हिटलर का उदय – नात्सीदल और उसके प्रमुख नेता हिटलर ने जो आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की, उसके मूल में अनेक राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक कारण निहित थे। उनमें कुछ निम्नलिखित थे-
हिटलर का व्यक्तित्व

नात्सीदल के उत्कर्ष का एक प्रमुख कारण हिटलर का असाधारण व्यक्तित्व था। उसमें जननायक होने के सभी गुण थे। वह एक मंजा हुआ राजनीतीज्ञ,एक प्रभावान एवं महान वक्ता और एक वीर सैनिक था। उसमें परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक दाँव-पेचों को अपने अनुकूल कार्यान्वित करने की अद्भुत योग्यता थी।
उसकी वक्तृत्व-शक्ति बेमिसाल थी। उसकी वाणी में एक विचित्र मोहनी शक्ति थी जो श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर देती थी।बैन्स ने उसके संबंध में लिखा है, “हिटलर एक कुशल मनोवैज्ञानिक था, एक चतुर जन-नेता था और एक श्रेष्ठ अभिनेता था।” वह एक साधनसम्पन्न आंदोलनकारी तथा एक योग्य संगठनकर्त्ता था।
अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण वह उस राष्ट्र का अधिनायक बन गया जिसका वह मूल नागरिक भी नहीं था। इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि उसकी उन्नति में जनमत का बहुत बङा हाथ रहा था।
वर्साय की आरोपित संधि
जर्मन जनता वर्साय की ओरोपित संधि को भूल नहीं पाई। इस संधि ने उनके देश को नैतिक और भौतिक दृष्टि से मृतप्राय बना दिया था। वर्साय की संधि के बाद की घटनाओं – फ्रांस का सतत् विरोधी रुख, रूर आधिपत्य, सार आधिपत्य, क्षतिपूर्ति की भारी रकम, जर्मनी का एकपक्षीय निःशस्त्रीकरण आदि ने जर्मनी के क्रोध को भङकाने का काम किया।
1924 से 1929 के अस्थायी आर्थिक पुनरुत्थान के काल में असंतोष एवं प्रतिशोध के ये तत्व पृष्ठभूमि में धकेल दिए गए परंतु उनका अस्तित्व कायम रहा।

1930-31 के आर्थिक संकट के समय में ये तत्व अपनी पूर्ण शक्ति के साथ आ धमके और एक बार पुनः वर्साय की संधि के प्रति विद्यमान आक्रोश फूट पङा। नात्सीदल ने “वर्साय का अंत हो” का नारा लगा कर लाखों असंतुष्ट जर्मनों का समर्थन प्राप्त कर लिया। वस्तुतः नात्सीदल के उत्कर्ष का एक प्रमुख वर्साय की संधि के प्रति जर्मन जनता का क्रोध था।
जातीय उत्कृष्टता का प्रचार
नात्सीदल के उत्कर्ष का एक कारण जर्मन जनता में उग्र राष्ट्रीयता का पुनर्जागरण था। हिटलर ने इसे और भी उग्र बनाने के लिये जातीय उत्कृष्टता का विचार प्रतिपादित किया। उसका कहना था कि ईश्वर ने जर्मन जाति को अन्य जातियों पर शासन करने के लिये बनाया है।
चूंकि जर्मन जाति शुरू से ही सैनिक मनोवृत्ति एवं वीर पूजा की भावना से प्रेरित होती आई है। अतः अब उसे हिटलर के रूप में एक वीर नायक मिल गया और अपनी स्वाभाविक भावना के साथ जनता ने उसे अपना “फ्यूह्रर्र“ मान लिया।
प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था
हिटलर और नात्सीदल के उत्कर्ष का एक कारण जर्मन जनता में प्रजातान्त्रिक लोकसभात्मक शासन पद्धति के विरुद्ध अरुचि होना था। बहुत से जर्मन, संसदात्मक शासन प्रणाली, जिस ढंग से वह कार्य कर रही थी, वे ऊब गये थे, क्योंकि उन्हें वे दिन याद थे जबकि लोकसभा में अनुशासन और व्यवस्था की दृढ व्यवस्था थी और वाद-विवाद तथा फजीतियों का वातावरण नहीं था।
तत्कालीन जर्मन राजनीतिज्ञ केवल थोथे वचन और प्रतिज्ञाएँ करते रहे थे। इससे सामान्य जनता को भारी आघात पहुँचता था। वह एक ऐसे शक्तिशाली व्यक्ति को जर्मनी का भाग्य विधाता देखना चाहती थी जो कि जनता को मौजूदा शोचनीय स्थिति से मुक्ति दिलवा सके।
साम्यवाद का भय
1917 ई. में रूस में साम्यवादियों को जो अभूतपूर्व सफलता मिली उसका प्रभाव यूरोप के कई देशों पर पङा। जर्मनी में यह प्रभाव अधिक रहा। नवम्बर, 1932 के चुनावों में साम्यवादी दल को 100 स्थान मिले। साम्यवादियों की इस सफलता ने नात्सीदल के भाग्योदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
जो लोग एक शक्तिशाली व्यक्ति को जर्मनी का भाग्य विधाता देखना पसंद करते थे वे तो नात्सीदल के अनुयायी बन ही चुके थे, परंतु साम्यवादी भय ने उद्योगपतियों तथा पूँजीपतियों को भी नात्सीदल का समर्थन करने के लिये विवश कर दिया। हिटलर ने सामान्य जनता में भी साम्यवाद का हौवा खङा कर दिया।
जब रीष्टाग भवन को जलाने का दोष साम्यवादियों के मत्थे मढा गया तो लोग यह अनुभव करने लगे कि इनको दबाने के लिये नात्सीदल को समर्थन देना आवश्यक है, क्योंकि साम्यवादी दल से टक्कर लेने लायक यदि कोी दल है तो वह नात्सीदल है।
मनोवैज्ञानिक कारण
नात्सीदल के उत्कर्ष का एक कारण मनोवैज्ञानिक था। ऐसा प्रतीत होता है, कि प्रजातंत्र अधिकांश जर्मनों की रुचि के प्रति अपेक्षित ध्यान देने में अनिच्छुक है अथवा असमर्थ है। साम्राज्यवादी जर्मनी के महान पुरुषों एवं उनके आदर्शों की हत्या करने वाले प्रयत्नों के संबंध में प्रजातांत्रिक सरकार की सहिष्णु नीति, साम्राज्यवादी ध्वज को तत्परता के साथ त्यागना तथा सोवियत रूस के साथ मैत्री-गठबंधन इन सब कार्यों ने जर्मन जनता को प्रजातंत्र से विमुख कर दिया।
सामन्तवादी तत्त्वों, नवयुवकों, आदर्श किसानों और सैनिकों – जिन्हें मौजूदा राजनीतिज्ञों से घृणा थी – ने इस असंतोष को और अधिक फैलाने में सहयोग दिया। नात्सीदल और हिटलर ने इस असंतोष को समझा और इसका लाभ उठाने का पूरा-पूरा प्रयास किया। लीबेन्स ने ठीक ही कहा है कि हिटलर एक कुशल मनोवैज्ञानिक था और उसमें संघर्ष और संगठन करने की अपूर्व क्षमता थी।
उसमें असंतुष्ट लोगों के मन की बात जानने की क्षमता थी और तत्कालीन परिस्थिति को अपने ध्ययों की पूर्ति के लिये मोङने की भी क्षमता थी।
नात्सी दल का कार्यक्रम
नात्सीदल के उत्कर्ष का एक प्रमुख कारण उसका आकर्षक कार्यक्रम था। जर्मनी के अधिकांश दलों ने इस कार्यक्रम में अपने कार्यक्रम की झलक देखी।
नात्सी कार्यक्रम में, सम्पत्ति की सुरक्षा का आश्वासन तथा साम्यवादियों का दमन, श्रमिकों को शोषितों से मुक्ति का, उपभोक्ताओं को उत्पादकों के शोषण से बचाने का, छोटे-छोटे व्यापारियों को बङे-बङे मुनाफाखोरों से बचाने का आश्वासन दिया गया। हिटलर के इस कूटनीतिक कार्यक्रम ने सबको संतुष्ट कर दिया।
इसके अलावा, इस कार्यक्रम का जोर-शोर के साथ प्रचार किया गया। नात्सी दल के तूफानी दस्तों के सैनिक शक्ति प्रदर्शन से जहाँ अन्य दलों के कार्यकर्त्ता भयभीत हो गए थे, वहीं सामान्य लोगों को यह विश्वास होने लगा था कि नात्सी दल ही जर्मनी को स्थाई शांति तथा व्यवस्था प्रदान कर सकेगा।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा
Online References wikipedia : हिटलर