भूमि अनुदानों का अंत किसे शासक ने किया था?
भूमि अनुदानों का अंत – तुर्की सुल्तानों में अलाउद्दीन पहला शासक था जिसने वित्तीय और राजस्व सुधारों में गहरी रुचि ली थी। अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम उन समस्त भूमि अनुदानों को वापस ले लिया जो अमीर वर्ग, शासकीय कर्मचारियों, विद्वानों और धर्मशास्त्रियों के पास राज्य की ओर से दी गई भेंट, अनुदान या पुरस्कार के रूप में थे। ये छोटी अक्ताओं के समान थे, अर्थात् विभिन्न व्यक्तियों को दिए गए ऐसे भूखंड थे, जिनका राजस्व उनके वेतन या पुरस्कार के तुल्य माना जाता था। बलबन ने इन संपन्न भूस्वामियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करे का प्रयत्न किया था पर उसे पूर्ण सफलता नहीं मिली थी।
गद्दी पर अपनी शक्ति के मजबूत होते ही अलाउद्दीन ने अमीरों का दमन किया। सुल्तान ने आदेश दिया कि सारी भू-संपत्ति, ग्राम और अन्य भूमि, जो लोगों के पास मिल्क (संपत्ति), इनाम और वक्फ (उपहार) के रूप में है अब वापस ले ली जाए और उसे खालसा भूमि में परिवर्तित कर दिया जाए। किंतु अलाउद्दीन ने समस्त अमीरों की भू संपत्ति जब्त नहीं की थी। कुछ अमीर ऐसे भी थे जिनके पास भूमि थी। किंतु उसने सारे भूमि अनुदानों को वापस लेना और अपने अधिकारियों को नकद वेतना देना ही श्रेयस्कर समझा था।
सुल्तान ने भूमि अनुदान वापस लेने के बाद ग्राम के मुखियों (मुकद्दमों), जमींदारों (खतों) और साधारण किसानों (बलाहारों) से संबंधित आदेश जारी किए। खूतों और मुकद्दमों के विशेषाधिकार छीन लिए। उनके पास इतना धन नहीं छोङा गया कि वे घुङसवारी कर सकें, अच्छे वस्त्र धारण कर सकें और विलालितापूर्ण या खर्चीली प्रवृत्तियों को बढा सकें। जमींदारों की संपन्नता व अहंकार को दबाने के लिये किसानों से धन वसूल करने पर रोक लगा दी गयी। जैसा कि मोरलैंड लिखते हैं और बरनी के अध्ययन से भी यही प्रतीत होता है कि वास्तव में प्रश्न ग्रामीण नेताओं और परगनों तथा ग्रामों के सरदारों और मुखियों की शक्ति को नष्ट करने का था। अलाउद्दीन ने ऐसे अनेक उपाय अपनाए जिससे उसके राज्य में कोई भी इतना संपन्न या शक्तिशाली न रहे कि राज्य के लिये भविष्य में संकट का स्त्रोत हो सके।