इतिहासगुप्तोत्तर कालप्राचीन भारत

आदित्यसेन का इतिहास

यह माधवगुप्त का पुत्र था तथा उसकी मृत्यु के बाद मगध का चक्रवर्ती शासक बना। वह वीर योद्धा तथा कुशल प्रशासक था। अफसढ तथा शाहपुर के लेखों से मगध पर उसका आधिपत्य प्रमाणित होता है। मंदरपर्वत का लेख अंग क्षेत्र पर उसके अधिकार की सूचना देता है। अपनी विजयों के फलस्वरूप उसने परमभट्टारक महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की।

अफसढ लेख में कहा गया है, कि वह इस जगत की रक्षा करता है तथा उसके श्वेतक्षत्र द्वारा संपूर्ण पृथ्वी सदा ढँकी रहती है।

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मंदसोर लेख से पता चलता है, कि वह उसने तीन अश्वमेघ यज्ञ किये। मंदर पर्वत पर आदित्यसेन का एक और शिलालेख था, जिसे कालांतर में वहाँ से हटा दिया गया है। तथा संप्रति वह पाषाणखंड, जिस पर लेख उत्कीर्ण है, वैद्यनाथ के प्रसिद्ध मंदिर की ड्योढि में लगाया गया है। यह आदित्यसेन की विजयों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है। इससे पता चलता है, कि आदित्यसेन ने चोल राज्य पर विजय प्राप्त की थी।

विविध प्रकार के यज्ञ

वह चोल राज्य में तीर्थयात्रा पर गया था, जहाँ उसने दक्षिण के राजाओं से उपहार प्राप्त किये थे। पूर्व की ओर बंगाल की खाङी तथा ब्रह्मपुत्र नदी तक उसका अधिकार क्षेत्र विस्तृत था। पश्चिम की ओर आदित्यसेन के राज्य में उत्तर प्रदेश के आगरा और अवध का विस्तृत भू-भाग सम्मिलित था।

इस प्रकार हर्ष की मृत्यु के बाद मगध के अंतर्गत एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने वाला आदित्यसेन प्रथम शासक था।

उसने अपने पूर्वगामी गुप्त सम्राटों की परंपरा का पुनरुज्जीवन किया। उसके शासन काल में चीनी राजदूत लगभग 655-675 ईस्वी में वांग-हुएन-त्से ने दो बार भारत की यात्रा की तथा आदित्यसेन ने उसकी सहायता की।

आदित्यसेन का धर्म

कोरिया के बौद्ध यात्री हुई-लुन के अनुसार उसने बोधगया में एक बौद्ध मंदिर बनवाया था। देवबर्नाक लेख में आदित्यसेन को परमभागवत कहा गया है, जो उसके वैष्णव होने का प्रमाण है। यही उपाधि चक्रवर्ती गुप्त शासकों ने भी ग्रहण की थी। अफसढ लेख के अनुसार उसने विष्णुमंदिर का निर्माण करवाया था। किन्तु स्वयं वैष्णव होते हुए भी वह राजा के रूप में अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु था।

बोधगया कहाँ स्थित है?

Reference : https://www.indiaolddays.com

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