सलेमाबाद क्यों प्रसिद्ध है?

सलेमाबाद – सलेमाबाद राजस्थान के अजमेर में स्थित है। यह निम्बार्क संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है, जो प्राचीन वैष्णव मंदिर के लिये प्रसिद्ध है।
बादशाह शेरशाह सूरी के कोई पुत्र नहीं था। अत: बादशाह एक बार पुत्र प्राप्ति की कामना से अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर आया हुआ था। परन्तु बादशाह को विभि उपायों के बाद भी पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। इस कारण वह बहुत निराश था। उसकी इसी निराशा को देखते हुये, उसकी ही सेना के सेनापति जोधपुर राज्य के खेजड़ला ग्राम के ठाकुर श्री शियोजी भाटी जो स्वयं श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज के शिष्य थे। उन्हानें शेरशाह सूरी से निवेदन किया कि यदि आप एक बार मेरे गुरुश्री के दर्शन करें तो आपको अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है, ऐसा मेरा विश्वास है। ठाकुर साहब ने बादशाह सलामत को बताया कि आचार्य श्री यहाँ (अजमेर) से मात्र दस कोस की दूरी पर ही स्थित श्रीनिम्बार्कतीर्थ में निवास करते हुये सर्वेश्वर प्रभु की आराधना करते हैं।शेरशाह सूरी ने श्री शियोजी के विश्वास एवं पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा के कारण श्रीनिम्बार्कतीर्थ चलने का आमन्त्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया। तथा यहाँ आकर आचार्य श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज के दर्शन प्राप्त किये। बादशाह शेरशाह सूरी ने आचार्य श्री के चरणों में प्रणाम कर एक स्वर्ण-रत्न जडि़त कीमती दुशाला भेंट किया। आचार्य श्री ने निर्विकार भाव से उस बहुमूल्य दुशाले को अपने चिमटे से उठाकर अपने सामने प्रज्वलित हवन कुण्ड़ (धूनी) में डाल दिया। जब बादशाह ने अपने भेंट किये हुये दुशाले को जलता हुआ देखा तो उसके मन में कई प्रकार के विचार उत्पन्न होने लगे। आचार्य श्री ने जब बादशाह के मन के विचारों को अपने योग बल से जाना (क्योंकि आप श्री तो अन्तर्यामी थे) तो आपने उसी चिमटे से हवन कुण्ड़ में से उसी प्रकार के स्वर्ण-रत्न जडि़त विभि प्रकार के दुशालों का ढ़ेर बादशाह के सामने लगा दिया और बादशाह से कहा “इसमे से तेरा जो भी दुशाला हो उसे उठा ले। हमारा तो खजाना यही हवन कुण्ड़ है, जो आता है, हम तो इसी में रख देते है। तू दु:खी मत हो ।” यह चमत्कारी घटना देखकर शेरशाह सूरी श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज के चरणों में गिर पड़ा एवं अपनी गलत भावनाओं के लिये क्षमायाचना करने लगा। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने बादशाह की प्रार्थना पर सर्वेश्वर प्रभु का स्मरण कर पुत्र रत्न प्राप्त होने का आशीर्वाद प्रदान किया। समय आने पर बादशाह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तथा उसका नाम सलीम शाह रखा गया।