इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतबादामी का चालुक्य वंश

बादामी के चालुक्य वंश का शासक मंगलेश

बादामी के चालुक्य वंश के शासक कीर्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु के समय उसका पुत्र पुलकेशिन द्वितीय अवयस्क था। अतः उसके छोटे भाई मंगलेश ने पुलकेशिन के संरक्षक के रूप में चालुक्य शासन की बागडोर संभाली। वह भी एक महत्वाकांक्षी शासक था, जिसने कीर्तिवर्मन् की विस्तारवादी नीति को जारी रखा। मंगलेश के नेनूर दानपत्र तथा महाकूट स्तंभलेख से पता चलता है, कि उसने कलचुरि शासक बुद्धराज पर आक्रमण किया। बुद्धराज गुजरात, खानदेश तथा मालवा में शासन करता था। कलचुरि नरेश युद्ध में पराजित हुआ। महाकूट लेख के अनुसार मंगलेश ने उत्तर भारत की विजय की इच्छा से सर्वप्रथम बुद्ध को पराजित कर उसकी संपूर्ण संपत्ति पर अधिकार कर लिया। उसके बाद विजय का धर्मस्तंभ स्थापित करने के लिये उसने अपनी माता से आज्ञा ली तथा मुकुटेश्वरनाथ के मंदिर में दान दिये। यहाँ बुद्ध से तात्पर्य कलचुरि नरेश बुद्धराज से ही है।

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कीर्तिवर्मन् प्रथम का इतिहास

नेरुर दानपत्र से पता चलता है, कि बुद्धराज के पास गज, अश्व, पैदल सेना तथा संपत्ति थी, किन्तु वह मंगलेश द्वारा पराजित हुआ तथा भाग गया। इसी प्रकार एहोल लेख में कहा गया है, कि मंगलेश ने कलचुरियों पर विजय प्राप्त की तथा उसके घुङसवार सेना के चलने से इतनी अधिक धूल उठी कि वह पूर्वी एवं पश्चिमी समुद्रों तक छा गयी।किन्तु ऐसा प्रतीत होता है, कि यह आक्रमण धावा मात्र था और यद्यपि उसे लूट का बहुत सा धन प्राप्त हुआ तथापि चालुक्य राज्य की सीमा में बहुत कम वृद्धि हुई। बुद्धराज ने पुनः खोई हुई शक्ति और प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली क्योंकि उसके लेखों से पता चलता है, कि इस आक्रमण के तत्काल बाद अर्थात् 609-10 ईस्वी के लगभग वह पूर्ण राजकीय ऐश्वर्य एवं वैभव के साथ शासन कर रहा था।

मंगलेश को दूसरी सफलता कोंकण प्रदेश में मिली। इसकी राजधानी रेवती द्वीप थी। पुलकेशिन के द्वितीय के ऐहोल लेख, परवर्ती चालुक्य लेखों तथा मंगलेश के नेरुर दानपत्र से इस सफलता की सूचना मिलती है। एहोल लेख में वर्णित है, कि विजय की इच्छा रखने वाले मंगलेश ने पताकाओं से युक्त अपनी सेना द्वारा रेवती द्वीप को चारों ओर से घेर लिया था। चमकती हुई पताकाओं की परछाई के समुद्र में पङने पर ऐसा लगता है, कि मानों उसकी आज्ञा पाकर वरुण की सेना तत्काल चली आई हो। परवर्ती चालुक्य लेखों से पता चलता है, कि मंगलेश की सेना अत्यन्त विशाल थी और वह समस्त द्वीपों पर अधिकार कर सकने में समर्थ था। उसकी सेना ने नावों का एक पुल पार कर रेवती द्वीप पर आक्रमण किया था। नेरुर दानपत्र से सूचित होता है, कि मंगलेश ने चालुक्य नरेश के किसी स्वामिराज को, जो अठारह युद्धों का विजेता था, मार डाला था। यह स्वामिराज कीर्तिवर्मा द्वारा रेवतीद्वीप में नियुक्त किया गया उपराजा (गवर्नर) था, जिसने संभवतः मंगलेश के राजा बनने पर विद्रोह कर दिया। मंगलेश ने सफलतापूर्वक इस विद्रोह को कुचल दिया। स्वामिराज मार डाला गया था तथा मंगलेश ने अपनी ओर से ध्रुवराज इन्द्रवर्मा को रेवतीद्वीप का उपराजा बना दिया। इस प्रकार कोंकण प्रदेश में उसने अपनी सत्ता पुनः सुदृढ कर ली थी।

मंगलेश का धर्म क्या था

मंगलेश वैष्णव धर्मानुयायी था तथा उसे परमभागवत कहा गया है। मंगलेश ने रणविक्रांत, श्रीपृथ्वीबल्लभ जैसी उपाधियाँ ग्रहण की। वह महान निर्माता भी था। उसने बादामी के गुहा-मंदिर का निर्माण पूरा करवाया जिसका प्रारंभ कीर्तिवर्मा के समय में हुआ था। इसमें भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की गयी थी। इस अवसर पर मंगलेश ने प्रभूत दान वितरित किया। किन्तु वह धर्मसहिष्णु था और उसने मुकुटेश्वर के शैव मंदिर को भी दान दिया था। लेखों में उसकी दानशीलता, विद्वता एवं चरित्र का प्रशंसा की गयी है।

इस प्रकार मंगलेश एक महान विजेता तथा साम्राज्य निर्माता था, जिसके समय में चालुक्यों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

मंगलेश के अंतिम दिन

किन्तु मंगलेश का उदात्त चरित्र एवं उसकी निर्मल प्रतिष्ठा उसके जीवन के अंतिम दिनों के आचरण से कलंकित हो उठी। इस संबंध में हमारी जानकारी का एकमात्र स्त्रोत एहोल का लेख है। इससे पता चलता है, कि उसके बङे भाई के पुत्र, पुलकेशिन, जो नहुष के समान उदार था तथा जिसकी अभिलाषा लक्ष्मी भी करती थी, ने जब देखा कि इस कारण उसका चाचा उससे ईर्ष्या रखता है, तो उसने देश छोङ देने का निश्चय किया । किन्तु उसने मंत्र तथा उत्साह शक्ति से सभी ओर से मंगलेश को निर्बल कर दिया जिसके फलस्वरूप मंगलेश को इन तीन चीजों – अपने पुत्र को राज्य सौंपने के प्रयत्न, विशाल राज्य तथा अपने प्राणों से हाथ धोना पङा।

इस विवरण से स्पष्ट होता है,कि मंगेलश के शासन के अंत में उसमें तथा उसके भतीजे पुलकेशिन द्वितीय के बीच गृह-युद्ध छिङा। एहोल अभिलेख से पता चलता है, कि पुलकेशिन के वयस्क होने पर भी मंगलेश उसे शासन सौंपने को प्रस्तुत नहीं था और वह अपने पुत्र को राजा बनाना चाहता था तथा संभवतः उसने अपने पुत्र को युवराज बना भी दिया। इसके फलस्वरूप पुलकेशिन को अपने अधिकार से वंचित होना पङा। पुलकेशिन ने अपने चाचा का राज्य छोङकर अन्यत्र शरण ली तथा कुछ समय बाद शक्ति जुटा कर उसने मंगलेश पर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार इस युद्ध में मंगलेश मार डाला गया तथा अन्ततः पुलकेशिन द्वितीय ने अपने सभी विरोधियों को परास्त कर राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार मंगलेश का अंत दुखद रहा। मंगलेश ने 597-98ई. से लेकर 610 ईस्वी तक राज्य किया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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