इतिहासगुर्जर-प्रतिहारप्राचीन भारत

गुर्जर-प्रतिहारों का इतिहास में क्या योगदान था

गुर्जर-प्रतिहार(Gurjara Pratihara) उत्तर भारत का प्रमुख राजवंश था। इस वंश की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग मत दिये हैं, जो इस प्रकार हैं-

गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति

प्रतिहार प्रसिद्ध गुर्जरों की एक शाखा थे। गुर्जर उन मध्य एशियाई कबीलों में से एक थे, जो गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद हूणों के साथ आए थे। राष्ट्रकूट रिकार्डों के अनुसार प्रतिहार गुर्जरों से संबद्ध थे। अबु जैद एवं अल-मसूदी जैसे अरब लेखकों ने उत्तर के गुर्जरों से उनके संघर्ष का उल्लेख किया है। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण कन्नङ के कवि पंपा का है,जिसने महीपाल को गुर्जरराज कहा है। यह नाम राष्ट्रकूट दरबार के प्रतिहार (उच्च अधिकारी) पद धारण करने वाले राजा से व्युत्पन्न है।

हूणों का प्रथम आक्रमण किसके काल में हुआ था ?

गुर्जर-प्रतिहार राजवंश

नागभट्ट प्रथम ( naagabhatt pratham )

प्रतिहार सर्वप्रथम 8वीं शता. के मध्य में लोकप्रिय हुए, जब उनके शासक नागभट्ट प्रथम ने अरबों के आक्रमण से पश्चिम भारत की रक्षा की तथा भङौंच तक अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने अपने उत्तराधिकारियों को मालवा तथा राजस्थान के कुछ हिस्सों समेत एक शक्तिशाली राज्य सौंपा। नाभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी उसके भाई के पुत्र ककुष्ठ तथा देवराज थे, तथा दोनों ही महत्त्वपूर्ण नहीं थे।

वत्सराज ( vatsaraaj )

वत्सराज एक शक्तिशाली शासक था तथा उसने उत्तर भारत में एक साम्राज्य की स्थापना की। उसने प्रसिद्ध भांडी वंश को पराजित किया, जिनकी राजधानी संभवतः कन्नौज थी। उसने बंगाल के शासक धर्मपाल को भी पराजित किया तथा एक महान साम्राज्य की नींव डाली। लेकिन उसे राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने बुरी तरह पराजित किया।

नागभट्ट द्वितीय (Nagabhatta II)

वत्सराज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय था, जिसने अपने परिवार की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। लेकिन वह अपने पूर्वज की भांति दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुआ और उसे राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय से पराजित होना पङा। नागभट्ट द्वितीय ने दूसरी दिशाओं में अपनी तकदीर आजमाई। उसने कन्नौज पर आक्रमण कर धर्मपाल के नामजद शासक चक्रायुद्ध को पदच्युत किया तथा कन्नौज को प्रतिहार राज्य की राजधानी बनाया।

Prev 1 of 1 Next
Prev 1 of 1 Next

अपने अधीनस्थ शासक की पराजय का बदला लेने के लिये धर्मपाल ने तैयारियां शुरू कर दी तथा संघर्ष अवश्यंभावी हो गया। प्रतिहार शासन ने धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर तक अधिकार कर लिया। उसके पोते के ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने अनर्त्त (उत्तरी काठियावाङ), मालवा या मध्य भारत, मत्स्य या पूर्वी राजपूताना, कीरात (हिमालय का क्षेत्र), तुरूष्क (पश्चिम भारत के अरब निवासी) तथा कौशांबी (कोसम) क्षेत्र में वत्सों को पराजित किया। नागभट्ट द्वितीय के अधीन प्रतिहार साम्राज्य की सीमा में राजपूताना के भाग, आधुनिक उत्तर प्रदेश का एक बङा भाग, मध्य भारत, उत्तरी काठियावाङ तथा आस-पास के क्षेत्र थे। नागभट्ट द्वितीय का उत्तराधिकारी उसका पुत्र रामभद्र था, जिसके तीन वर्षों के छोटे शासन काल में पाल शासक देवपाल की आक्रामक नीतियों के कारण प्रतिहारों की शक्ति पर ग्रहण लग गया।

मिहिर भोज( mihir bhoj)

रामभद्र के पुत्र मिहिरभोज के राज्यारोहण के साथ ही प्रतिहारों की शक्ति दैदीप्यमान हो गयी। उसने अपने वंश का वर्चस्व बुंदेलखंड में पुनः स्थापित किया तथा जोधपुर के प्रतिहारों (परिहार) का दमन किया। भोज के दौलतपुर ताम्रपत्र अभिलेख से पता चलता है, कि प्रतिहार शासक मध्य तथा पूर्वी राजपूताना में अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल रहा था। उत्तर में उसका वर्चस्व हिमालय की पहाङियों तक स्थापित हो चुका था, जैसा कि गोरखपुर जिले में एक कलचुरी राजा को दिए गये एक भूमि अनुदान से पता चलता है।

लेकिन भोज का साम्राज्यवादी लक्ष्य सभी जगह सफल नहीं रहा। वह पाल शासक देवपाल से पराजित हुआ। पूरब की इस पराजय से निराश न होते हुये उसने अपना ध्यान दक्षिणकी ओर केन्द्रित किया एवं दक्षिण राजपूताना एवं उज्जैन के आस-पास के क्षेत्रों समेत नर्मदा तक अधिकार कर लिया। अब उसका सामना राष्ट्रकूटों से हुआ, जिसके शासक ध्रुव द्वितीय ने उसके विजय अभियानों पर रोक लगाई।

शक्तिशाली पाल शासक देवपाल की मृत्यु के बाद राजनैतिक परिदृश्य में परिवर्तन हुआ तथा राष्ट्रकूटों ने बंगाल पर आक्रमण किया। भोज ने कमजोर नारायण पाल को पराजित कर उसके पश्चिमी क्षेत्रों के बङे भाग पर अधिकार कर लिया। इस विजय से प्रेरित होकर भोज ने राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय पर भी आक्रमण कर दिया और कृष्ण तृतीय को नर्मदा के किनारे पराजित कर मालवा पर अधिकार कर लिया।

इस प्रकार भोज का विशाल साम्राज्य उत्तर पश्चिम सतलज, उत्तर में हिमालय की पहाङियों, पूर्व में बंगाल, दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व में बुंदेलखंड तथा वत्स के क्षेत्र, दक्षिण पश्चिम में नर्मदा तथा सौराष्ट्र एवं पश्चिम में राजपूताना के हिस्सों तक फैला हुआ था। भोज का शासन काल काफी लंबा 46 वर्षों तक का था। अरब यात्री सुलेमान ने उसकी उपलब्धियों का उल्लेख किया है।

महेन्द्रपाल प्रथम (Mahendrapal First)

भोज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम था। उसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मगध तथा उत्तरी बंगाल की विजय थी। महेन्द्रपाल प्रथम विद्वानों का उदार संरक्षक था। उसके दरबार का सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति राजशेखर था, जिसकी रचनाएं हैं- कर्पूरमंजरी, बाल रामायण, बाल भारत, काव्य मीमांसा

महिपाल (Mahipal)

महेन्द्रपाल की मृत्यु के बाद गद्दी पर अधिकार के लिये संघर्ष छिङ गया। पहले उसके पुत्र भोज द्वितीय ने राजगद्दी पर अधिकार कर लिया। एक बार फिर इंद्र तृतीय के अधीन राष्ट्रकूटों ने प्रतिहारों पर प्रहार किया तथा कन्नौज नगर को नष्ट कर दिया। लेकिन इंद्र तृतीय के दक्कन वापस लौट जाने के बाद महिपाल को अपनी स्थिति सुधारने का मौका मिला। अरब यात्री अल-मसूदी, जो 915-16 ईस्वी में भारत आया था, ने कन्नौज के राजा की शक्ति तथा उसके संसाधनों का उल्लेख किया है, जिसका राज्य पश्चिम में सिंध तक तथा दक्षिण में राष्ट्रकूट सीमा तक था। अरब यात्री ने राष्ट्रकूटों तथा प्रतिहारों के संघर्ष की पुष्टि की है, तथा प्रतिहारों की महत्त्वपूर्ण सेना का उल्लेखकिया है।

परवर्ती शासक

महिपाल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी महेन्द्रपाल द्वितीय था, जिसके काल में साम्राज्य अविछिन्न बना रहा। चंदेलों के स्वतंत्र हो जाने के बाद देवपाल के शासन काल में साम्राज्य टूटना प्रारंभ हो गया। देवपाल के शासन काल में प्रारंभ विघटन की प्रक्रिया विजयपाल के शासनकाल में बढ गयी। 10 वीं शता. में जब विजयपाल का उत्तराधिकारी राज्यपाल शासक बना, तब तक प्रतिहार साम्राज्य की शक्ति समाप्त हो चुकी थी। सन् 1036 ई. के एक अभिलेख में उल्लिखित यशपाल संभवतः इस वंश का अंतिम शासक था।

References :
1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी

Related Articles

error: Content is protected !!