इतिहासतुगलक वंशमध्यकालीन भारत

मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएँ

मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएँ – मुहम्मद बिन तुगलक की राजनीतिक एवं प्रशासनिक योजनाएँ – बरनी सुल्तान की पाँच मुख्य योजनाओं का विशेष रूप से उल्लेख करता है – 1.) दोआब में कर की वृद्धि, 2.) देवगिरी को राजधानी बनाना, 3.) सांकेतिक मुद्रा जारी करना, 4.) खुरासान पर आक्रमण, 5.) करांचिल की ओर अभियान।

इस काल के दूसरे स्त्रोतों के परीक्षण से पता चलता है कि बरनी द्वारा दी गयी योजनाएँ तिथिक्रमपूर्वक नहीं हैं बल्कि ऐसा लगता है कि इतिहासकार के मन में जो बात पहले आई उसने लिख दी। इसके अलावा डॉ. मेंहदी हुसैन ने कुछ राजपूत परंपराओं तथा मूल स्त्रोतों का अध्ययन करके सुल्तान के आरंभिक काल की दो और बातों का आलोचनात्मक विवेचन किया है। इनमें से पहली है सुल्तान का चात्तौङ के राजा हमीर से हार जाना तथा दूसरी है सुल्तान का मंगोल शासक तरमाशरीन के आक्रमण को रोकने में विफल होना और अंततः उसे धन देकर वापस भेजना। ये दोनों घटनाएँ विवादास्पद हैं। इतिहासकार गौरीशंकर ओझा का विचार है कि राजा हमीर ने सुल्तान को पराजित कर उससे अजमेर तथा रणथंभौर का प्रदेश छीन लिया था। कर्नल राजा भी उसी प्रकार का मत व्यक्त करते हैं। जहाँ तक समकालीन ऐतिहासिक ऐतिहासिक स्त्रोतों का संबंध है हमें कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिलता कि सुल्तान ने राजपूतों से कोई युद्ध किया हो। वह प्रायः राजपूतों के प्रति उदार था। शायद इसी उदारता को गलत समझकर इतिहासकारों ने राजपूतों को बढा-चढाकर दिखाया हो। ट्रांस-ओक्सियाना के शासक द्वारा सुल्तान की पराजय होना भी विस्मयकारी लगता है। फरिश्ता के अनुसार तरमाशरीन चगतई 1327 में एक विशाल सेना लेकर हिंदुस्तान पर आक्रमण करने के उद्देश्य से आया। उसने मुल्तान, लमधान और दिल्ली तक सारे प्रदेश को तहस-नहस कर दिया। वह बहुत सा धन लेकर तथा कैदी लेकर वापस लौटा। फरिश्ता ने यह भी लिखा है कि बरनी ने इस बात का उल्लेख नहीं किया, क्योंकि वह फिरोज शाह को नाराज नहीं करना चाहता था। किंतु यह सत्य प्रतीत नहीं होता है। बरनी ने फिरोज शाह को प्रसन्न करने के लिये कई स्थानों पर मुहम्मद तुगलक की तीव्र भर्त्सना की है। बरनी स्वयं लिखता है कि आरंभिक काल में मुहम्मद तुगलक का साम्राज्य पर कङा नियंत्रण था जितना पहले किसी का नहीं था। केवल दक्षिण को छोङकर दूर दराज के इलाकों में कहीं विद्रोह का नाम नहीं था। यदि ऐसा था तो तरमाशरीन के हाथों पराजय तथा उसको धन दौलत देकर लौटना तर्कहीन है।

मुहम्मद बिन तुगलक

सर वोल्जले हेग तरमाशरीन के आक्रमण को आक्रमण न कहकर केवल एक लूटमार तथा आकस्मिक धावा कहता है तथा इस बात को अस्वीकार करता है कि सुल्तान की पराजय हुई या उसे विवशता में रिश्वत देनी पङी। मेहँदी हुसैन एक अरबी स्त्रोत के आधार पर अपने तर्कों से यह निष्कर्ष निकालते हैं कि मंगोल शासक तरमाशरीन (जो सुन्नी बन गया था) की नीति इलखानों के विरुद्ध थी। उसने खुरासान को जीतने की योजना बना रखी थी तथा इस उद्देश्य से उसने अपनी सेना गजनी तक भेजी, किंतु 1326 ई. में उसे पराजय का सामना करना पङा। जब वह विवश होकर अपनी सेना के साथ भारत की ओर मुङा, तब यहाँ मुहम्मद तुगलक ने उसका स्वागत किया तथा यह मैत्री दृढ हो गयी। राजपूतों के आवागमन से उपहार आते-जाते रहे तथा सुल्तान ने कुछ मंगोल अफसरों को नौकरियाँ भी दी। शायद ऐसी प्रगति का अर्थ उल्टा समझा गया हो। तरमाशरीन से मैत्री दृढ हो गयी। शायद ऐसी प्रगति का अर्थ उल्टा समझा गया हो। तरमाशरीन से मैत्री के तीन मुख्य परिणाम निकले – प्रथम, मुहम्मद तुगलक को मध्य एशिया के शासकों के बारे में बाकायदा विवरण मिलना शुरू हो गया। दूसरे, गजनी भी राजनीतिक केंद्र बन गया जिसको सुल्तान ने अपने राजनीतिक विचारों के प्रभाव में लाने का प्रयास किया। तीसरे, मध्य एशिया की राजनीतिक परिस्थितियों तथा तरमाशरीन की मैत्री ने सुल्तान को खुरासान के विरुद्ध अभियान के लिये प्रेरित किया।

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