इतिहासतुगलक वंशदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन किसने किया था?

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन – मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाओं में मुख्य योजना मुद्रा व्यवस्था भी थी। बरनी के अनुसार सुल्तान विदेशी राज्यों को जीतना चाहता था। इसके अलावा उसमें अत्यधिक अपव्यय करने की आदत भी थी और उसका खजाना खाली हो रहा था।मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएँ परिणामस्वरूप सुल्तान को सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन करने कि लिये बाध्य होना पङा। यद्यपि इस तर्क को पूरी तरह सही नहीं माना जा सकता तथापि सत्य यह है कि सुल्तान खुरासान को जीतने के विचार से शक्तिशाली सेना का गठन करना चाहता था।

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन

किंतु इस कथन में कोई सत्य नहीं है कि उसका खजाना खाली हो गया था क्योंकि जब घर में बर्तनों को तोङकर ताँबे या काँसे के सिक्के बनवाकर लोगों ने सरकार को धोखा देने की कोशिश की तो सुल्तान के खजाने से इन्हीं सिक्कों के बदले में सोने के सिक्के दिए गए तथा उसे सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन बंद करना पङा। नैल्सन राइट ने दिल्ली के सुल्तान के सिक्कों की व्याख्या करते हुए बताया है कि 1327-30 ई. में जब सांकेतिक मुद्रा जारी की गयी थी उस समय भारत में ही नहीं, अपितु संसार भर में चाँदी की कमी हो हो गयी थी। भारत में बंगाल की खानों से पर्याप्त मात्रा में चाँदी नहीं मिल सकी और न ही बाहर से आए व्यापारी इसे भारत में ला सके। इन परिस्थितियों में सुल्तान ने इस बहुमूल्य धातु को बचाने के लिए थोङे समय के लिये ताँबे तथा इससे मिश्रित काँसे के सिक्के जारी किए। इन सिक्कों का मूल्य चाँदी के सिक्कों के बराबर घोषित किया और सुल्तान ने अपेक्षा की कि लोग इसे स्वीकार करें। यद्यपि मुहम्मद के समक्ष सांकेतिक मुद्रा के बारे में ईरान और चीन के उदाहरण थे तथापि उसने खलजी आर्थिक व्यवस्था की कमजोरी को भाँप लिया था। फिर भी लोग इस नए प्रयोग को समझ नहीं पाए। उनके लिये चाँदी का अर्थ चाँदी के सिक्के के वजन के अनुरूप कीमत थी एवं ताँबे का अर्थ ताँबे के वजन की कीमत। उस समय सिक्के बनाने की कला भी साधारण थी, कोई पेचीदे डिजाइन भी उनमें नहीं थे और न ही कोई सरकारी नियंत्रण। सरकारी टकसाल भी थी और सर्राफ की दुकान भी टकसाल का काम करती थी। कहीं भी धातु देकर सिक्का बनवाया जा सकता था। परिणामस्वरूप लोगों में ताँबे तथा काँसे के सिक्के बनवाकर लाभ कमाना शुरू कर दिया। मध्यवर्ती जमींदारों ने चाँदी के सिक्के छिपा लिए तथा वे नए सिक्कों से हथियार भी खरीदने लगे। किंतु जब व्यापारियों ने ताँबे के सिक्के लेने से इनकार कर दिया, तब सारी अर्थव्यवस्था ठप्प सी नजर आने लगी। निराश होकर सुल्तान को सांकेतिक मुद्रा बंद करनी पङी। इसके बदले में जो बहुमूल्य धातु दी गई उससे खजाने की बहुत हानि हुई। साथ ही अफसरों ने सुल्तान को बदनाम करने के लिये प्रचार शुरू कर दिया।

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