इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतबादामी का चालुक्य वंश

बादामी (वातापी) का चालुक्य वंश के इतिहास की जानकारी के साधन

बादामी (वातापी) के चालुक्य वंश के इतिहास के प्रामाणिक स्रोत अभिलेख हैं। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चालुक्य शासक पुलकेशिन् द्वितीय का ऐहोल अभिलेख है। इसमें शक-संवत् 556 अर्थात् 634 ईस्वी की तिथि अंकित है।

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एहोल, आधुनिक कर्नाटक प्रांत के बीजापुर जिले में स्थित है। यह लेख एक प्रशस्ति के रूप में है तथा इसकी भाषा संस्कृत है। लिपि दक्षिणी ब्राह्मी है। इस लेख की रचना रविकीर्त्ति ने की थी।

इस अभिलेख में पुलकेशिन् द्वितीय की उपलब्धियों का वर्णन हुआ है। इसके साथ ही साथ इससे हम पहले का चालुक्य इतिहास तथा पुलकेशिन के समकालीन लाट, मालवा, गुर्जर आदि देशों के शासकों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। हर्षवर्धन के साथ पुलकेशिन के युद्ध पर भी इस अभिलेख द्वारा प्रकाश डाला गया है। साहित्य की दृष्टि से भी इसका महत्त्व है। इसकी रचना कालिदास तथा भारवि की काव्य शैली पर की गयी है। प्रशस्ति के अंत में लेखक ने यह दावा किया है, कि उसने इसे लिखकर कालिदास तथा भारवि के समान ही यश प्राप्त किया है।

कालिदास किस शासक का दरबारी विद्वान था?

ऐहोल के अलावा कुछ अन्य लेख भी मिलते हैं, जो चालुक्यों के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। इनका विवरण निम्नलिखित है-

बादामी के शिलालेख

बादामी के किले में एक शिलाखंड के ऊपर खुदा हुआ शिलालेख है। इस शिलालेख की खोज 1941 ईस्वी में हुई थी। इसमें शक संवत् 465 अर्थात् 543 ईस्वी की तिथि अंकित है। इसमें बल्लभेश्वर नामक चालुक्य शासक का उल्लेख मिलता है,जिसने बादामी के किले का निर्माण करवाया था तथा अश्वमेघ आदि यज्ञ किये थे। इसकी पहचान पुलकेशिन् प्रथम से की जाती है।

विविध प्रकार के यज्ञ

महाकूट का लेख

यह स्थान बीजापुर जिले में स्थित है। इस लेख की तिथि 602 ईस्वी है। इसमें चालुक्य वंश की प्रशंसा की गयी है। तथा उसके शासकों की बुद्धि, बल, साहस तथा दानशीलता का उल्लेख हुआ है। कीर्तिवर्मन् प्रथम की विजयों का विवरण इससे ज्ञात होता है।

हैदराबाद दानपत्राभिलेख

यह शक संवत् 534 अर्थात् 612 ईस्वी का है। यह तिथि पुलकेशिन् द्वितीय के तीसरे वर्ष की है। इस लेख से पता चलता है, कि उसने युद्ध में सैकङों योद्धाओं को जीता तथा परमेश्वर की उपाधि धारण की थी।

शक संवत् का प्रारंभ कब से हुआ?

इन सभी लेखों के अलावा भी कर्नूल, तलमंचि,नौसारी, गढवाल, रायगढ, पट्टडकल आदि स्थानों से बहुसंख्यक ताम्रपत्र एवं लेख प्राप्त हुए हैं। इनसे चालुक्यों का कांची के पल्लवों के साथ संघर्ष तथा पुलकेशिन द्वितीय के बाद के शासकों की उपलब्धियों का विवरण प्राप्त होता है।

विदेशी विवरण

लेखों के साथ-साथ चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा ईरानी इतिहासकार, ताबरी के विवरणों से भी चालुक्यवंश के इतिहास पर प्रकाश पङता है। ह्वेनसांग ने पुलकेशिन द्वितीय की शक्ति की प्रशंसा तथा उसके राज्य की जनता की दशा का वर्णन किया है। ताबरी के विवरण से ईरानी शासक खुसरो द्वितीय तथा पुलकेशिन् द्वितीय के बीच राजनयिक संबंधों की सूचना मिलती है।

ह्वेनसांग का भारत यात्रा विवरण

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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