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पुराण का अर्थ क्या है

पुराण का शाब्दिक अर्थ प्राचीन आख्यान होता है। प्रारंभ में इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में मिलता है। अथर्ववेद में चारों वेदों के बाद पुराण का उल्लेख हुआ है, जो किसी प्राचीन कथा का नहीं अपितु ग्रंथ का बोधक है। उपनिषदों तथा सूत्रों में भी पुराण शब्द का उल्लेख ग्रंथ के रूप में ही है। महाभारत के अध्ययन से पता चलता है, कि इसके वर्तमान स्वरूप प्राप्त करने के पूर्व ही पुराण ग्रंथ अस्तित्व में आ चुके थे। महाभारत के वक्ता लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा पुराणों के ज्ञाता थे। हरिवंश तथा वायु-पुराण के अनेक अंश परस्पर मिलते हैं। लूडर्स का विचार है, कि ऋष्यश्रृङ्ग का जो आख्यान पद्मपुराण में मिलता है, वह महाभारत में प्राप्त होने वाले आख्यान से प्राचीनतर है।इस प्रकार पाँचवीं-चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में पुराण ग्रंथ अस्तित्व में आ चुके थे। पुराणों की रचना एक समय की न होकर भिन्न-भिन्न कालों में की गयी। वर्तमान पुराण प्राचीन नहीं हैं। इनकी रचना गुप्तकाल के बहुत बाद की नहीं हो सकती।

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मुख्य पुराण संख्या में 18 हैं – मत्स्य, मार्कण्डेय, भविष्य, भागवत, ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, ब्रह्म, वामन, वाराह, विष्णु, वायु, अग्नि, नारद, पद्म, लिंग, गरुङ, कूर्म तथा स्कन्द । इन्हें महापुराण कहा जाता है। इनके अतिरिक्त 18 उपपुराण भी हैं – सनतकुमार, नरसिंह, स्कान्द, शिवधर्म, आश्चर्य, नारदीय, कापिल, वामन, औशनस, ब्रह्माण्ड, वारुण, कालिका, माहेश्वर, साम्ब, सौर, पाराशर, मानीच और भार्गव।

अमरकोश में पुराणों के पाँच लक्षण बताये गये हैं –

  1. सर्ग अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति।
  2. प्रतिसर्ग अर्थात् प्रलय के बाद सृष्टि की पुनः उत्पत्ति।
  3. वंश अर्थात् देवताओं और ऋषियों की वंशावली।
  4. मन्वन्तर अर्थात् महायुग।
  5. वंशानुचरित अर्थात् राजकुलों का इतिहास।

किन्तु आश्चर्य की बात यह है, कि उपर्युक्त पुराणों में से किसी में ये पाँचों लक्षण प्राप्त नहीं होते हैं। कहीं-कहीं उपर्युक्त लक्षणों के साथ पांच अन्य लक्षण भी गिनाये गये हैं – वृत्ति, रक्षा, मुक्ति, हेतु तथा अपाश्रय (ब्रह्म)। ऐतिहासिक दृष्टि से वंशानुचरित का विशेष महत्त्व है। इसके अंतर्गत हम प्राचीन शासकों की वंशावलियाँ पाते हैं। परीक्षित से लेकर नंदवंश तक का इतिहास हमें मुख्यतया पुराणों से ही ज्ञात होता है। मौर्य, शुंग-सातवाहन, गुप्त आदि राजवंशों का इतिहास भी न्यूनाधिक रूप से पुराणों से जाना जाता है। पार्जिटर ने इनके ऐतिहासिक महत्त्व की और विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया है।

पुराणों के आदि संकलनकर्त्ता महर्षि लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र अग्रश्रवा माने जाते हैं। पुराण सरल एवं व्यावहारिक भाषा में लिखे गये जनता के ग्रंथ हैं। इनमें प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, पशु-पक्षी एवं वनस्पति विज्ञान, आयुर्वेद आदि सभी का समावेश मिलता है। इस प्रकार ये ज्ञान के विश्वकोश ही हैं।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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