मध्यकालीन भारतइतिहासखिलजी वंशदिल्ली सल्तनत

कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी (1316-1320ई.)

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कुतुबुद्दीन खिलजी  दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का शासक।अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर ने एक वसीयतनामा पेश किया, जिसमें अलाउद्दीन के पुत्रों ( खिज्रखां, शल्दी खां, मुबारक खां ) के स्थान पर खिज्रखां के नाबालिक पुत्र शिहाबुद्दीन उमर को सुल्तान बनाया गया। विरोध करने पर खिज्रखां व शल्दी खां की आँखें निकाल दी तथा मुबारक खां को जेल में डाल दिया।

तुर्की सरदारों ने विद्रोह किया तथा मलिक काफूर की हत्या कर मुबारक खिलजी को नाबालिक सुल्तान घोषित कर नायब-ए-ममलिकात बना दिया।

मुबारक खिलजी ने शिहाबुद्दीन उमर की हत्या कर दी तथा कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी नाम से सुल्तान बना। इसने स्वयं को खलीफा घोषित किया जो सल्तनत काल का ऐसा करने वाला एकमात्र शासक था।

कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी की उपाधियाँ निम्नलिखित थी-

  • अलवसिक विल्लाह
  • खलिफतुल्ला
  • खिलाफत -उल- लह
  • खलादुन – खिलाफत
  • अल इमाम
  • उल इमाम

कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी 19 अप्रैल 1316 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। उसने 1316 ई. से 1320 ई. तक राज्य किया।

गद्दी पर बैठने के बाद ही उसने देवगिरि के राजा हरपाल देव पर चढ़ाई की और युद्ध में उसे परास्त किया तथा बाद में उसे बंदी बनाकर उसकी खाल उधड़वा दी। देवगिरि को सल्तनत में मिला लिया गया। तथा देवगिरि का नाम कुतुबाबाद, कुतुबुल-इस्लाम रखा गया।

अपने शासन काल में उसने गुजरात के विद्रोह का भी दमन किया था।गुजरात के विद्रोह का दमन इक्तेदार एन-उल-मुल्क ने किया था। वह अपना समय सुरा तथा सुन्दरियों में बिताने लगा। उसकी इन विजयों के अतिरिक्त अन्य किसी भी विजय का वर्णन नहीं मिलता है।

कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी ने अपने सैनिकों को छः माह का अग्रिम वेतन दिया था। विद्धानों एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की छीनी गयी जागीरें उन्हें वापस कर दीं। अलाउद्दीन खिलजी की कठोर दण्ड व्यवस्था एवं बाज़ार नियंत्रण आदि व्यवस्था को उसने समाप्त कर दिया था।

कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी को नग्न स्त्री-पुरुषों की संगत पसन्द थी। अपनी इसी संगत के कारण कभी-कभी वह राज्य दरबार में स्त्री का वस्त्र पहन कर आ जाता था। ‘बरनी‘ के अनुसार मुबारक कभी-कभी नग्न होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था। उसने ‘अल इमाम’, ‘उल इमाम’ एवं ‘खिलाफत-उल्लाह’ की उपाधियाँ धारण की थीं।

उसने खिलाफत के प्रति भक्ति को हटाकर अपने कोइस्लाम धर्म का सर्वोच्च प्रधान’ और ‘स्वर्ण तथा पृथ्वी के अधिपति का ‘खलीफा घोषित किया था। साथ ही उसने ‘अलवसिक विल्लाह’ की धर्म की प्रधान उपाधि भी धारण की थी।

गुजराती हिन्दू-मुस्लिम धर्म में धर्मांतरित खुसरो मुबारक खिलजी का विश्वासपात्र बन गया। सुल्तान ने इसे अपना नाएब-ए-ममलिकात बना लिया।

Note : नायब-ए-ममलिकात के पद पर अंतिम स्थापित होने वाला खुसरो था। इसके बाद  यह पद समाप्त हो गया।

अप्रैल 1320ई. को खुसरो ने सुल्तान की हत्या कर दी और नासिरुद्दीन खुसरोशाह के नाम से शासक बना। यह कुछ माह तक ही शासक रहा अप्रैल से सितंबर माह तक ।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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