सिंधु सभ्यता के टेराकोटा की मूर्तियों में निम्नलिखित में से कौन-सा पालतू जानवर विद्यमान नहीं था ?

सिंधु सभ्यता के टेरकोटा की मूर्तियों में गाय की आकृति विधमान नहीं है ।
विवरण
मृण्मूर्तियाँ (टेराकोटा फिगर्स)- संभवत: खिलौनों या पूज्य प्रतिमाओं के रूप में इनका प्रयोग होता था। इन पर पशुओं, पक्षियों, पुरुषों एवं स्त्रियों के चित्र उकेरे गए हैं। इनमें तीन चौथाई मृण्मूर्तियों पर पशुओं के चित्र मिलते हैं। इनका निर्माण मिट्टी (पक्की हुई) से हुआ है। पशु पक्षियों में बैल, भैसा, भेड़, बकरा, बाघ, सूअर, गैंडा, भालू, बन्दर, मोर, तोता, बत्तख एवं कबूतर की मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई हुई हैं। इसके अलावा बैलगाड़ी और ठेलागाडी की आकृति भी मिली हैं। टेराकोटा में कुबड़ वाले सांड की आकृति विशेष रूप से मिलती हैं। घोड़े साक्ष्य मोहनजोदड़ो की एक मृण्मूर्ति से मिलता है। कुछ मृण्मूर्तियों में अर्द्धमानव की आकृति भी बनी है अर्थात् कुछ जानवर के मुख मानव के बने हैं। मानव मृण्मूर्तियाँ ठोस हैं, परन्तु पशुओं की खोखली हैं। अधिकतर मृण्मूर्तियाँ हाथ से बनी हैं। किन्तु कुछ सांचे में भी ढाले गए हैं। जल जन्तुओं में घड़ियाल, कछुआ और मछली की मृण्मूर्तियाँ हड़प्पा से प्राप्त होती हैं। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की मृण्मूर्तियों में गाय की आकृति नहीं है। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या अधिक है। यह महत्त्वपूर्ण बात है। रंगनाथ राव ने लोथल से गाय की दो मृण्मूर्तियाँ प्राप्त होने का उल्लेख किया है।