पेशवा का राजस्थान में आगमन (Peshwa’s arrival in Rajasthan)-
बादशाह ने मार्च, 1735 ई. के समझौते की पुष्टि नहीं की। अतः जयसिंह की सहायता का आश्वासन मिलते ही पेशवा ने राजस्थान में जाकर प्रत्येक राजपूत शासक से चौथ के संबंध में शांतिपूर्वक समझौता करने का निश्चय किया और अक्टूबर, 1735 ई. में ससैन्य पूना से रवाना हुआ। जनवरी, 1736 ई. में वह उदयपुर पहुँचा।
मिलने-जुलने और अन्य व्यवहार में पेशवा ने महाराणा के प्रति अत्यधिक नम्रता और विशेष आदर प्रदर्शित किया, किन्तु चौथ के बारे में समझौता करते समय उसने किसी प्रकार की नरमी नहीं दिखाई।

महाराणा ने मराठों को डेढ लाख रुपये वार्षिक चौथ देने का वादा किया। उदयपुर से नाथद्वारा होता हुआ पेशवा जहाजपुर पहुँचा। इसी बीच जयसिंह मालपुरा परगने के झाङली गाँव में पहुँच चुका था। 25 फरवरी, 1736 ई. को जयसिंह ने झाङली में अपने शिविर से कई मील आगे आकर पेशवा का स्वागत किया।
दोनों ने एक-दूसरे का अभिवादन किया और गले मिले। इसके बाद कई दिनों तक दोनों में बातचीत होती रही।
समझौता-वार्ता के आरंभ में पेशवा ने निम्नलिखित माँगे प्रस्तुत की
- हिन्दुस्तान में वतन जागीर
- अन्य मराठा सरदारों के लिये मनसब व जागीर
- दक्षिण के सूबों की सरदेशपांडेगिरी (कुल आय का 5 प्रतिशत राजस्व)जिसके बदले में बादशाह को 6 लाख रुपये दिये जायेंगे
- मालवा की सूबेदारी
- खर्च के रूप में 13 लाख रुपये, जो तीन किश्तों में दिये जायँ।
जयसिंह की मध्ययस्थता में बादशाह ने ये सभी माँगें स्वीकार कर ली। किन्तु जब पेशवा ने देखा कि निर्बल बादशाह उसकी सभी माँगे बिना किसी प्रतिरोध के मानने के लिये तैयार है तब उसने अपनी माँगें बढा दी जिनका आशय यह था कि दक्षिण के सूबों पर मराठों का नियंत्रण अधिक सुदृढ हो जाय और उन्हें पहले की अपेक्षा अधिक आर्थिक लाभ भी हो।
फलस्वरूप बादशाह ने किसी की माँगे की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति की सूचना नहीं दी। अतः 11 जुलाई, 1736 ई. को पेशवा ने दिल्ली में स्थित मराठा प्रतिनिधि महादेव भट्ट को लिखा कि वह बादशाह को सूचित कर कर दे कि पेशवा अपनी ओर से किये गये वायदों को पूरा करने को तैयार है किन्तु मुगल सरकार अपना वायदा नहीं निभा रही है।
पेशवा सात सप्ताह तक मुगल सरकार के निश्चित उत्तर की प्रतीक्षा करता रहा। फिर उसने अपने प्रतिनिधि को लिखा कि अब वह होल्कर को 12-15 हजार सवारों के साथ मालवा में छोङकर वापिस जा रहा है। यदि दिल्ली से संतोषजनक उत्तर आ जाता तो वह कुछ नहीं करता, लेकिन अब जो भी आवश्यक होगा उसे करना पङेगा।
अंत में 29 सितंबर, 1736 ई. को बादशाह ने पेशवा के पास एक फरमान भेजा जिसमें बाजीराव को जागीर तथा सात हजारी मनसब, उसके वतनके महल (अपनी निजी जागीर)आदि दिये जाने का उल्लेख था, किन्तु मालवा की सूबेदारी दिये जाने का कोई उल्लेख नहीं था।
अतः पेशवा ने, फरमान में जो कुछ दिया गया उसे स्वीकार नहीं किया। पेशवा समझ गया कि मुगल दरबार में जयसिंह विरोधी गुट (सादतखाँ, कमरुद्दीनखाँ, निजाम आदि) उसके और बादशाह के मध्य समझौते में रुकावटें डाल रहे हैं। अतः पेशवा ने इन विरोधियों को सबक सिखाने का निश्चय किया।
References : 1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
