरफ संकट के बादल मंडरा रहे थे…अधिक जानकारी

विक्रमादित्य प्रथम

विक्रमादित्य प्रथम पुलकेशिन द्वितीय का पुत्र था, तथा पिता की मृत्यु के बाद राज्य का वास्तविक उत्तराधिकारी था। पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु के बाद बादामी सहित कुछ अन्य दक्षिणी प्रान्तों की कमान पल्लवों के हाथों में रही। इस दौरान 642 से 655 ई. तक चालुक्यों की राजगद्दी ख़ाली रही। 655 में विक्रमादित्य प्रथम राजगद्दी पर विराजित होने में कामयाब हुआ। उसने बादामी को पुन: हासिल किया और शत्रुओं द्वारा विजित कई अन्य क्षेत्रों को भी पुन: अपने साम्राज्य में जोड़ा। उसने 681 ई. तक शासन किया था…अधिक जानकारी

विनयादित्य

बादामी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य के बाद उसका पुत्र विनयादित्य शासक बना। उसने महाराजाधिराज, परमेश्वर, भट्टारक, राजाश्रय तथा युद्धमल्ल जैसी उच्च सम्मान-परक उपाधियाँ धारण की थी। उसके कई लेख मिलते हैं। इनसे सूचित होता है, कि उसके राज्य में शांति एवं समृद्धि थी तथा वह प्रशासन की विविध समस्याओं में व्यक्तिगत रुचि लेता था…अधिक जानकारी

विजयादित्य

बादामी के चालुक्य शासक विनयादित्य का पुत्र विजयादित्य अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बना। वह अपने पिता के काल में ही कई युद्धों में भाग ले चुका था। रायगढ लेख में कहा गया है, कि उसने अपने शत्रुओं को युद्ध में पराजित किया तथा अपने पिता को गंगा-यमुना की मूर्तियां, पालिध्वज, ढक्का (ढोल),पंचमहाशब्द, पद्मरागमणि तथा मस्त हाथी भेंट में दिये थे। उसके संबंध में एक अन्य वृत्तांत यह मिलता है, कि एक बार शत्रुओं ने उसे पकङ लिया तथा अपने साथ उठा ले गये। किन्तु वत्सराज के समान बिना किसी बाहरी सहायता के वह शत्रुओं के चंगुल से भाग निकला तथा उसने अपने बाहुबल से जनता के बीच फैली हुई अराजकता का अंत कर दिया। किन्तु यह निश्चित रूप से बता सकना कठिन है,कि उसके शत्रु कौन थे। इस कथानक से यह स्पष्ट होता है,कि विजयादित्य ने अपने साम्राज्य में शांति और व्यवस्था स्थापित की थी। उसका दीर्घकालीन शासन शांतिपूर्ण तथा समृद्धिशाली रहा …अधिक जानकारी

विक्रमादित्य द्वितीय

विक्रमादित्य(733-747ई.) चालुक्य शासक विजयादित्य का पुत्र था। विक्रमादित्य द्वितीय के शासन के प्रथम वर्ष में अरबों के दक्षिण भारत पर आक्रमण हुए।इस आक्रमण का उल्लेख चालुक्य लेखों में तो नहीं मिलता, किन्तु लाट प्रदेश के विक्रमादित्य के सामंत पुलकेशिन के नौसारी दानपत्र (739 ई.) में इससे संबंधित सूचनायें मिलती हैं। इसके अनुसार सैन्धव, कच्चेल, सौराष्ट्र, चावोटक, मौर्य तथा गुर्जर राजाओं को ध्वस्त करने वाले अरबों ने दक्षिण विजय की इच्छा से नौसारी पर अधिकार करने का प्रयास किया, किन्तु पुलकेशिन ने न केवल उन्हें पराजित कर गुर्जर देश से बाहर कर भगाया अपितु उनके कुछ प्रदेशों को जीतकर चालुक्य राज्य में मिला लिया। संभवतः अरबों के विरुद्ध इस अभियान में विक्रमादित्य ने अपने सामंत की भरपूर सहायता की होगी। इस प्रकार उसने बङी बुद्धिमानी के साथ अपनी उत्तरी सीमाओं को सुरक्षित किया। उस पर प्रसन्न होकर विक्रमादित्य ने उसे अवनिजनाश्रय की उपाधि से विभूषित किया…अधिक जानकारी

कीर्त्तिवर्मन द्वितीय

बादामी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय का पुत्र और उत्तराधिकारी कीर्त्तिवर्मन द्वितीय हुआ।अपने पिता के समय में ही वह पल्लवों के विरुद्ध सफलता प्राप्त कर चुका था, जिससे प्रसन्न होकर विक्रमादित्य ने उसे युवराज बनाया था। वह बादामी के चालुक्य वश का अंतिम शासक था। उसके काल में चालुक्य-शक्ति निर्बल पङती गयी। …अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-  वी.डी.महाजन 

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