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माधवराव प्रथम (1761-1772ई.)का इतिहास

माधवराव प्रथम

माधवराव प्रथम (Madhavrao I)पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार तथा बालाजी बाजीराव की अकस्मात मृत्यु (23जून,1761ई.) के बाद उसका पुत्र माधव राव प्रथम पेशवा बना।

माधवराव प्रथम

माधवराव प्रथम मराठा साम्राज्य के महानतम पेशवा के रूप में मान्य हैं जिनके अल्पवयस्क होने के बावजूद अद्भुत दूरदर्शिता एवं संगठन-क्षमता के कारण पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की खोयी शक्ति एवं प्रतिष्ठा की पुनर्प्राप्ति संभव हो पायी। 11 वर्षों की अपनी अल्पकालीन शासनावधि में भी आरंभिक 2 वर्ष गृहकलह में तथा अंतिम वर्ष क्षय रोग की पीड़ा में गुजर जाने के बावजूद उन्होंने न केवल उत्तम शासन-प्रबंध स्थापित किया, बल्कि अपनी दूरदर्शिता से योग्य सरदारों को एकजुट कर तथा नाना फडणवीस एवं महादजी शिंदे दोनों का सहयोग लेकर मराठा साम्राज्य को भी सर्वोच्च विस्तार तक पहुँचा दिया।

नया पेशवा केवल 17 वर्षीय अल्पवयस्क था अतः पेशवा परिवार के सबसे बङे जिम्मेदार सदस्य उसके चाचा रघुनाथ राव को उसका रीजेन्ट बनाया गया। किन्तु इस काल में पेशवा तथा उसके चाचा रघुनाथ राव के बीच गंभीर मतभेद पैदा हो गये जिसके कारण दोनों के मध्य युद्ध हुआ।

उसने 1763 ई. में निजाम को पराजित किया।1771 ई. में मैसूर के हैदर अली को पराजित किया तथा नजराना देने के लिए बाध्य किया, रुहेलों को हराकर तथा राजपूत राज्यों और जाटों को अधीन लाकर उत्तर भारत पर अपने अधिकार का फिर से दावा किया।

1763ई. में राक्षस-भुवन की संधि माधवराव प्रथम तथा निजाम के मध्य हुई। इस संधि का मराठा इतिहास में इसलिए महत्त्व है क्योंकि इस संधि से मराठों तथा निजाम के संबंधों में ठहराव आ गया।

1771 ई. में मराठा सरदार महादजी सिंधिया ने निर्वासित मुगल बादशाह शाह आलम को दिल्ली की गद्दी पर पुनः स्थापित किया अब बादशाह उनका पेंशन भोगी बन गया।

नवंबर,1772 ई. में माधवराव की अकाल (क्षय रोग से ) मृत्यु हो गई और मराठा राज्य पुनः गहरे संकट में  आ गया।

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