बौद्ध धर्म की शिक्षाएं एवं सिद्धांत
महात्मा बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी सम्पूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तंभ उनके सिद्धांत हैं।
उनके सभी सिद्धांतों में प्रतीत्य समुत्पाद सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है,जिसके बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है।
प्रतीत्य समुत्पाद का शाब्दिक अर्थ है- प्रतीत्य(किसी वस्तु के होने पर) समुत्पाद (किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति)।
प्रतीत्य समुत्पाद के 12 क्रम हैं ,जिसे द्वादश निदान कहा जाता है।
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प्रतीत्य समुत्पाद एवं द्वादश निदान (12 उपचार)-
यह बौद्ध दर्शन का केन्द्रीय सिद्धांत है।
यह बौद्ध दर्शन का कारणता / कार्य – कारण सिद्धांत है। इसके अनुसार जीवन और जगत की प्रत्येक घटना एवं कार्य- कारण पर निर्भर रहते हैं।
12 निदान इस प्रकार हैं-
- अविद्या – (अज्ञान – कर्म – दुःख का मूल कारण)
- संस्कार
- विज्ञान – चेतना (भ्रूण) / जन्म
- नामरूप – आत्मा बनती है।
- षङायतन (सलायतन) – 6 इन्द्रिया
- स्पर्श
- वेदना
- तृष्णा
- उपादाान (तीव्र इच्छा)
- भव – जन्म गृहण करने की प्रवृति
- जाति – पुनर्जन्म की इच्छा
- जरा – मरण
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मध्यमप्रतीपदा(मध्यममार्ग)
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मध्मप्रतीपदा बौद्ध धर्म का मूल सिद्धांत है,जो दो अतिवादी विचारों के बीच का मार्ग है। बौद्ध धर्म अतिवादी धर्म नहीं है। उदारहण –जीवन में अत्यधिक दुः ख भी नहीं तो अत्यधिक सुख भी नहीं होना चाहिए।
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शून्यवाद-(माध्यमिक शून्यवाद)
महायान बौद्ध धर्म से संबंधित सिंद्धांत । यह सिद्धांत नागार्जुन ने दिया था।
प्रत्येक घटना एवं कार्य – कारण पर निर्भर होने के कारण शून्य हैं। अर्थात् उनका संबंध स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।
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योगाचार विज्ञानवाद-
मौत्रेयनाथ ने इसकी स्थापना की थी। असंग इसके विस्तारक थे। यह सिद्धांत महायान बौद्ध धर्म से संबंधित था।
Reference : https://www.indiaolddays.com/