चंद्रगुप्त द्वितीय का विद्या प्रेम
चंद्रगुप्त द्वितीय युद्ध क्षेत्र में जितना महान था, शांति काल में उससे कहीं अधिक कर्मठ था। वह स्वयं विद्वान एवं विद्वानों का आश्रयदाता था। उसके समय में पाटलिपुत्र एवं उज्जियिनी विद्या के प्रमुख केन्द्र थे। अनुश्रुति के अनुसार उसके दरबार में नौ विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी, जिसे नवरत्न कहा गया है। महाकवि कालिदास संभवतः इनमें अग्रगण्य थे।
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कालिदास के अलावा इनमें धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर, वररुचि जैसे विद्वान थे। इनमें अधिकांश को गुप्तकालीन ही माना जाता है। उसका सांधिविग्रहिक वीरसेन व्याकरण, न्याय, मीमांसा एवं शब्द का प्रकाण्ड विद्वान तथा एक कवि था। इसी प्रकार उसके अन्य दरबारी भी रहे होंगे।
राजशेखर ने अपने ग्रंथ काव्यमीमांसा में इस बात का उल्लेख किया है,कि उज्जयिनी में कवियों की परीक्षा लेने के लिये एक विद्वत्परिषद् थी। इस परिषद् ने कालिदास, भर्तृमेठ, भारवि, अमरु, हरिश्चंद्र, चंद्रगुप्त आदि कवियों की परीक्षा ली थी।
इस प्रकार हम कह सकते हैं,कि चंद्रगुप्त का काल गुप्त शासन का स्वर्ण युग था।
कालिदास के शब्दों में “भले ही पृथ्वी पर सहस्रों राजा हों, लेकिन पृथ्वी इसी राजा से राजवंती (राजा वाली) कही गयी है, जिस प्रकार की नक्षत्र, तारा एवं ग्रहों के होने पर भी रात्रि केवल चंद्रमा से ही चाँदनी वाली कही जाती है।“
Reference : https://www.indiaolddays.com