इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतबादामी का चालुक्य वंश

कीर्त्तिवर्मन् प्रथम बादामी के चालुक्य वंश का शासक था

बादामी के चालुक्य वंश के संस्थापक पुलकेशिन प्रथम के दो पुत्र थे – कीर्त्तिवर्मन् प्रथम तथा मंगलेश। पुलकेशिन प्रथम की मृत्यु के बाद कीर्त्तिवर्मन् प्रथम शासक बना जो 566-598 ईस्वी तक शासक रहा। उसने अपने पौतृक साम्राज्य को और अधिक विस्तृत किया। उसके पुत्र पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख से पता चलता है, कि उसने बनवासी के कदंब, कोंकण के मौर्य तथा बल्लरी-कर्नूल क्षेत्र के नलवंशी शासकों को पराजित कर उनके राज्यों को जीत लिया था। इस लेख के अनुसार वह नलों, मौर्यों तथा कदंबों के लिये कालरात्रि के समान था। वह परस्त्री से विमुख हो गया था तथापि शत्रु की राजलक्ष्मी ने उसे आकर्षित किया। अपने पराक्रम से उसने विजयश्री को प्राप्त किया। मदमस्त हाथी के समान उसने कदंब वंश को कदंब वृक्ष की भाँति उखाङ फेंका। इससे स्पष्ट होता है, कि उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विजय कदंबों को जीतना थी। उसके द्वारा जीता गया कदंब शासक संभवतः अजयवर्मा था। कदंबों की राजधानी बनवासी पर उसने अधिकार कर लिया। नलवंश के लोग नलवाङी में शासन करते थे। यह नलवाङी आधुनिक वेल्लारी तथा कर्नूल जिलों की भूमि में फैला हुआ था। इस वंश का एक लेख बस्तर (मध्य प्रदेश) की सीमा पर स्थित पौङागढ नामक स्थान से मिला है। इससे पता चलता है, कि पाँचवी शता. के अंतिम चरण में इस वंश को अनेक ध्वंसात्मक परिवर्तन झेलने पङे थे। इससे पता चलता है, कि चालुक्यों के आक्रमण से ही यह ध्वंस हुआ होगा।

Prev 1 of 1 Next
Prev 1 of 1 Next

पुलकेशिन प्रथम कौन था

मौर्यों का कोंकण प्रदेश पर शासन था। उनकी राजधानी पुरी (एलीफैन्टा के समीप स्थित धारापुरी) को पश्चिमी समुद्र की लक्ष्मी कहा गया था। एहोल लेख में कहा गया है, कि कीर्तिवर्मन् ने कदंबो के एक संघ को भंग कर दिया था। इस संघ में कदंबों के अलावा गंग तथा सेन्द्रक वंशों के शासक सम्मिलित थे। मंगलेश के महाकूट अभिलेख में कीर्त्तिवर्मन् को वंग, अंग, कलिंग, मगध, मद्रक, केरल, गंग, मूषक, पाण्ड्य, चोलिय, वैजयन्ती आदि के राजाओं को पराजित करने का श्रेय प्रदान किया गया है, परंतु यह विवरण अतिश्योक्ति लगता है। नल, मौर्यों तथा कदंबों आदि को जीतकर चालुक्य सत्ता का चतुर्दिक विस्तार कर दिया। उसके विस्तृत साम्राज्य में आधुनिक महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के भूभाग सामिल थे। अपनी महानता के अनुरूप उसने भी सत्याश्रय, पृथ्वीबल्लभ आदि उपाधियाँ ग्रहण की तथा वैदिक यज्ञ किये। उसे वातापी का प्रथम निर्माता कहा गया है, जिससे स्पष्ट होता है, कि उसने इस नगर को सुंदर मंदिरों तथा भवनों से सजाया था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

India Old Days : Search

Search For IndiaOldDays only

  

Related Articles

error: Content is protected !!